इस्लामाबाद, 11 अक्टूबर 2025
खैबर पख्तूनख्वा में हालिया हिंसा और झड़पों के बाद पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादियों और उनके सहायक नेटवर्क के खिलाफ कठोरता अपनाने का ऐलान किया है। उसने स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी उग्रवादी समूह से संवाद नहीं होगा और जो लोग उन्हें जमीन या सीमा पार से मदद कर रहे हैं, वे भी निशाने पर होंगे। सैन्य अभियानों में कई आतंकवादी निष्क्रिय किए गए हैं और सेना ने कहा है कि आतंकवादियों के लिए दो ही विकल्प होंगे — जेल या जहन्नुम। प्रवक्ता ने इन संगठनों को ‘‘ख़्वारिज़’’ करार देते हुए बताया कि अब छिपने की कोई जगह नहीं रहेगी। पाक सेना का रुख यह दर्शाता है कि वह आतंकवाद पर त्वरित, निर्णायक और समन्वित जवाब देना चाहती है, जिसमें हवाई और थल हमले शामिल होंगे। इसने स्वीकार किया कि सीमापार सहयोग और स्थानीय सहायताकारियों की पहचान कर कार्रवाई होगी, जिससे क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति बदल सकती है।
संवाद पर पूरी तरह ताला — सेना का कटु संकल्प
सेना ने स्पष्ट कर दिया कि वह संवाद को अब बंद कर चुकी है। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया जब कुछ आतंकवादी समूहों ने सरकार से बातचीत की पेशकश की थी। उदाहरण के लिए, तटीय इलाकों में एक ऑपरेशन के बाद TTP ने शर्तों के साथ वार्ता की पेशकश की थी।
लेकिन अब पाकिस्तान सेना का रुख साफ है — “पहले वे शर्तें रखेंगे, फिर हम देखेंगे”। उन्होंने कहा कि पहले तो आतंकवादियों को आत्मसमर्पण करना होगा या फिर युद्ध का मुँह देखना होगा।
झड़पों का माहौल और बढ़ी सैन्य कार्रवाई
पिछले हफ्ते ओरकज़ई जिले में सुरक्षा बलों के एक अभियान में 11 सैनिक और 19 आतंकवादी मारे गए।
इसके अलावा, बाँनू और लाकी मरवट जिलों में हुए अभियानों में सेना ने 30 आतंकवादियों को निष्क्रिय करने का दावा किया। इन अभियानों को “घुसपैठ रोधी कार्रवाई” कहा गया, जिनका मकसद आतंकवादियों को सीमावर्ती पनाहगाहों से बाहर करना था। साथ ही, कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि इन क्षेत्रों में नागरिकों की भी स्थितियाँ प्रभावित हुई हैं — लोगों को सुरक्षा उपायों और बंदोबस्तों का सामना करना पड़ा।
मूल चुनौतियाँ: सुरक्षा बनाम राजनीतिक जटिलताएँ
यह सच है कि खैबर पख्तूनख्वा दशकों से आतंकवाद की सक्रियता का केंद्र रहा है। पाकिस्तान के संचालन जैसे Operation Azm-e-Istehkam इस क्षेत्र में आतंकवाद गुटों को दबाने का हिस्सा रहे हैं। लेकिन हाल की घटनाएं दिखाती हैं कि आतंकवादी समूह अब फिर से सक्रिय हो रहे हैं, और सीमापार सहयोग, गुप्त मार्ग और सहायक नेटवर्क उनकी मजबूती का स्रोत बने हैं।
सेना की चेतावनी इस बात का संकेत है कि वह अब न्यायालयीय, खुफिया और सैन्य संयोजन से इन गतिविधियों को समाप्त करने की रणनीति पर काम करेगी।
अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मायने
इस पूरी स्थिति का असर न सिर्फ पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा तंत्र पर है, बल्कि अफगानिस्तान और भारत से लगी सीमाओं पर भी इसका महत्व बढ़ जाता है। पाकिस्तान ने बार-बार अफगान सरकार को आतंकवादियों को पनाह न देने की अपील की है। भारत-पाक सीमा तनाव के बीच इस तरह की चुनौतियाँ और अधिक संवेदनशील हो जाती हैं।
खैबर पख्तूनख्वा में हुई हालिया झड़पों ने पाकिस्तान की सैन्य और सुरक्षा नीति को फिर से पहले पंक्ति में ला दिया है। सेना का कठोर रुख और संवाद पर पूर्ण इंकार यह संकेत देता है कि अब “मध्यमार्ग” की राजनीति समाप्त हो गई है। इसके आगे क्या होगा — आतंकवादियों का मुंहतोड़ जवाब या मानवीय और राजनीतिक संकट — यह समय ही बताएगा।