नई दिल्ली। 28 जुलाई 2025
राजनाथ सिंह का जवाब: “ऑपरेशन सिंदूर दबाव में नहीं रोका गया”
लोकसभा में सोमवार को जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा शुरू हुई, तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि यह कहना पूरी तरह गलत है कि भारत ने किसी दबाव में आकर सैन्य कार्रवाई को रोका। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की ओर से सेना के महानिदेशक (डीजीएमओ) स्तर पर संपर्क किया गया था, जिसमें आग्रह किया गया कि सैन्य कार्रवाई को यहीं रोका जाए। भारत ने इस अनुरोध को एक सख्त शर्त के साथ स्वीकार किया—यह अभियान सिर्फ रोका गया है, समाप्त नहीं। यदि पाकिस्तान भविष्य में कोई दुस्साहस करता है, तो भारत फिर से उसी दृढ़ता और आक्रोश के साथ कार्रवाई करेगा। राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि यह कोई राजनीतिक समझौता नहीं, बल्कि सैन्य लक्ष्य पूरे होने के बाद लिया गया एक रणनीतिक निर्णय था।
गौरव गोगोई का हमला: “पहलगाम में आतंकी कैसे घुसे, सरकार चुप क्यों?”
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने संसद में सरकार से तीखे सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि यह समझ से परे है कि पहलगाम जैसे सुरक्षित क्षेत्र में आतंकी कैसे घुस गए। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार वही बातें दोहरा रही है जो 2016 में उरी हमले और 2019 में पुलवामा हमले के बाद की थीं। गोगोई ने पूछा कि जब सरकार ने बार-बार दावा किया था कि उसने सीमाओं को पूरी तरह सील कर दिया है, तो फिर इस तरह की चूक कैसे संभव है? उन्होंने यह भी कहा कि आतंकियों की घुसपैठ और फिर हमला करना इस बात का संकेत है कि हमारी खुफिया और सुरक्षा प्रणाली में गंभीर खामियां हैं। इसके साथ ही गोगोई ने यह भी पूछा कि अगर सरकार का मकसद युद्ध नहीं था, तो फिर वह कब और कैसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) को भारत का हिस्सा बनाएगी?
“राष्ट्रीय भावना का अपमान मत कीजिए” — रक्षा मंत्री ने विपक्ष को चेताया
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष की आलोचना पर जवाब देते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के कितने विमान गिरे। उन्होंने कहा कि इस तरह के सवाल सेना के मनोबल को गिराने वाले होते हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि जब कोई अभियान होता है तो उसमें नुकसान की आशंका हमेशा रहती है, लेकिन अगर राष्ट्र की सुरक्षा और दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने का लक्ष्य हासिल हुआ हो, तो यही सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने ऐतिहासिक उदाहरण देते हुए बताया कि 1962 और 1971 के युद्धों के बाद भी विपक्ष ने कभी यह नहीं पूछा कि कितने टैंक या विमान टूटे। राजनाथ सिंह ने विपक्ष को सलाह दी कि वो ऐसे सवाल उठाएं जो राष्ट्रीय भावना का प्रतिनिधित्व करें, न कि सेना के मनोबल को गिराएं।
रणनीति या राजनीति: संसद में गूंजते रहे सवाल
पूरे सत्र के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई कि पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर अब सिर्फ सुरक्षा मुद्दा नहीं रहा, यह एक राजनीतिक विमर्श का केंद्र भी बन चुका है। जहां सरकार अपनी रणनीतिक सफलता को गिनवा रही है, वहीं विपक्ष लगातार सरकार से जवाब मांग रहा है—खासकर POK पर कार्रवाई को लेकर। कांग्रेस समेत कई विपक्षी नेताओं का कहना है कि अगर सरकार को इतना ही आत्मविश्वास है तो वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत में शामिल करने की दिशा में ठोस कदम क्यों नहीं उठाती? वहीं, सरकार का कहना है कि वह हर कदम सोच-समझकर और रणनीतिक मजबूती से उठाती है, और देश की सुरक्षा के लिए हर निर्णय आवश्यकतानुसार लिया जाता है। इस बहस ने यह भी साफ कर दिया कि आने वाले चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।
सेना का सम्मान या राजनीति का मंचन?
संसद की यह बहस कई संदेश छोड़ गई। एक ओर जहां भारतीय सेना की वीरता और रणनीतिक परिपक्वता की प्रशंसा की गई, वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने सरकार की जिम्मेदारी और जवाबदेही को लेकर कठिन प्रश्न खड़े किए। हाशिम मूसा की मौत ने यह साबित कर दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है, लेकिन इसके साथ ही यह भी तय है कि सुरक्षा की असफलताओं पर भी सवाल उठते रहेंगे। भारत के नागरिकों को यह विश्वास होना चाहिए कि उनकी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा—और इस भरोसे को बनाए रखना सिर्फ सेना का नहीं, बल्कि संपूर्ण राजनीति और शासन व्यवस्था का कर्तव्य है।