चुनावी प्रक्रिया में “वोट चोरी” विवाद ने तूल पकड़ लिया है। अब विपक्ष ने सीधे मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार को निशाने पर ले लिया है। विपक्षी दलों ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष नहीं रह गई है और इस कारण लोकतांत्रिक संस्थाओं पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है। विपक्ष ने एलान किया है कि वे संसद में ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकते हैं।
विपक्षी खेमे का मानना है कि चुनाव आयोग की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस और उसके जवाबों ने संदेह और गहरा दिया है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, राजद, सपा, वाम दल और अन्य कई पार्टियों ने इसे लोकतंत्र के लिए “गंभीर खतरा” बताया है। उनका कहना है कि जब विपक्ष ने मतदाता सूची और मशीन रीडेबल रोल में गड़बड़ियों की ओर ध्यान दिलाया, तब चुनाव आयोग ने जवाबदेही से बचने की कोशिश की।
विपक्ष के नेताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एक “पक्षपाती संस्था” की तरह काम कर रहा है और सत्तारूढ़ दल के दबाव में फैसले ले रहा है। उन्होंने कहा कि अगर आयोग पर से जनता का भरोसा उठ गया, तो लोकतंत्र के स्तंभ कमजोर हो जाएंगे। विपक्षी दल अब राष्ट्रपति से मुलाकात कर चुनाव आयोग की कार्यशैली पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने की भी योजना बना रहे हैं।
संसद सत्र के दौरान विपक्ष इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगा। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लाने की रणनीति पर गंभीरता से विचार कर रहा है। हालांकि, इसके लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी, जो फिलहाल विपक्ष के पास नहीं है। लेकिन राजनीतिक संदेश देने और चुनाव आयोग को घेरने के लिए यह कदम विपक्षी गठबंधन के लिए अहम माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद केवल व्यक्ति विशेष का मुद्दा नहीं है, बल्कि चुनावी संस्थाओं की पारदर्शिता और विश्वसनीयता का सवाल है। अगर विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लेकर आता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र की राजनीति में ऐतिहासिक घटनाक्रम साबित हो सकता है।