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अब चंडीगढ़ में केंद्र की अनुमति के बिना नहीं चलेगा एक भी काम” — गृह मंत्रालय का सख्त आदेश:

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नई दिल्ली/ चंडीगढ़ 9 अक्टूबर 2025

 नए प्रोजेक्ट, स्कीम या फंड खर्च से पहले जरूरी होगी मंजूरी 

अब चंडीगढ़ का हर प्रोजेक्ट दिल्ली की मंज़ूरी से तय होगा — विकास की गाड़ी तो चलेगी, लेकिन ड्राइविंग सीट अब पूरी तरह गृह मंत्रालय के हाथों में होगी। केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासनिक कामकाज पर अब केंद्र सरकार यानी गृह मंत्रालय (MHA) की पकड़ बहुत मज़बूत हो गई है। गृह मंत्रालय ने एक बहुत ज़रूरी आदेश जारी किया है, जिसमें साफ़-साफ़ कहा गया है कि अब चंडीगढ़ प्रशासन किसी भी नई योजना, बड़े काम या स्कीम पर मंत्रालय की मंज़ूरी के बिना एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकेगा। यह आदेश सिर्फ पैसे खर्च करने का नियम नहीं है, यह दिखाता है कि केंद्र और राज्य या केंद्र शासित प्रदेशों के बीच प्रशासनिक तालमेल कैसे बदल रहा है।

चंडीगढ़, जो लंबे समय से पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है, अब पूरी तरह से गृह मंत्रालय की सीधी निगरानी में काम करेगा — और इस फ़ैसले का असर शहर की हर नीति और बड़े प्रोजेक्ट पर पड़ना तय है।

गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि चंडीगढ़ प्रशासन किसी भी नए प्रोजेक्ट को शुरू करने, ठेका (टेंडर) जारी करने, या किसी भी योजना के तहत पैसा आवंटित करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेगा। यह नियम छोटे या बड़े, हर तरह के वित्तीय फ़ैसले पर लागू होगा, यानी मंत्रालय की लिखित मंज़ूरी के बिना कोई भी काम शुरू नहीं किया जा सकता। 

मंत्रालय का कहना है कि यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि पैसे के खर्च में पूरी पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे, और यह भी पक्का हो सके कि चंडीगढ़ की हर योजना केंद्र सरकार की बड़ी विकास नीति के साथ मेल खाती हो। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, यह आदेश कुछ विभागों की अपनी मनमानी और बिना अनुमति के काम शुरू करने की आदत पर नाराज़गी के बाद आया है, क्योंकि केंद्र को पता चला था कि पिछले कुछ महीनों में प्रशासन ने कुछ ऐसी योजनाएँ शुरू कर दी थीं जिनकी औपचारिक मंज़ूरी गृह मंत्रालय से नहीं ली गई थी।

यह फ़ैसला सीधे तौर पर चंडीगढ़ प्रशासन की पैसे खर्च करने की आज़ादी पर रोक लगाता है। अब तक प्रशासन के पास यह अधिकार था कि वह ₹5 करोड़ तक की परियोजनाओं पर ख़ुद फ़ैसला ले सकता था, और उससे ज़्यादा के मामलों में ही केंद्र की मंज़ूरी ज़रूरी होती थी। लेकिन अब यह सीमा पूरी तरह से ख़त्म कर दी गई है। इसका मतलब यह है कि चाहे ₹5 लाख का कोई छोटा सड़क मरम्मत का काम हो या ₹500 करोड़ का कोई बड़ा शहरी विकास प्रोजेक्ट — हर फ़ैसला अब दिल्ली में बैठे गृह मंत्रालय की टेबल पर ही तय होगा। 

प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दबे स्वर में कहा कि यह आदेश उनके लिए बहुत बड़ा बदलाव है, क्योंकि अब हर फ़ाइल को मंज़ूरी के लिए दिल्ली भेजना होगा, जिससे काम की गति धीमी हो सकती है। हालांकि, उन्हें यह भी मानना पड़ा कि सरकार का मुख्य उद्देश्य पैसे के लेन-देन में साफ़-सफ़ाई और जवाबदेही लाना है।

केंद्र सरकार का तर्क है कि चंडीगढ़ एक “खास श्रेणी” का केंद्रशासित प्रदेश है, और यहाँ के हर फ़ैसले को सीधे गृह मंत्रालय के तहत आना चाहिए। लेकिन पिछले कुछ समय में प्रशासनिक स्तर पर ऐसी शिकायतें मिली थीं कि कुछ प्रोजेक्ट में पैसे का ग़लत इस्तेमाल हो रहा था, जैसे एक काम का पैसा दूसरे काम में लगा देना (फंड डाइवर्जन)।

 वित्त विभाग ने भी कई बार चेतावनी दी थी कि कुछ योजनाओं में बिना अधिकार के ख़र्च किए जा रहे हैं। इन गड़बड़ियों की शिकायतों के बाद मंत्रालय ने जांच की और पाया कि कुछ अधिकारियों ने “स्थानीय मंज़ूरी” के नाम पर अपनी मनमानी से फ़ैसले लिए थे। इसलिए अब केंद्र ने साफ़ कर दिया है कि एक-एक पैसा केंद्र की निगरानी में ही खर्च होगा — और यह आदेश तुरंत लागू कर दिया गया है।

राजनीतिक मामलों को समझने वाले विशेषज्ञ इसे चंडीगढ़ पर केंद्र की सीधी पकड़ को मज़बूत करने वाला कदम मान रहे हैं। उनका कहना है कि यह फ़ैसला सिर्फ पैसे के हिसाब-किताब से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश भी देता है — कि केंद्र सरकार अब स्थानीय अधिकारियों को अपने मन से पैसे से जुड़े फ़ैसले नहीं लेने देगी। यह आदेश ख़ासकर ऐसे समय में आया है जब पंजाब और हरियाणा दोनों ही चंडीगढ़ पर अपने अधिकार का दावा फिर से ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं। ऐसे माहौल में, केंद्र का यह कदम प्रशासनिक स्थिरता के नाम पर पूरी तरह से केंद्रीय नियंत्रण को दोबारा स्थापित करने के रूप में देखा जा रहा है।

अब से चंडीगढ़ प्रशासन का हर विभाग — चाहे वह सड़क, स्कूल, अस्पताल, पुलिस, या पर्यटन से जुड़ा हो — किसी भी नई शुरुआत या प्रस्ताव को लागू करने से पहले उसकी पूरी रिपोर्ट (Detailed Project Report – DPR) गृह मंत्रालय को भेजेगा। मंत्रालय की वित्त और प्रशासनिक टीम उस प्रस्ताव को अच्छी तरह जाँचने के बाद ही अपनी स्वीकृति देगी, और उसी के बाद काम शुरू किया जा सकेगा। यह नई व्यवस्था केंद्र सरकार के उस बड़े विचार का हिस्सा बताई जा रही है जिसे “वन नेशन, वन अकाउंटेबिलिटी” कहते हैं, जिसका मतलब है कि सभी केंद्र शासित प्रदेशों में जवाबदेही का एक ही तरीका लागू किया जाए।

हालांकि, चंडीगढ़ के स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों में इस फ़ैसले को लेकर थोड़ा असंतोष भी है। कई अधिकारियों का मानना है कि “बहुत ज़्यादा केंद्रीकरण” से न केवल बड़े विकास के काम धीमी गति से चलेंगे, बल्कि स्थानीय स्तर पर फैसले लेने की आज़ादी भी ख़त्म हो जाएगी। एक अधिकारी ने चिंता जताई कि “हर छोटे-बड़ी योजना के लिए दिल्ली की मंज़ूरी का इंतज़ार करना व्यावहारिक नहीं है”, और इससे शहर के रोज़मर्रा के ज़रूरी काम जैसे सड़क, सफ़ाई, पानी की आपूर्ति, और छोटे-मोटे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर बुरा असर पड़ सकता है।

फिलहाल, गृह मंत्रालय के इस कदम को चंडीगढ़ में पैसे के खर्च में अनुशासन और नीति के अनुसार काम करने के तरीके के रूप में पेश किया जा रहा है। लेकिन इसने एक नया सवाल भी खड़ा कर दिया है — यह “निगरानी” है या “नियंत्रण”? क्योंकि अगर हर छोटे-बड़े काम के लिए केंद्र की मंज़ूरी ज़रूरी हो जाएगी, तो स्थानीय प्रशासन की भूमिका सिर्फ केंद्र के आदेशों को लागू करने वाली एक एजेंसी तक सीमित रह जाएगी। 

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