देश के सबसे प्रभावशाली संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है — आखिर उस संगठन के पास इतनी हज़ारों करोड़ की बेहिसाब पूंजी कैसे है, जिसका कोई सरकारी रजिस्ट्रेशन नहीं, कोई टैक्स रिटर्न नहीं, और कोई वैधानिक जवाबदेही नहीं? यह सवाल अब न सिर्फ राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है, बल्कि आम जनता के बीच भी गंभीर चर्चा का विषय बन चुका है।
देश में जहां छोटे NGOs और सामाजिक संगठनों को हर साल अपनी फंडिंग और अकाउंट्स की जांच के लिए इनकम टैक्स और गृह मंत्रालय को रिपोर्ट देनी पड़ती है, वहीं RSS जैसी विशाल संस्था, जिसके शाखाओं का नेटवर्क पूरे देश के हर जिले और हर गांव में फैला हुआ है, उससे कभी कोई वित्तीय जानकारी तक नहीं मांगी गई। यह स्थिति लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए एक बड़ा सवाल है — क्या वास्तव में भारत में कुछ संस्थान “कानून से ऊपर” हैं?
आरएसएस — बिना रजिस्ट्रेशन और टैक्स रिटर्न के चलता है ‘साम्राज्य’
आश्चर्य की बात यह है कि RSS का न तो कोई रजिस्ट्रेशन सोसायटी एक्ट में है, न किसी ट्रस्ट एक्ट में, न ही किसी कंपनी अधिनियम में। यानी कानूनी रूप से यह संस्था किसी भी रूप में “रजिस्टर्ड” नहीं है। फिर भी इसके पास देशभर में हज़ारों करोड़ की संपत्ति, सैकड़ों कार्यालय (केंद्र), प्रशिक्षण शिविर, शाखाएं, और दर्जनों संबद्ध संगठन हैं।
यह वही संस्था है जिसने खुद को “सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन” कहा, लेकिन इसके मातहत संगठनों का विस्तार शिक्षा, मीडिया, राजनीति, धर्म, और उद्योग तक फैला हुआ है।
भारत में लगभग 80 से ज़्यादा संगठन सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से RSS से जुड़े हैं — जिनमें सबसे चर्चित हैं भारतीय जनता पार्टी (BJP), विश्व हिंदू परिषद (VHP), सेवा भारती, विद्या भारती, संस्कार भारती, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), वनवासी कल्याण आश्रम, स्वदेशी जागरण मंच, और कई अन्य।
इन संगठनों के जरिए आने वाला पैसा “दान” के नाम पर RSS के नेटवर्क में प्रवाहित होता है — लेकिन कभी कोई ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाती। यह न सिर्फ आर्थिक रहस्य है, बल्कि एक संविधानिक विसंगति भी।
बेहिसाब फंडिंग — कहां से आती है यह पूंजी?
देश के वित्तीय विश्लेषक इस सवाल से हैरान हैं कि आखिर RSS जैसी संस्था, जिसका कोई बैंकिंग खाता सार्वजनिक नहीं है, जिसके पास न कोई ऑडिटेड बैलेंस शीट है, न कोई टैक्स रिपोर्ट, वह इतना बड़ा फंड कैसे इकट्ठा कर लेती है?
साल 2018 में एक स्वतंत्र अध्ययन में बताया गया था कि RSS से जुड़े संगठनों की वार्षिक फंडिंग ₹2,000 करोड़ से अधिक है। 2023 तक यह अनुमान बढ़कर ₹5,000–₹7,000 करोड़ तक पहुंच गया। यह धन मुख्य रूप से कॉरपोरेट सेक्टर, विदेशी दाताओं और धार्मिक चंदों के माध्यम से आता है, लेकिन इसका कोई औपचारिक रिकॉर्ड नहीं रखा जाता।
विशेषज्ञों का कहना है कि RSS की फंडिंग का नेटवर्क इतना जटिल और बहुस्तरीय है कि इसे किसी एक कानून के तहत परिभाषित करना असंभव है। “आरएसएस दरअसल अपने आर्थिक ढांचे को ‘विचारधारा’ की आड़ में चलाता है, ताकि कोई सरकारी एजेंसी उसके कामकाज पर सवाल न उठा सके,” एक पूर्व वित्त अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया। अगर इस नेटवर्क की गंभीर जांच हो तो यह न केवल वित्तीय अनियमितता का, राजनीतिक वित्तपोषण के सबसे बड़े घोटाले का खुलासा कर सकता है।
कोई जांच नहीं, कोई जवाबदेही नहीं — “देश में कानून सबके लिए समान नहीं”
यह तथ्य अपने आप में चौंकाने वाला है कि RSS, जो खुद को राष्ट्र निर्माण की रीढ़ बताता है, उसने अब तक कभी भी अपने फंडिंग स्रोतों या खर्चों का विवरण सार्वजनिक नहीं किया। RTI (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ताओं ने कई बार इस पर जानकारी मांगी, लेकिन जवाब आया — “RSS एक निजी संगठन है, यह सरकार के अधीन नहीं आता।”
यानी एक तरफ सरकारें हर NGO, हर ट्रस्ट, हर मीडिया फाउंडेशन से विदेशी फंडिंग और इनकम टैक्स का ब्यौरा मांगती हैं, वहीं दूसरी तरफ RSS जैसी संस्था पर कोई उंगली तक नहीं उठाई जा सकती। यह दोहरा मापदंड भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी संगठन का इतना बड़ा ढांचा, इतनी बड़ी संपत्ति और इतनी गुप्त फंडिंग होना FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) और Income Tax Act दोनों के उल्लंघन के दायरे में आता है। लेकिन अब तक किसी सरकार ने यह हिम्मत नहीं दिखाई कि RSS के वित्तीय स्रोतों की जांच करे। इसका कारण साफ है — RSS के राजनीतिक हाथ बहुत लंबे हैं, और उसका प्रभाव हर सत्ताधारी दल, खासकर बीजेपी यानी सरकार के साथ है।
VIP सुविधाएं और Z+ सुरक्षा — संगठन या सत्ता का साया
इतना ही नहीं, RSS के शीर्ष पदाधिकारियों को Z+ और Y श्रेणी की सुरक्षा दी गई है, जो सामान्यतः केवल संवैधानिक पदाधिकारियों और प्रधानमंत्री स्तर के नेताओं को दी जाती है। सवाल यह है कि अगर RSS “गैर-राजनीतिक सामाजिक संगठन” है, तो उसे ऐसी VIP सुरक्षा क्यों?
इसके अलावा, संघ के नागपुर मुख्यालय से लेकर देश के हर राज्य में फैले “कार्यालय” अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं — एयरकंडीशन मीटिंग हॉल, डिजिटल कॉन्फ्रेंस सिस्टम, लाखों की कीमत वाले वाहन, और विशाल भूमि संपत्तियां। लेकिन इन संपत्तियों का मालिक कौन है? जमीनें कैसे खरीदी गईं? किस नाम पर पंजीकृत हैं? — इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं।
जांच हुई, तो निकलेगा देश का सबसे बड़ा आर्थिक स्कैम
देश के कई पूर्व नौकरशाहों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर RSS और उसके संबद्ध संगठनों की स्वतंत्र वित्तीय जांच की जाए, तो यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा फंडिंग स्कैंडल साबित हो सकता है।
साल दर साल बढ़ती राजनीतिक शक्ति, बढ़ता दान, और बढ़ता नेटवर्क — लेकिन न कहीं जवाबदेही, न पारदर्शिता।
RSS खुद को “राष्ट्र की आत्मा” कहता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राष्ट्र की आत्मा को टैक्स, जवाबदेही और पारदर्शिता से ऊपर रखा जा सकता है?
एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में जहां आम नागरिक से लेकर छोटे संस्थानों तक हर पैसे का हिसाब मांगा जाता है, वहीं RSS जैसी संस्था का “अस्पृश्य वित्तीय साम्राज्य” न्याय और समानता के सिद्धांत पर गहरी चोट है। अगर कभी किसी सरकार ने साहस कर इस पूरे नेटवर्क की जांच कराई — तो यह न केवल राजनीतिक संतुलन हिला देगा, देश के सामने उस सच्चाई का परदा भी हट जाएगा जिसे अब तक “राष्ट्रवाद” के नाम पर ढककर रखा गया है।