पटना, 1 नवंबर 2025
बिहार की सियासत में अपनी साफ-सुथरी छवि और रणनीतिक दिमाग के लिए जाने जाने वाले प्रशांत किशोर ने एक बार फिर राजनीतिक हलचल मचा दी है। चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने किशोर ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी जनसुराज आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी दल से न तो चुनाव से पहले और न ही चुनाव परिणाम के बाद कोई गठबंधन करेगी। उन्होंने कहा कि जनसुराज अकेले मैदान में उतरेगी और अपने दम पर सत्ता तक पहुंचने का प्रयास करेगी। इस घोषणा के साथ ही उन्होंने बिहार की पारंपरिक गठबंधन राजनीति को सीधी चुनौती दे दी है।
पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा, “बिहार की राजनीति आज जातिवाद और अवसरवाद की चपेट में है। पिछले 30 सालों से जनता एक ही चेहरे और एक ही सोच के बीच घूम रही है। जनसुराज इस राजनीति को बदलने आया है — और इसलिए हम न किसी के साथ गठबंधन करेंगे, न किसी की छाया में चलेंगे।” उन्होंने दावा किया कि जनसुराज पार्टी अपने संगठन और जनता के भरोसे बिहार में 100 से ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में है। किशोर का कहना है कि जनता अब पारंपरिक पार्टियों से ऊब चुकी है और वह बदलाव की तलाश में है, जिसे जनसुराज ईमानदारी और विकास के साथ पूरा करेगा।
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में आज भी लाखों युवाओं को रोजगार नहीं मिल पा रहा, गांवों की हालत बद से बदतर है और शिक्षा प्रणाली पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। उन्होंने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि “नीतीश जी ने अपनी साख खो दी है और तेजस्वी सिर्फ वादे करते हैं, काम नहीं। अब वक्त आ गया है कि बिहार की जनता तीसरा विकल्प चुने — जो वंशवाद या लालू-नीतीश की राजनीति से अलग हो।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि जनसुराज का मकसद सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि बिहार के सामाजिक ताने-बाने को पुनर्जीवित करना है।
किशोर ने कहा कि उनकी पार्टी हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की “जनसभा कमेटी” बनाएगी, जो आम लोगों के सुझावों के आधार पर स्थानीय घोषणापत्र तैयार करेगी। उन्होंने दावा किया कि जनसुराज के पास अब तक 2.5 लाख से अधिक सक्रिय स्वयंसेवक हैं जो घर-घर जाकर पार्टी का विजन समझा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनका संगठन “ग्रामीण नेतृत्व मॉडल” पर काम करेगा, जिसमें उम्मीदवारों का चयन जनता करेगी, न कि कोई शीर्ष नेता या हाईकमान।
जनसुराज प्रमुख ने अपने अंदाज़ में यह भी कहा कि जो लोग उन्हें राजनीतिक रूप से कमज़ोर आंक रहे हैं, वे भूल रहे हैं कि जनता का समर्थन किसी भी गठबंधन या जातीय समीकरण से बड़ा होता है। उन्होंने कहा, “मैंने कांग्रेस, भाजपा और कई क्षेत्रीय दलों के साथ काम किया है। मुझे पता है कि ये पार्टियाँ कैसे सोचती हैं और जनता के मुद्दों से कैसे भागती हैं। लेकिन जनसुराज ऐसी पार्टी नहीं है जो दिल्ली या पटना के एसी कमरों से चुनाव लड़ेगी — हम ज़मीन से उठे हैं और ज़मीन पर ही राजनीति करेंगे।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर का यह रुख बिहार की राजनीति में एक नई बयार ला सकता है, हालांकि यह राह बेहद कठिन होगी। राज्य में जहां एक ओर एनडीए की मजबूत जड़ें हैं, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन की पारंपरिक पकड़ भी कायम है। लेकिन किशोर का यह आत्मविश्वास और वैचारिक स्पष्टता उन्हें एक अलग स्थान पर खड़ा करती है। उनके इस ऐलान से यह भी स्पष्ट हो गया है कि जनसुराज “तीसरे मोर्चे” के रूप में नहीं, बल्कि “जनता के मोर्चे” के रूप में उभरना चाहता है।
प्रशांत किशोर ने अपने भाषण के अंत में कहा, “बिहार को बदलने के लिए दिल्ली की नहीं, बिहार की जनता की जरूरत है। और जनसुराज उसी जनता का आंदोलन है। हम न किसी की सरकार में शामिल होंगे, न किसी को समर्थन देंगे। जो भी होगा, जनता के आशीर्वाद से होगा।”
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में जनसुराज पार्टी किस हद तक जनता के बीच अपनी पकड़ बना पाती है। लेकिन इतना तय है कि प्रशांत किशोर के इस ऐलान ने राज्य की सियासी बिसात पर एक नई चाल चल दी है — जिसमें गठबंधन नहीं, आत्मनिर्भर राजनीति की गूंज सुनाई दे रही है।




