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जापान का नया इतिहास: सना ए टाकायची — पहली महिला पीएम

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टोक्यो 4 अक्टूबर 2025

जापान की राजधानी टोक्यो में आज इतिहास लिखा गया है। सदी भर से पुरुषों के कब्ज़े वाली जापानी राजनीति में अब एक नया सूरज उगा है — सना ए टाकायची, जो अब जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने की राह पर हैं। सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) ने उन्हें अपना नया अध्यक्ष चुना है, और परंपरा के अनुसार, पार्टी का नेता ही जापान का प्रधानमंत्री बनता है। इस तरह, टाकायची का यह चुनाव जापान के राजनीतिक इतिहास में एक मील का पत्थर है। जिस देश में महिलाओं को राजनीतिक रूप से हमेशा सीमित भूमिकाओं तक बांधा गया, वहाँ अब एक महिला सत्ता के शिखर पर खड़ी है — और यह सिर्फ जापान नहीं, पूरे एशिया के लिए एक प्रेरक संदेश है। आज जापान का चेहरा बदल रहा है — और शायद यह बदलाव सिर्फ जापान का नहीं, एशिया के भविष्य का भी संकेत है। टाकायची का यह संदेश स्पष्ट है, “महिलाएँ सिर्फ भविष्य की माताएँ नहीं, बल्कि वर्तमान की निर्माता भी हैं।”

सना ए टाकायची ने यह जीत किसी संयोग से नहीं पाई। वह वर्षों से जापानी राजनीति में एक सख्त और स्पष्ट छवि के लिए जानी जाती रही हैं। उन्होंने इस चुनाव में अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंदी शिंजीरो कोइज़ुमी को कड़े मुकाबले में हराया। पहले दौर में उन्होंने 183 वोट प्राप्त किए और रन-ऑफ वोट में 185 मतों के साथ निर्णायक जीत दर्ज की। यह जीत सिर्फ वोटों का गणित नहीं थी, उस मानसिकता पर जीत थी जिसने दशकों तक यह तय किया था कि “नेतृत्व पुरुष का अधिकार है”। टाकायची ने अपनी मेहनत, दृढ़ता और राजनीतिक समझ से यह साबित कर दिया कि नेतृत्व का लिंग नहीं होता, केवल दृष्टि होती है।

सना ए टाकायची का राजनीतिक सफर किसी कहानी से कम नहीं। उन्होंने पत्रकारिता से शुरुआत की और धीरे-धीरे राजनीति में प्रवेश किया। उनकी पहचान शुरू से एक राष्ट्रवादी, सख्त सुरक्षा नीति वाली और कंज़रवेटिव विचारधारा की नेता के रूप में रही है। वह पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी मानी जाती हैं और उनकी नीति — “मजबूत जापान, आत्मनिर्भर जापान” — की प्रबल समर्थक रही हैं। लेकिन इस चुनाव में उन्होंने अपनी छवि को थोड़ा नरम करते हुए जनता को यह भरोसा दिलाया कि वे न केवल एक सख्त नेता हैं, एक संवेदनशील सुधारवादी भी हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहा, “जापान की सबसे बड़ी ताकत उसकी महिलाएँ हैं। अब वक्त है कि उन्हें नेतृत्व की मेज पर जगह दी जाए, सिर्फ सुनने के लिए नहीं, बल्कि निर्णय लेने के लिए।”

जापान इस समय कई संकटों से गुजर रहा है — जनसंख्या घट रही है, अर्थव्यवस्था ठहरी हुई है, और क्षेत्रीय सुरक्षा पर चीन व उत्तर कोरिया से खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। इन परिस्थितियों में सना ए टाकायची का प्रधानमंत्री बनना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी है। उन्हें एक ऐसी पार्टी को एकजुट करना है जो पिछले कुछ सालों में अपनी लोकप्रियता खो रही है। LDP के अंदरूनी धड़े, पुराने गुटीय समीकरण, और विपक्ष का दबाव — सब उनके सामने खड़े हैं। लेकिन सना ए टाकायची ने इस सबके बावजूद दृढ़ता से कहा है कि वे “संकट प्रबंधन” को अपनी सरकार का केंद्र बनाएँगी और “आर्थिक सुरक्षा” को जापान की नई प्राथमिकता बनाएंगी। उन्होंने अपने घोषणापत्र में इसे “Crisis Management Investment” कहा है — यानी संकट को अवसर में बदलने की नीति।

टाकायची के नेतृत्व की सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने महिलाओं के लिए “नॉर्डिक मॉडल” अपनाने का वादा किया है। उन्होंने कहा है कि उनकी कैबिनेट में महिलाओं को उतनी ही जिम्मेदारी दी जाएगी जितनी पुरुषों को — और यह जापान की अब तक की किसी भी सरकार से बिलकुल अलग दिशा होगी। जापान में राजनीति, उद्योग और नौकरशाही — तीनों ही क्षेत्र लंबे समय तक “पुरुषों की दुनिया” माने जाते रहे हैं। ऐसे में एक महिला प्रधानमंत्री का उदय सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि मानसिकता परिवर्तन का प्रतीक बन सकता है।

उनकी यह जीत पूरे एशिया में चर्चा का विषय बन गई है। भारत से लेकर इंडोनेशिया, कोरिया से लेकर थाईलैंड तक मीडिया में उनकी जीत को “जेंडर क्रांति की शुरुआत” कहा जा रहा है। भारतीय विश्लेषक भी मानते हैं कि यह जीत महिलाओं के सशक्तिकरण का वह रूप है, जिसकी कमी एशिया की राजनीति में लंबे समय से महसूस की जा रही थी। लेकिन वहीं, कुछ आलोचक यह भी कह रहे हैं कि टाकायची की सख्त राष्ट्रवादी नीतियाँ और संविधान संशोधन की योजनाएँ जापान को एक अधिक सैन्य राष्ट्र की दिशा में ले जा सकती हैं। अब यह देखना होगा कि वे “सख्ती” और “संवेदनशीलता” के बीच कैसे संतुलन बनाएँगी।

जापान के संसद सत्र में 15 अक्टूबर को टाकायची के प्रधानमंत्री चुने जाने की औपचारिक घोषणा होने की संभावना है। उसके बाद वह जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेंगी — एक ऐसा दृश्य जो जापान ने कभी नहीं देखा था। यह केवल एक व्यक्ति की सफलता नहीं है — यह उन तमाम महिलाओं की जीत है जो सदियों से “काबिल हैं लेकिन मौक़ा नहीं मिला” की श्रेणी में रखी गईं। टाकायची का यह उदय हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है जो यह सोचती थी कि राजनीति, नेतृत्व या निर्णय लेने की दुनिया उसके लिए नहीं बनी।

 

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