वाशिंगटन 8 अक्टूबर 2025
मध्य पूर्व में जारी हिंसा और युद्ध के बीच अब एक नया कूटनीतिक अध्याय खुलने जा रहा है। अमेरिका ने गाज़ा संकट के समाधान के लिए मिस्र में आयोजित होने वाली शांति वार्ता में अपने विशेष दूत और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दामाद जारेड कुश्नर को शामिल करने का निर्णय लिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब गाज़ा में मानवीय हालात बेहद भयावह हो चुके हैं और वैश्विक दबाव अमेरिका और इज़राइल दोनों पर लगातार बढ़ रहा है।
जारेड कुश्नर, जो ट्रंप प्रशासन के दौरान अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के प्रमुख रणनीतिकार रहे हैं, इस बार भी अमेरिका के गैर-आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में मिस्र की राजधानी काहिरा में होने वाली वार्ता में शामिल होंगे। उनके साथ अमेरिका के विशेष दूत और वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ एंथनी लेक भी उपस्थित रहेंगे। यह वार्ता गाज़ा में संघर्षविराम, नागरिकों की सुरक्षा, और मानवीय सहायता के मार्ग खोलने के लिए आयोजित की जा रही है। मिस्र इस पूरी प्रक्रिया में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है।
मिस्र सरकार ने इस वार्ता के लिए हमास, इज़राइल, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अरब लीग के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया है। हालांकि, हमास की आधिकारिक भागीदारी पर अभी अनिश्चितता बनी हुई है। काहिरा में होने वाली यह बैठक गाज़ा में लगातार बढ़ती तबाही, हज़ारों नागरिकों के विस्थापन और मानवीय संकट के बीच एक उम्मीद की किरण के रूप में देखी जा रही है।
अमेरिकी प्रशासन के सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि वॉशिंगटन फिलहाल “तात्कालिक संघर्षविराम” की दिशा में प्रयासरत है। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा है कि “गाज़ा में अब प्राथमिकता नागरिकों की सुरक्षा, मानवीय सहायता की निर्बाध आपूर्ति और हिंसा पर नियंत्रण” है। जारेड कुश्नर की भागीदारी को इस दिशा में “ट्रंप युग की पुरानी कूटनीतिक विरासत का पुनः प्रयोग” माना जा रहा है, क्योंकि कुश्नर ने 2020 में यूएई, बहरीन और इज़राइल के बीच हुए ऐतिहासिक अब्राहम समझौतों में अहम भूमिका निभाई थी।
विश्लेषकों का मानना है कि कुश्नर की मौजूदगी से मिस्र की शांति पहल को एक नई वैधता और वैश्विक ध्यान मिल सकता है। वहीं, कुछ आलोचकों का कहना है कि ट्रंप परिवार की इस सक्रियता के पीछे 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की राजनीतिक रणनीति भी छिपी हो सकती है। हालांकि, व्हाइट हाउस ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा है कि “यह एक पूर्ण मानवीय पहल है, जिसमें राजनीति की कोई भूमिका नहीं है।”
इस बीच, गाज़ा में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पिछले तीन हफ्तों में हजारों नागरिक मारे गए हैं और लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। शहर का बड़ा हिस्सा खंडहर में बदल चुका है और अस्पताल ईंधन व दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं। मिस्र, जो लंबे समय से गाज़ा सीमा पर एकमात्र प्रवेश बिंदु – रफ़ा क्रॉसिंग – को नियंत्रित करता है, अब संघर्षविराम के लिए सबसे सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
काहिरा में होने वाली यह बैठक आने वाले कुछ दिनों में वैश्विक सुर्खियों में रहेगी। यह सिर्फ गाज़ा के भविष्य की नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम एशिया की स्थिरता की दिशा तय कर सकती है। सवाल अब यह है — क्या इस बार शांति की मेज़ पर हथियारों की जगह इंसानियत की जीत होगी, या फिर यह भी एक असफल प्रयास बनकर रह जाएगी?