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“नेशनल हेराल्ड केस पर नया ड्रामा : गांधी परिवार को घेरने की राजनीतिक कवायद या कानूनी लड़ाई?”

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नई दिल्ली, 26 सितंबर 2025 

13 साल से खिंच रही जांच, अब चार्जशीट — कांग्रेस बोली: ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई, विपक्ष को अपराधी साबित करने की साजिश’

कांग्रेस नेतृत्व पर नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की चार्जशीट दाख़िल होते ही राजनीतिक तापमान चरम पर पहुंच गया है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सुमन दुबे, सैम पित्रोदा और यंग इंडियन (YI) कंपनी पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को लेकर लगभग 13 साल से खिंच रहे इस मामले ने एक बार फिर राष्ट्रीय बहस को गरमा दिया है।

केंद्र सरकार और एजेंसियों के लिए यह मामला एक संगठित धोखाधड़ी की कहानी है — जिसमें आरोप है कि गांधी परिवार ने महज़ 50 लाख रुपये में 2,000 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन कांग्रेस पार्टी इसे खुला राजनीतिक हथियार बताती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा, “नेशनल हेराल्ड केस एक ‘हथियारबंद नाटक’ है — यह कॉर्पोरेट लेन-देन की चुनिंदा व्याख्या है, जिसे राजनीतिक रूप से समझौता कर चुकी एजेंसी ED ने आपराधिक मुकदमे में बदला है। यह विपक्षी नेतृत्व को लगातार अपराधी संदेह में रखने का राजनीतिक प्रतिशोध है।”

कहां से शुरू हुआ विवाद

नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की स्थापना 1937 में जवाहरलाल नेहरू ने की थी। आज़ादी के आंदोलन के दौरान यह अख़बार कांग्रेस की आवाज़ बना और दशकों तक पार्टी नेताओं और संपादकों का प्रशिक्षण केंद्र रहा। 1990 के दशक के बाद आर्थिक दबाव और सर्कुलेशन घटने से यह घाटे में चला गया। 2002 से 2010 के बीच कांग्रेस ने AJL को ₹90.21 करोड़ के बिना ब्याज वाले कर्ज़ दिए ताकि वह कर्मचारियों का वेतन और टैक्स चुका सके।

2010 में कांग्रेस नेताओं ने यंग इंडियन (YI) नाम से एक नॉन-प्रॉफिट कंपनी बनाई। कुछ ही हफ्तों में कांग्रेस ने AJL से अपने कर्ज़ को YI को सौंप दिया, जिसने बाद में AJL की 98% हिस्सेदारी ले ली। कांग्रेस का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया AJL को पुनर्जीवित करने और नेशनल हेराल्ड को फिर से शुरू करने के लिए की गई थी।

ED का दावा और कांग्रेस की दलील

ED का आरोप है कि गांधी परिवार और अन्य निदेशकों ने YI के ज़रिए AJL की बहुमूल्य संपत्तियों पर नियंत्रण कर लिया। ये संपत्तियाँ दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पंचकुला और पटना जैसे शहरों में हैं। ED का कहना है कि यह “धनशोधन” का मामला है क्योंकि कांग्रेस का पैसा निजी लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया।

कांग्रेस का तर्क है कि YI एक धारा 25 (अब धारा 8) कंपनी है, जिसे किसी भी तरह का लाभ बाँटने की अनुमति नहीं है। AJL की संपत्तियाँ अब भी AJL के नाम पर हैं और उनका स्वामित्व बदला नहीं गया है। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में कहा था, “AJL से YI को एक इंच भी संपत्ति नहीं गई, न किसी नेता को कोई पैसा मिला। फिर भी इसे मनी लॉन्ड्रिंग कहा जा रहा है। यह अभूतपूर्व है।”

कानूनी उलझन और राजनीतिक समय

दिल्ली की निचली अदालत ने 2014 में गांधी परिवार को तलब किया था और 2016 से मुकदमे की सुनवाई चल रही है। परंतु दिलचस्प यह है कि शिकायतकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने ही कई बार नए दस्तावेज़ दाख़िल करने और ट्रायल रोकने के आवेदन किए, जिससे सुनवाई वर्षों तक लटकी रही। 2021 में स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में जाकर ट्रायल पर रोक लगवाई, और चार साल बाद भी ट्रायल स्थगित है।

विश्लेषक मानते हैं कि इस केस का राजनीतिक समय बेहद अहम है। 2014 में बीजेपी की जीत के बाद पहला समन आया, 2019 चुनाव से पहले ED की पूछताछ तेज हुई, और अब 2025 में जब कांग्रेस विपक्ष को एकजुट कर रही है, चार्जशीट दाख़िल हुई है।

वोट चोरी के आरोपों से ध्यान हटाने की कोशिश?

राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी मानते हैं कि यह मामला ऐसे समय पर जोर-शोर से उठाया गया है जब सत्तारूढ़ दल पर “वोट चोरी” के आरोप तेज़ हैं। सोशल मीडिया से लेकर गांव-कस्बों तक यह नारा गूंज रहा है — “वोट चोर गद्दी छोड़।” ऐसे में विपक्षी नेताओं को बार-बार ED और अदालतों के चक्कर कटवाना, राजनीतिक विमर्श को बदलने और जनता का ध्यान इन आरोपों से हटाने की कोशिश भी माना जा रहा है। यह पैटर्न न सिर्फ विपक्ष को रक्षात्मक बनाता है बल्कि सत्ता पक्ष को खुद को “भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त” दिखाने का मौका देता है।

राजनीतिक प्रभाव

कांग्रेस इसे विपक्षी नेतृत्व को बदनाम करने और उन्हें लंबे मुकदमों में उलझाए रखने का तरीका बता रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह केस एक “राजनीतिक हथियार” है जिसे हर चुनावी मौसम में दोबारा उभारा जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मूल केस (धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात) ट्रायल में फेल हो जाता है तो ED का मनी लॉन्ड्रिंग केस अपने आप ढह जाएगा। फिलहाल, PMLA की विशेष अदालत ने ED की चार्जशीट पर संज्ञान लेने का आदेश सुरक्षित रख लिया है।

नेशनल हेराल्ड केस कानूनी से ज़्यादा राजनीतिक प्रतीत होता है। एक तरफ़ यह सत्ता के खिलाफ खड़े सबसे बड़े विपक्षी नेताओं को लगातार जांच के घेरे में रखता है, दूसरी तरफ़ सरकार इसे कानून लागू करने का मामला बताती है। जब तक ट्रायल पूरा नहीं होता, गांधी परिवार और कांग्रेस इस कानूनी फंदे में फँसे रहेंगे और राजनीतिक रूप से इसे “भ्रष्टाचार की कहानी” के तौर पर प्रचारित किया जाता रहेगा।

 

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