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गाज़ा संकट में नई हलचल: कैरो में शांति वार्ता से पहले हमास ने बंदियों की तत्काल रिहाई की मांग की

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काहिरा / गाज़ा सिटी | 6 अक्टूबर 2025 | शाहिद सईद की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट

मध्य पूर्व में जारी युद्ध के बीच अब शांति की एक नई कोशिश की शुरुआत होने जा रही है। मिस्र की राजधानी काहिरा में आज से इज़राइल और हमास के बीच अहम वार्ता शुरू होने वाली है, जिसमें बंधक अदला-बदली और संभावित युद्धविराम पर चर्चा की जाएगी। इस वार्ता से पहले हमास ने एक सशक्त बयान जारी कर “सभी फ़लस्तीनी बंदियों की त्वरित रिहाई” की मांग की है। संगठन ने कहा है कि किसी भी शांति प्रक्रिया का पहला कदम कैदियों की रिहाई से शुरू होना चाहिए — क्योंकि “जब तक जेलें भरी रहेंगी, तब तक शांति अधूरी रहेगी।”

हमास के राजनीतिक ब्यूरो के वरिष्ठ सदस्य इस्माइल हनिया ने बयान में कहा कि गाज़ा में चल रहे हमलों और लगातार बढ़ते जनहानि के बीच यह वार्ता “फ़लस्तीनियों के धैर्य और अस्तित्व की परीक्षा” बन गई है। उन्होंने कहा, “हम कैरो बातचीत में गंभीर हैं, लेकिन हम यह साफ़ कर देना चाहते हैं कि शांति की कोई भी राह हमारे भाइयों की रिहाई से होकर ही गुज़रेगी।” हनिया ने यह भी चेतावनी दी कि अगर इज़राइल इस मुद्दे को नज़रअंदाज़ करता है, तो हमास अपने “विकल्प” खुले रखेगा।

काहिरा में मिस्र के नेतृत्व में होने वाली यह वार्ता कई मायनों में निर्णायक मानी जा रही है। इसमें क़तर और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे, जो बीच की कड़ी बनकर दोनों पक्षों को समझौते की ओर लाने की कोशिश करेंगे। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक का पहला दौर 48 घंटे तक चलेगा, जिसमें युद्धविराम, मानवीय सहायता की पहुंच, और बंधक अदला-बदली जैसे बिंदुओं पर गहन चर्चा होगी।

इज़राइल की ओर से, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि उनका देश “शांति से पीछे नहीं हटेगा,” लेकिन किसी भी रिहाई सौदे को “सुरक्षा मानकों” के अनुसार तय किया जाएगा। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हमास को अब यह समझना होगा कि “आतंक और शांति साथ नहीं चल सकते।” इज़राइली मीडिया के अनुसार, नेतन्याहू की सरकार फिलहाल लगभग 35 इज़राइली नागरिकों और सैनिकों की रिहाई के बदले 200 से अधिक फ़लस्तीनी कैदियों को छोड़ने पर विचार कर रही है, जिनमें से कई महिलाएँ और किशोर हैं।

मिस्र की भूमिका इस पूरे संकट में बेहद महत्वपूर्ण है। पिछले कई महीनों से वह गाज़ा पट्टी और इज़राइल के बीच एकमात्र “मध्यस्थ पुल” की तरह काम कर रहा है। मिस्र की विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हमारा लक्ष्य केवल युद्धविराम नहीं, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता है। हम दोनों पक्षों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि स्थायी शांति का रास्ता कैदियों की अदला-बदली और मानवीय राहत से होकर ही निकलेगा।”

इस बीच, गाज़ा में हालात अब भी भयावह हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन सप्ताहों में हवाई हमलों में सैकड़ों फ़लस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें कई बच्चे और महिलाएँ शामिल हैं। गाज़ा के अस्पतालों में दवाइयों और बिजली की भारी कमी है, जबकि शरणार्थी शिविरों में भोजन की कतारें लगातार बढ़ती जा रही हैं। लोगों के बीच अब कैरो वार्ता को लेकर उम्मीद और संशय दोनों भाव हैं — कोई इसे “अंतिम मौका” कह रहा है, तो कोई इसे “एक और राजनीतिक खेल” मान रहा है।

क़तर ने भी इस बीच अपनी भूमिका स्पष्ट की है। दोहा से जारी बयान में कहा गया कि “हमास और इज़राइल दोनों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।” क़तर ने इस वार्ता के लिए “मानवीय दृष्टिकोण” अपनाने की अपील की और कहा कि किसी भी समाधान में नागरिकों की सुरक्षा सर्वोच्च होनी चाहिए। वहीं, अमेरिका ने भी ट्रम्प शांति योजना के संदर्भ में इस बैठक को “उम्मीद की शुरुआत” बताया है।

फ़लस्तीनी कैदियों के परिजनों ने इस बीच गाज़ा और वेस्ट बैंक में प्रदर्शन किए, जिसमें उन्होंने नारे लगाए — “रिहाई के बिना शांति नहीं!” एक प्रदर्शनकारी महिला ने कहा, “हमारे बेटे और पति सालों से जेलों में सड़ रहे हैं। अगर यह बैठक सच में न्याय की बात करती है, तो पहले उन्हें आज़ाद करें।”

इधर, इज़राइली समाज में भी बंधकों की रिहाई को लेकर दबाव बढ़ रहा है। तेल अवीव में कई नागरिक संगठनों ने प्रधानमंत्री आवास के बाहर रैली कर सरकार से कहा कि “किसी भी कीमत पर बंधक वापस लाए जाएँ।” एक इज़राइली मां, जिसकी बेटी पिछले साल से हमास की कैद में है, ने कहा, “हम राजनीति नहीं, अपनी संतानों की सांसें मांग रहे हैं।”

अब दुनिया की निगाहें काहिरा पर टिक गई हैं। यह वार्ता तय करेगी कि क्या गाज़ा और इज़राइल इस लंबे युद्ध से निकलकर शांति की राह पकड़ पाएंगे या फिर एक बार फिर गोलियों और बमों की आवाज़ उस उम्मीद को दबा देगी। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि अगर कैरो बातचीत में बंधक रिहाई पर सहमति बन जाती है, तो यह युद्धविराम की दिशा में पहला बड़ा कदम होगा। लेकिन अगर बातचीत विफल रही, तो यह इलाका एक बार फिर आग के दरिया में धकेल दिया जाएगा। गाज़ा की टूटी गलियों और डर में सिमटे चेहरों के बीच एक ही उम्मीद गूंज रही है — कि शायद इस बार, बातचीत सच में कुछ बदल दे।

 

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