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वंदे मातरम् पर नया संग्राम: 1937 के फैसले को तोड़ने का आरोप—कांग्रेस बोली, पीएम ने टैगोर का अपमान किया

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नई दिल्ली 9 नवंबर 2025

देश की राजनीति में एक बार फिर वंदे मातरम् को लेकर घमासान छिड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आरोप लगाया कि 1937 में कांग्रेस ने “वंदे मातरम् के प्रमुख छंदों को हटाकर राष्ट्र के विभाजन की नींव रखी थी।” मोदी के इस बयान ने राजनीति में नया बवंडर पैदा कर दिया है। कांग्रेस ने इस आरोप को न सिर्फ “झूठा” बल्कि “रवींद्रनाथ टैगोर का अपमान” करार देकर प्रधानमंत्री पर सीधा हमला बोला है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी ने जानबूझकर इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया है और भारत के लिए वंदे मातरम् के सम्मान को राजनीति की चाशनी में डुबोकर चुनावी हथियार बना दिया है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ऐतिहासिक दस्तावेजों के हवाले से कहा कि 1937 में कांग्रेस कार्य समिति (CWC) ने रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह पर वंदे मातरम् के पहले दो छंदों को आधिकारिक कार्यक्रमों में गाए जाने के लिए चुना था, क्योंकि बाकी छंद धार्मिक कल्पनाओं से भरपूर थे, जिससे धार्मिक विविधता वाले भारत में गैर-हिंदू समुदायों की भावनाएँ आहत हो सकती थीं। रमेश ने कहा कि “यह फैसला विभाजन के लिए नहीं बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और समावेशिता के लिए लिया गया था।”

कांग्रेस का आरोप है कि मोदी और भाजपा इस ऐतिहासिक निर्णय को “देशद्रोह”, “विभाजन” और “राष्ट्रविरोध” से जोड़कर जनता को गुमराह कर रहे हैं। रमेश ने तीखे शब्दों में कहा—”प्रधानमंत्री ने न सिर्फ कांग्रेस कार्य समिति बल्कि टैगोर जैसे महान कवि का भी अपमान किया है। उन्हें इतिहास पढ़ने की जरूरत है, न कि मिथकों से राजनीति चलाने की।” कांग्रेस ने पीएम से माफी मांगने की भी मांग की है।

विशेषज्ञों के अनुसार मोदी का यह बयान चुनावी समय में एक संवेदनशील प्रतीक—वंदे मातरम्—को राजनीतिक अस्त्र बनाने की कोशिश है। भाजपा इसे राष्ट्रभक्ति से जोड़कर कांग्रेस को “राष्ट्र-विरोधी” दिखाना चाहती है, जबकि कांग्रेस इसे “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश” बता रही है। यह बहस अब सिर्फ गीत के छंदों तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद की व्याख्या और आज की राजनीति के चरित्र से भी जुड़ चुकी है।

इतिहासकार बताते हैं कि 1937 का यह निर्णय स्वतंत्रता आंदोलन के उस दौर में लिया गया था जब देश में हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ रहा था और राष्ट्र को जोड़ने के लिए संवेदनशील, सोचा-समझा और समावेशी दृष्टिकोण जरूरी था। टैगोर स्वयं लिख चुके थे कि वंदे मातरम् के सभी छंदों में “धार्मिक भावनाओं” की प्रधानता है, जबकि राष्ट्र की पहचान किसी एक धर्म से बंधी नहीं हो सकती। कांग्रेस ने टैगोर की इस सलाह को सम्मान दिया और पहले दो छंदों को ही राष्ट्रीय उपयोग के लिए चुना।

लेकिन अब, लगभग 90 साल बाद, इसका राजनीतिक पुनर्मूल्यांकन शुरू हो गया है—और भाजपा इसे कांग्रेस की “गलती” और “राष्ट्र-विरोध” बता रही है। मोदी के बयान पर विपक्ष का कहना है कि भाजपा इतिहास को “वोटों का हथियार” बनाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि वह आर्थिक संकट, बेरोज़गारी, महंगाई, किसान संकट और सामाजिक असंतोष की चर्चा से बचना चाहती है।

यह विवाद यह भी दिखाता है कि भारत की राजनीति में राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, इतिहास और राष्ट्रीय प्रतीक आज भी वोटों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच यह लड़ाई अब केवल तथ्यात्मक नहीं रही—यह अब नैरेटिव की लड़ाई बन चुकी है।

कांग्रेस ने कहा है कि वह संसद, चुनावी मंचों और सार्वजनिक संवाद सभी जगह पीएम मोदी के बयान की “ऐतिहासिक गलत व्याख्या” को उजागर करेगी। दूसरी ओर, भाजपा इसे अपनी राष्ट्रवादी राजनीति के लिए लाभकारी मुद्दा मान रही है—वह इसे कांग्रेस की “कथित राष्ट्रविरोधी मानसिकता” से जोड़ना चाहती है।

वंदे मातरम्—जो भारत की आज़ादी की लड़ाई का भावनात्मक गीत रहा है—आज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र बन गया है। सवाल सिर्फ इतना है:

क्या इतिहास को बार-बार चुनावी नजरों से तोड़ना-मरोड़ना देश की सामूहिक चेतना को कमजोर कर रहा है?

यह विवाद फिलहाल थमता नहीं दिख रहा—क्योंकि यहाँ दांव सिर्फ गीत का नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक आत्मा की व्याख्या का है।

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