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नेपाल संकट: राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी परीक्षा

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डॉ. शालिनी अली, 11 सितम्बर 2025

नेपाल आज अपने इतिहास के सबसे गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट का सामना कर रहा है। राजधानी काठमांडू की सड़कों पर भड़की हिंसा केवल सत्ता परिवर्तन की मांग नहीं है, बल्कि यह वर्षों से जमा असंतोष, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और सामाजिक असमानता की गहरी परतों को उजागर कर रही है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के बावजूद राजधानी में हालात पूरी तरह से स्थिर नहीं हो पाए हैं। सड़कों पर युवा प्रदर्शनकारी, अस्पतालों में घायल नागरिकों की भीड़, राशन की दुकानों पर अफरातफरी और सीमा व्यापार में ठहराव – ये सभी संकेत हैं कि नेपाल के सामने बहुआयामी और जटिल चुनौतियाँ खड़ी हैं। यह संकट केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि एक पूरे समाज और अर्थव्यवस्था की परीक्षा है, जिसने देश के हर वर्ग को प्रभावित किया है।

नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता लंबे समय से देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमजोर कर रही है। लगातार सत्ता संघर्ष, गठबंधन विवाद और प्रशासनिक अक्षमता ने न केवल आम नागरिकों का विश्वास खोया है, बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स – फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स – पर अचानक लगाए गए प्रतिबंधों ने युवा पीढ़ी के आक्रोश को और बढ़ा दिया। युवा छात्रों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना और इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। काठमांडू विश्वविद्यालय के छात्र नेता रवि थापा बताते हैं, “हमने केवल जवाबदेही की माँग की थी। जब हमें आवाज़ उठाने से रोका गया तो सड़कों पर उतरना पड़ा। हम राजनीति नहीं, न्याय और समान अधिकार चाहते हैं।” विश्लेषकों का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ सरकार को हटाने की माँग तक सीमित नहीं है। यह नेपाल में पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक-केंद्रित शासन की गहन मांग है। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अरुण खरेल बताते हैं कि नेपाल की लोकतांत्रिक संरचना कागज़ पर मौजूद है, लेकिन उसकी आत्मा कमजोर है। संस्थागत सुधार के बिना कोई भी सरकार अस्थायी ही साबित होगी, और यही अस्थिरता देश को बार-बार राजनीतिक संकट में धकेल रही है।

इस राजनीतिक संकट के बीच हिंसा का मानवीय चेहरा सबसे मार्मिक रूप में सामने आया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 25 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और 600 से अधिक घायल नागरिक अस्पतालों में उपचार करा रहे हैं। इनमें छात्र, व्यापारी, सुरक्षा बल और आम नागरिक सभी शामिल हैं। संसद भवन, सिंगा दरबार और स्वास्थ्य मंत्रालय जैसी कई सरकारी इमारतें आग की चपेट में आ गई हैं। अस्पतालों में बिस्तरों की कमी है, दवाइयाँ सीमित हैं और डॉक्टर थक कर चूर हो चुके हैं। राज्यलक्ष्मी चित्रकार, जो पूर्व प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल की पत्नी थीं, का घर प्रदर्शनकारियों द्वारा जलाकर राख कर दिया गया। स्थानीय निवासी लक्ष्मी थापा कहती हैं, “वे राजनीति से दूर एक शांत जीवन जी रही थीं। अब उनका घर राख हो गया। यह केवल घर नहीं, बल्कि एक परिवार की पहचान का अंत है।” यह घटना केवल व्यक्तिगत नुकसान नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए असुरक्षा और भय का प्रतीक बन गई है।

हिंसा और अस्थिरता ने नेपाल में खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता पर भी गंभीर असर डाला है। राजधानी की कई दुकानों पर ताले लगे हुए हैं, सब्ज़ी मंडियाँ सूनी हैं, दूध और दाल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। ग्रामीण इलाकों में स्थिति और गंभीर है, जहाँ लोग राहत शिविरों पर सीमित भोजन पर निर्भर हैं। माया गुरुङ, काठमांडू की निवासी बताती हैं, “हमारे पास पैसे हैं, पर सामान नहीं। बच्चों को खाना खिलाना मुश्किल हो गया है। दवाइयाँ भी नहीं मिल रही हैं। डर के मारे हम घर में कैद हैं।” आर्थिक संकट ने पहले से कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली और असंगठित आपूर्ति श्रृंखला को और चरमरा दिया है। व्यापार और रोज़मर्रा की जीवनावश्यक वस्तुओं की कमी ने सामान्य नागरिकों की जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर दिया है।

नेपाल में फँसे भारतीय नागरिक भी असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। भारत और नेपाल की खुली सीमा दशकों से दोनों देशों को जोड़ती रही है, लेकिन वर्तमान संकट ने इसे असुरक्षा का कारण भी बना दिया है। नेपाल में फँसे भारतीय नागरिकों में छात्र, व्यापारी और पर्यटक शामिल हैं। पूजा शर्मा, बिहार से आई छात्रा, बताती हैं, “हम पढ़ाई करने आए थे। अब बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। परिवार से संपर्क मुश्किल हो गया है। सरकार मदद करे तो हम सुरक्षित लौट सकते हैं।” भारत सरकार ने यात्रा परामर्श जारी किया है और हेल्पलाइन सक्रिय की है, लेकिन जमीनी राहत प्रयास अभी भी अपर्याप्त हैं।

शिक्षा और महिला सुरक्षा के क्षेत्र में यह संकट और भी गंभीर है। काठमांडू और आसपास के क्षेत्रों में पढ़ रही छात्राएँ मानसिक तनाव, असुरक्षा और भोजन की कमी से जूझ रही हैं। कई परिवारों ने भारत में प्रशासन से अनुरोध किया है कि छात्राओं की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की जाए। स्थानीय एनजीओ सीमित संसाधनों के साथ राहत शिविर चला रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संकट नेपाल में महिला शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर लंबे समय तक असर डाल सकता है।

भारत-नेपाल संबंध भी इस संकट से प्रभावित हो रहे हैं। दोनों देशों की सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक गहराई वाले रिश्ते संकट की इस घड़ी में परख रहे हैं। भारत पर निर्भर आपूर्ति व्यवस्था, जिसमें ईंधन, दवा और खाद्यान्न शामिल हैं, संकट के चलते प्रभावित हुई है। सीमा पर भारतीय ट्रकों में भरी सब्ज़ियाँ, फल और आवश्यक सामान कई दिनों से फँसे हुए हैं। खराब होने लगी सब्ज़ियों के कारण व्यापारियों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। सर्दी की आंच में, इस आर्थिक ठहराव ने आम नागरिकों और छोटे व्यापारियों की जिंदगी और व्यवसाय दोनों को प्रभावित किया है।

इस संकट की अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया भी गंभीर है। संयुक्त राष्ट्र ने संयम बरतने और शांति बनाए रखने की अपील की है। भारत ने यात्रा परामर्श जारी कर अपने नागरिकों को सतर्क रहने की चेतावनी दी है। वैश्विक मीडिया चैनल नेपाल की घटनाओं को लाइव कवर कर रहे हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। पर्यटन उद्योग, आपूर्ति श्रृंखला और आर्थिक गतिविधियों पर इसका व्यापक असर पड़ रहा है।

विशेषज्ञों के अनुसार संकट से उबरने का रास्ता तुरंत राहत और संवाद में निहित है। भोजन, दवा, आश्रय और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आपूर्ति तत्काल आवश्यक है। युवाओं, नागरिक समाज और प्रशासन के बीच विश्वास और संवाद को पुनः स्थापित करना होगा। सोशल मीडिया नीति की समीक्षा, महिला और छात्र सुरक्षा के लिए सुरक्षित आश्रय और परामर्श सेवाएँ, और सीमा व्यापार पुनर्जीवन पर ध्यान देना निहायत जरूरी है। छोटे व्यापारियों और ट्रक चालकों के लिए वित्तीय सहायता और मुआवजा संकट से उबरने में सहायक होगा।

संकट के बीच भी नेपाल के नागरिक हार नहीं मान रहे। अस्पतालों में डॉक्टर बिना थके सेवा दे रहे हैं, छात्र आंदोलन कर रहे हैं और स्वयंसेवी संस्थाएँ राहत पहुँचा रही हैं। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रमेश गौतम कहते हैं, “हम थके हुए हैं, पर हार नहीं मानी। जब तक जरूरतमंद हैं, हम सेवा देते रहेंगे। यही हमारी जिम्मेदारी है।” युवाओं का आंदोलन, महिलाओं की मदद और डॉक्टरों की सेवा यह दिखाते हैं कि संकट में भी मानवता की लौ बुझती नहीं।

नेपाल संकट की यह घड़ी देश के भविष्य और सामाजिक अनुबंध की दिशा तय करेगी। क्या यह आंदोलन पारदर्शिता और न्याय की ओर ले जाएगा या अस्थिरता लंबे समय तक बनी रहेगी? राजनीतिक नेतृत्व, न्यायपालिका, युवाओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका यहाँ निर्णायक होगी। नेपाल के नागरिकों का यह संघर्ष सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि हर नागरिक के अधिकार, सुरक्षा और सम्मान के लिए है। समय ही बताएगा कि यह संकट देश के लिए बदलाव और निर्माण की नई शुरुआत बनता है या अस्थिरता की राह पर देश को और धकेलता है।

 

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