सरकारी और निजी परियोजनाओं द्वारा बांस, चाय और रबर के प्लांटेशन के नाम पर मेघालय, असम और त्रिपुरा के प्राकृतिक वनों को नष्ट किया जा रहा है। स्थानीय जनजातीय समुदायों का कहना है कि यह “ग्रीन वाशिंग” है — दिखावटी हरियाली लेकिन असली पारिस्थितिकी का विनाश।
प्राकृतिक वन जैव विविधता के लिए अनिवार्य होते हैं और इनमें अनेक स्थानीय प्रजातियाँ, जीव-जंतु और जल स्रोत होते हैं। लेकिन प्लांटेशन के लिए एक ही प्रजाति के पेड़ लगाए जाते हैं, जो जैव विविधता को खत्म करते हैं और मिट्टी की उर्वरता को भी कम करते हैं।
NEC (North Eastern Council) और पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर चिंता जताई है और राज्य सरकारों से रिपोर्ट मांगी है। कुछ इलाकों में विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हो चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि वृक्षारोपण तब ही टिकाऊ है जब वह स्थानीय पारिस्थितिकी के अनुकूल हो।