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NASA-ISRO साझेदारी से तैयार हो रहा NISAR: धरती की निगरानी में दुनिया का सबसे उन्नत सैटेलाइट

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भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिका की NASA ने मिलकर एक ऐतिहासिक परियोजना NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) को अंतिम चरण में पहुंचा दिया है। $1.5 बिलियन की लागत वाला यह सैटेलाइट जुलाई 2025 में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा।

यह अब तक का सबसे अत्याधुनिक और बहुआयामी पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह होगा, जो किसी भी मौसम या प्रकाश की स्थिति में धरती की सतह पर हो रहे बदलावों की सटीक निगरानी कर सकेगा। इसमें शामिल ड्यूल-बैंड रडार तकनीक (L-बैंड और S-बैंड) इसे ग्लेशियरों की बर्फ की मोटाई, तटीय कटाव, भूकंपीय गतिविधियों, जंगलों की स्थिति और यहां तक कि मिट्टी की नमी जैसे परिवर्तन भी रिकॉर्ड करने की क्षमता प्रदान करती है।

आपदा प्रबंधन से कृषि नीति तक—NISAR देगा विज्ञान आधारित समाधान

NISAR का प्रमुख उद्देश्य केवल वैज्ञानिक अध्ययन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सीधे जन-नीति, आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन से निपटने की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रणनीतियों को मजबूती देगा। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह पक्षपात रहित, वास्तविक और वास्तविक-समय (real-time) डेटा उपलब्ध कराएगा — जो मानवीय हस्तक्षेप से मुक्त होगा।
उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में अचानक भूस्खलन या बाढ़ की संभावना बन रही हो, तो NISAR उस इलाके की टोपोग्राफी (भू-आकृति) में हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को पहले ही पकड़ सकता है। इससे NDMA (National Disaster Management Authority) और राज्य प्रशासन समय रहते कदम उठा सकते हैं।

इसी तरह कृषि क्षेत्र में फसल की वृद्धि, मिट्टी की गुणवत्ता, और पानी की उपलब्धता पर आधारित योजनाएं बनाना अब आंकड़ों की दृष्टि से कहीं अधिक सटीक और व्यावहारिक होगा। भारत जैसे कृषि-प्रधान देश के लिए यह एक टेक्नोलॉजिकल क्रांति के समान है। नीति आयोग ने पहले ही संकेत दिए हैं कि NISAR से प्राप्त डेटा का उपयोग प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जल शक्ति अभियान और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में किया जाएगा।

NASA और ISRO की वैज्ञानिक साझेदारी का वैश्विक असर

NISAR सैटेलाइट में अमेरिका ने L-बैंड रडार प्रणाली, GPS रिसीवर, सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर और संचार उपकरणों की आपूर्ति की है, जबकि भारत ने S-बैंड रडार, सैटेलाइट बस, लॉन्च यान (GSLV) और मिशन ऑपरेशंस का ज़िम्मा संभाला है। यह साझेदारी यह दर्शाती है कि भारत अब केवल ‘कंट्रैक्ट लॉन्चर’ नहीं, बल्कि हाई-एंड रिसर्च और इनोवेशन का वैश्विक भागीदार बन चुका है।

NASA के प्रशासक बिल नेल्सन और ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने संयुक्त बयान में कहा कि, “NISAR भविष्य की धरती के विज्ञान को नई दिशा देगा। यह वैश्विक जलवायु संकट, समुद्री स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव की गहरी समझ देने वाला यंत्र साबित होगा।”

वहीं, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने भी इसे वैश्विक संदर्भ में जलवायु निगरानी का ‘गेम चेंजर टूल’ बताया है। इससे पर्यावरण संरक्षण, कार्बन उत्सर्जन नीति और रीसोर्स मैनेजमेंट को बड़ा बल मिलेगा।

भारत की अंतरिक्ष तकनीक को मिला नया गौरव

NISAR मिशन केवल भारत-अमेरिका वैज्ञानिक संबंधों को मजबूत नहीं करता, बल्कि यह भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी को वैश्विक मंच पर नई पहचान भी देता है। इस उपग्रह की परिकल्पना, डिजाइन, और लॉन्च जैसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं में भारतीय वैज्ञानिकों की अग्रणी भूमिका रही है।

श्रीहरिकोटा से इस मिशन का सफल प्रक्षेपण भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल कर देगा, जो सेंटीमीटर स्तर की सटीकता के साथ पृथ्वी के परिवर्तन को लाइव मॉनिटर कर सकते हैं। यह तकनीक भविष्य में ‘मिशन लाइफ’, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स, और पर्यावरणीय न्याय प्रणाली को भी सशक्त बना सकती है।

NISAR एक ऐसी तकनीक है जो न केवल उपग्रहों से डेटा भेजेगी, बल्कि नीति, विज्ञान और मानवीय सुरक्षा के बीच एक सेतु का कार्य करेगी। यह मिशन भारत के लिए ‘स्पेस टू ग्राउंड सॉल्यूशंस’ की नई परिभाषा साबित होगा।

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