नई दिल्ली 9 नवंबर 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गैर-पंजीकृत स्थिति और फंडिंग पर सवाल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सौ साल की यात्रा आज विवादों में है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में बेंगलुरु में एक भाषण दिया। उन्होंने संघ की गैर-पंजीकरण स्थिति का बचाव किया। भागवत ने कहा कि संघ 1925 से चल रहा है। उस समय ब्रिटिश शासन था। ब्रिटिश शासन के दौरान रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं थी। उन्होंने सवाल किया कि वे ब्रिटिशों के पास जाकर रजिस्ट्रेशन क्यों कराते। हालांकि, यह तर्क खोखला लगता है। भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। आजादी के बाद भी संघ ने कभी रजिस्ट्रेशन का प्रयास नहीं किया। कांग्रेस और कई सामाजिक संस्थाएं ब्रिटिश काल में भी रजिस्टर्ड थीं। आजादी के बाद तो रजिस्ट्रेशन और भी आसान हो गया था। लेकिन, संघ ने इसे लगातार अनदेखा किया।
फंडिंग, संपत्ति और टैक्स छूट पर गंभीर आरोप
संघ का इतिहास ब्रिटिशों के साथ सहयोग का रहा है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, संघ के संस्थापक और नेता ब्रिटिशों की मुखबिरी करते रहे। उन्होंने ब्रिटिशों से पेंशन तक ली। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल लगातार संघ की फंडिंग पर सवाल उठा रहे हैं। वे संघ के घपलों पर भी प्रश्न उठा रहे हैं। भागवत का जवाब सिर्फ एक बहाना लगता है। संघ के पास अरबों रुपये की संपत्तियां हैं। हर राज्य और बड़े शहरों में संघ की अपनी इमारतें हैं। प्रचारकों के पास लग्जरी गाड़ियां हैं। वे बिजनेस क्लास हवाई यात्राएं करते हैं। वे फर्स्ट क्लास ट्रेन सफर भी करते हैं। महंगे होटलों में ठहरते हैं। लेकिन, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। संघ कोई आयकर नहीं देता। आयकर विभाग ने इसे ‘बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स’ मानकर टैक्स से छूट दी है। यह एक बड़ा घोटाला लगता है। संघ की फंडिंग स्रोतों पर कोई पारदर्शिता नहीं है। नीति आयोग ने संघ की एनजीओ स्थिति पर जानकारी देने से मना कर दिया है। यह साफ है कि यह संगठन बेनामी संपत्तियों का अड्डा है। यहां अनियमित फंड ट्रांसफर होता है। अरबों रुपये इधर-उधर हो रहे हैं, पर कोई जवाबदेही नहीं है।
सरकारी सुरक्षा, संवैधानिक वैधता और प्रतिबंधों का इतिहास
सरकारी सुरक्षा और संवैधानिक वैधता पर प्रश्न
संघ के प्रमुख मोहन भागवत को जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है। अन्य अधिकारियों को भी विभिन्न श्रेणियों की सुरक्षा मिली है। सवाल यह है कि सरकार ऐसे संगठन को क्यों पाल रही है। यह संगठन आधिकारिक रूप से रजिस्टर्ड तक नहीं है। इसकी फंडिंग पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसके पास कोई संवैधानिक वैधता नहीं है। फिर भी, सरकार इसे सुरक्षा और सुविधाएं दे रही है। संघ का इतिहास देश की आजादी की लड़ाई में भाग न लेने का रहा है। कोई भी संघ सदस्य स्वतंत्रता संग्राम में नहीं दिखा। उल्टे, उन्होंने ब्रिटिशों के साथ मिलकर काम किया।
हिंसा और सांप्रदायिक विभाजन से जुड़ाव
महात्मा गांधी की हत्या 1948 में हुई थी। हत्यारे नाथूराम गोडसे संघ से जुड़े थे। इसके बाद, सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगाया था। 1975 में इमरजेंसी के दौरान संघ के उत्पात के कारण दूसरा प्रतिबंध लगा। 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद तीसरा प्रतिबंध लगा। यह साफ दर्शाता है कि संघ की गतिविधियां हिंसा, नफरत और सांप्रदायिक विभाजन से जुड़ी रही हैं। संघ ने हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत फैलाई। पाकिस्तान को मुद्दा बनाकर राजनीति की। आज भी यह देशभक्ति के नाम पर समाज को तोड़ रहा है।
धर्म और संगठन की हास्यास्पद तुलना
भागवत कहते हैं कि हिंदू धर्म भी रजिस्टर्ड नहीं है। लेकिन यह तुलना हास्यास्पद है। हिंदू धर्म एक धार्मिक परंपरा है। यह कोई संगठन नहीं है जो राजनीतिक प्रभाव डाले। संघ भाजपा जैसी पार्टियों को समर्थन देता है। संघ के भक्त कहते हैं कि देश 2014 में मोदी के आने के बाद ही आजाद हुआ। फिर सवाल उठता है कि तब क्यों नहीं पुराना हिसाब देकर रजिस्ट्रेशन कराया गया। इसका कोई जवाब नहीं है। संघ का एजेंडा छिपा हुआ है। अब समय आ गया है कि इस फर्जी संगठन पर स्थायी प्रतिबंध लगे। अन्यथा, देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ सकती है।
कांग्रेस का सवाल और संघ का बहाना
कांग्रेस ने लगातार संघ की इस धांधली पर सवाल उठाए हैं। ये सवाल संघ की संपत्तियों, फंडिंग और टैक्स छूट से जुड़े हैं। लेकिन भागवत के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। वे सिर्फ बहाने बनाते हैं। वे कहते हैं कि संघ बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स है। इसलिए, यह टैक्स से मुक्त है।
भव्य सुविधाएं, शून्य पारदर्शिता और ऑडिट की कमी
यह कैसे संभव है, जब संघ के पास देशभर में हजारों शाखाएं हैं। उसके पास कई इमारतें और लग्जरी सुविधाएं हैं। प्रचारक हवाई जहाज में बिजनेस क्लास में उड़ते हैं। वे ट्रेन में फर्स्ट एसी में सफर करते हैं। लेकिन, उनका कोई ऑडिट नहीं होता। कोई ट्रांसपेरेंसी नहीं है। नीति आयोग ने आरटीआई में संघ की एनजीओ स्थिति पर जानकारी देने से मना किया। यह साफ संकेत है कि यहां कुछ गड़बड़ है। संघ की सौ साल की यात्रा में सिर्फ नफरत की राजनीति दिखती है। आजादी की लड़ाई में इसका योगदान शून्य रहा। गांधी हत्या में इसकी संलिप्तता थी। इमरजेंसी में अराजकता फैलाई। बाबरी में हिंसा की। आज भी हिंदू-मुस्लिम विभाजन का एजेंडा है।
प्रतिबंध और जांच की मांग
इसलिए यह एक गंभीर प्रश्न बन जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे एक गैर-पंजीकृत और गैर-जिम्मेदार संगठन को क्यों नहीं बंद किया जाता, जिसकी गतिविधियों और फंडिंग में कोई पारदर्शिता नहीं है; सवाल यह भी है कि आखिर क्यों भारत सरकार ऐसे संगठन को जेड प्लस जैसी उच्च स्तरीय सुरक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करती है, क्यों इसे पोसा जा रहा है, जबकि इसका इतिहास हिंसा, सांप्रदायिकता और देश की एकता को तोड़ने वाली घटनाओं से भरा रहा है, जैसे कि महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्तता के कारण 1948 में प्रतिबंध, इमरजेंसी में उत्पात के कारण 1975 में दूसरा प्रतिबंध, और बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद 1992 में तीसरा प्रतिबंध, जो इसके खतरनाक एजेंडे को स्पष्ट करते हैं। यह स्थिति और भी असंगत लगती है जब देश के आम नागरिक अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में देते हैं, वहीं दूसरी ओर संघ जैसे संगठन ‘बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स’ का बहाना बनाकर टैक्स-मुक्त रहते हैं, और अपनी अरबों रुपये की संपत्तियों, प्रचारकों की लग्जरी यात्राओं और महंगे होटलों पर कोई हिसाब-किताब नहीं देते, जिससे यह साफ होता है कि वे एक तरह से मुफ्त में सब कुछ हड़प रहे हैं। इसलिए, अब यह समय आ गया है कि इस संगठन पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगाया जाए, इसकी बेनामी संपत्तियों, फंडिंग स्रोतों और वित्तीय घपलों की एक उच्च स्तरीय और पारदर्शी जांच की जाए, ताकि देश की एकता, अखंडता और संवैधानिक जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सके और यह पता लगाया जा सके कि आखिर क्यों नीति आयोग जैसे संस्थान भी इसकी एनजीओ स्थिति पर जानकारी देने से इनकार कर देते हैं।।




