नई दिल्ली 3 अक्टूबर 2025
भारतीय राजनीति में एक पुरानी कहावत है—“सच बोला तो चोट लगेगी।” यही आज राहुल गांधी और बीजेपी के बीच की बहस में देखने को मिल रहा है। राहुल गांधी ने कोलंबिया की यूनिवर्सिटी में जाकर कहा कि भारत के लोकतंत्र पर हमला हो रहा है। यह बात उन्होंने किसी निजी दुश्मनी या चुनावी कटाक्ष में नहीं कही, बल्कि एक गंभीर मुद्दे को सामने रखते हुए कही। लेकिन जैसे ही उन्होंने यह बयान दिया, बीजेपी तिलमिला गई। सवाल है—यदि लोकतंत्र सुरक्षित है और सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है, तो फिर इतना गुस्सा क्यों?
याद कीजिए, नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं बने थे और यहां तक कि शुरुआती कार्यकाल में भी, तब वे विदेशों में जाकर भारत के बारे में कैसी-कैसी बातें कहा करते थे। उन्होंने कई बार यह कहा कि “ये भी कोई देश है, ये भी कोई लोग हैं, ये भी कोई सरकार है।” वे यह कहने से भी पीछे नहीं हटे कि “भारत को लोग सांप और सपेरों का देश मानते थे।” सवाल यह उठता है—क्या यह सब बातें भारत की गरिमा को बढ़ा रही थीं या घटा रही थीं? क्या यह अपने ही देश को बदनाम करने जैसा नहीं था?
इतिहास गवाह है कि नरेंद्र मोदी ने विदेशों में मंचों पर खड़े होकर कांग्रेस सरकारों पर तीखे हमले किए, उन्हें भ्रष्ट, निकम्मा और अक्षम करार दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि “पिछली सरकार के कारण भारत पिछड़ गया, दुनिया में मजाक बन गया।” क्या यह बयान भारत की छवि के खिलाफ नहीं थे? उस समय बीजेपी समर्थक इसे “साहस” और “खुलकर बोलना” कहते थे। लेकिन अब जब राहुल गांधी वही करते हैं—यानी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं, लोकतंत्र पर हो रहे हमले की बात करते हैं—तो बीजेपी इसे देशद्रोह बता देती है।
असल में फर्क यह है कि नरेंद्र मोदी की बातें अक्सर झूठ और अतिशयोक्ति पर आधारित थीं। उन्होंने “70 साल में कुछ नहीं हुआ” का नारा गढ़ा, जबकि सच्चाई यह है कि भारत ने आज़ादी के बाद से लेकर आईटी सेक्टर, अंतरिक्ष विज्ञान, हरे क्रांति और उद्योगों में दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई। उनके बयान अक्सर भावनात्मक और चुनावी फायदे के लिए थे।
इसके उलट, राहुल गांधी ने हमेशा वास्तविक मुद्दों पर बात की—लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले, नोटबंदी और GST से छोटे व्यापारियों की तबाही, किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी का संकट और बड़े कॉर्पोरेट घरानों को फायदा पहुँचाना। यह बातें कड़वी जरूर हैं, लेकिन हकीकत हैं। यही वजह है कि जब राहुल गांधी सच बोलते हैं, तो बीजेपी असहज हो जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या विदेशों में जाकर किसी नेता को अपनी राय नहीं रखनी चाहिए? अगर नरेंद्र मोदी यह कर सकते हैं, तो राहुल गांधी क्यों नहीं? फर्क बस इतना है कि मोदी ने झूठी और अतिरंजित बातें बोलीं, जबकि राहुल ने तथ्यात्मक और मुद्दा-आधारित सवाल उठाए।
तो फिर यही कहना पड़ेगा, “मैं तो रास्ते से जा रहा था, भेलपुरी खा रहा था… तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?” अगर सच बोलने से बीजेपी को मिर्ची लगती है, तो यह उनकी समस्या है, न कि राहुल गांधी की।