नई दिल्ली / लेह, 26 सितंबर 2025
लद्दाख में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार सक्रिय मोड में आ गई है। मोदी प्रशासन ने तुरंत दिल्ली से एक विशेष दूत भेजा है, जबकि लेह के उपराज्यपाल (LG) ने क्षेत्रीय अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों की आपात बैठक बुलाई है ताकि हालात को नियंत्रित किया जा सके और आगे की कार्रवाई तय हो सके।
क्या हुआ लद्दाख में?
24 सितंबर को लेह में राज्य-स्तर की माँगों को लेकर प्रदर्शन तेज़ हो गए, जिसमें प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं। प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाज़ी की, वाहन और बीजेपी कार्यालयों में आग लगाई गई। पुलिस ने आंसू गैस, लाठी और गोली का सहारा लिया। इस हिंसा में दो विरोधकारियों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हुए।
उप-क्षेत्रों जैसे करगिल में भी प्रदर्शन हुए और कर्फ्यू लगाया गया। सुरक्षा बलों ने सड़कों पर गश्त बढ़ाई और 50 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया।
मोदी सरकार का सक्रिय हस्तक्षेप
हिंसा की जानकारी मिलते ही केंद्र ने लेह की स्थिति पर नजर रखी और दिल्ली के उच्च स्तर पर समीक्षा शुरू की। एक केंद्रीय दूत को भेजा गया है, ताकि लद्दाख के स्थानीय प्रमुखों और जनप्रतिनिधियों से बातचीत की जा सके और एक समन्वित रणनीति तैयार हो सके।
साथ ही, लेह के LG ने प्रशासनिक अधिकारियों, सुरक्षा बलों और स्थानीय प्रतिनिधियों की आपात बैठक बुलाई है। बैठक में हालात की समीक्षा, मुआवज़ों, दोषियों की पहचान और पुनर्स्थापना की रणनीति पर विचार किया जाना बताया जा रहा है।
सरकार की चेतावनी एवं आरोप
केंद्र सरकार ने इस हिंसा के लिए सोनम वांगचुक को ज़िम्मेदार ठहराया है, यह कहते हुए कि उनकी बातों ने माहौल भड़काया। सरकार ने यह भी कहा कि विरोध प्रदर्शन को “युवा उकसाव” बताया जाना चाहिए और प्रदर्शनकारियों की बेकायदा गतिविधियों की जांच की जाएगी।
LG ने आरोप लगाया कि यह आंदोलन सिर्फ स्थानीय मामला नहीं है — उसमें बाहरी प्रेरणा शामिल हो सकती है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि प्रदर्शन को ‘बांग्लादेश-नेपाल’ की छात्र क्रांति फिल्मों से प्रेरित किया गया।
विवाद की जड़ और जनता की मांग
लद्दाख के लोगों की मांग है कि उन्हें संविधान स्तर की गारंटी मिले — छठी अनुसूची का दर्जा, राज्य की समानता और राजनीतिक अधिकार। पिछले वर्षों से यह आंदोलन चल रहा है।
लोगों का मानना है कि उन्हें वर्षों से उपेक्षा मिली है — सरकारी नौकरियाँ कम हैं, संसाधन सीमित हैं और संबद्ध संवैधानिक सुरक्षा नहीं है। इस संघर्ष में वांगचुक और अन्य नेताओं ने उपवास और शांतिपूर्ण आंदोलनों की रणनीति अपनाई। लेकिन जब उपवास कर रहे नेताओं की तबीयत बिगड़ी, तो नाराज़ युवा सड़क पर उतर गए और हिंसा भड़की।
आगे का मार्ग और चुनौतियाँ
मोदी सरकार को न केवल स्थिति को शांत करना होगा बल्कि भरोसा बहाल करना होगा। केंद्रीय दूत और LG की बैठकें सिर्फ शुरुआत हैं। अब कदम ठोस होने चाहिए — जांच, न्याय, मुआवज़े और संवैधानिक संवाद।
अगर सरकार इसमें असफल रही, तो लद्दाख में लंबे समय की अनिश्चितता जन्म ले सकती है। ऐसी अप्रिय घटनाएँ सीमांत क्षेत्रों में गहरी तनाव की झलक देती हैं — और केंद्र को यह देखने की ज़रूरत है कि क्या वह लगातार स्थिरता बनाए रख सकती है।