पटना, बिहार- 28 जुलाई 2025 : देश में प्रवासी श्रमिकों को चुनावी प्रक्रिया से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार द्वारा विकसित किया गया SIR पोर्टल (System for Internally Relocated Voters) ज़मीनी स्तर पर कितना कारगर है, इसको लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं कि बिहार के बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर इस पोर्टल के अस्तित्व से ही अनजान हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रवासी श्रमिकों की वोटिंग सुविधा की कवरेज और पहुंच में भारी खामी है।
इस सर्वेक्षण में सामने आया कि महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, गुजरात और हरियाणा जैसे औद्योगिक राज्यों में काम कर रहे बिहार के प्रवासी श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा ना तो SIR पोर्टल के बारे में जानता है, और ना ही उन्हें इस बात की जानकारी है कि वे अपने कार्यस्थल से भी वोट डाल सकते हैं। इससे लोकतांत्रिक भागीदारी के अधिकार से उनका वंचित रहना तय हो जाता है।
सर्वे में यह भी सामने आया कि इन प्रवासियों में से अधिकांश ने बताया कि उन्हें कभी कोई चुनाव आयोग या राज्य प्रशासन की तरफ से जागरूकता कार्यक्रम या जानकारी नहीं दी गई। इनमें से अधिकांश का कहना है कि यदि उन्हें प्रक्रिया की जानकारी होती और सुविधा मिलती, तो वे निश्चित रूप से अपने मताधिकार का प्रयोग करते।
बिहार चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि SIR पोर्टल का व्यापक प्रचार नहीं हो पाया है और ज़मीनी स्तर पर इसकी पहुंच अभी सीमित है। उन्होंने कहा कि आयोग आने वाले समय में इस दिशा में व्यापक प्रचार अभियान चलाने की योजना बना रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवासी वोटरों की उपेक्षा भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में गंभीर लोकतांत्रिक असंतुलन को जन्म देती है, खासकर तब जब प्रवासी श्रमिक देश की अर्थव्यवस्था और निर्माण कार्यों में रीढ़ की हड्डी की भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्षतः, SIR पोर्टल जैसे तकनीकी प्रयासों की सार्थकता तभी है जब वे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे और उनके उपयोग की सुविधा सरल एवं व्यावहारिक हो। बिहार के लाखों प्रवासी मतदाताओं की अनदेखी से यह स्पष्ट है कि केवल पोर्टल बनाना पर्याप्त नहीं, बल्कि ज़मीनी जागरूकता, प्रशिक्षण और व्यवस्था को मजबूत करना आवश्यक है — वरना लोकतंत्र का यह महत्वपूर्ण वर्ग हमेशा हाशिए पर ही रहेगा।