लिवरपूल 29 सितंबर 2025
ब्रिटेन की गृह मंत्री शबाना महमूद ने लेबर पार्टी के वार्षिक सम्मेलन में देश की आव्रजन नीति को लेकर एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि अब से माइग्रेंट्स को स्थायी निवास (Settled Status या Indefinite Leave to Remain) सिर्फ सालों की गिनती पूरी करने के आधार पर नहीं मिलेगा, बल्कि उन्हें यह साबित करना होगा कि उन्होंने ब्रिटिश समाज में योगदान दिया है। महमूद का कहना है कि आव्रजन नीति का मकसद केवल संख्या नियंत्रित करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि जो लोग ब्रिटेन को अपना घर बनाना चाहते हैं, वे समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति में सक्रिय भागीदारी करें।
महमूद ने स्पष्ट किया कि इस नए प्रस्ताव के तहत माइग्रेंट्स को उच्च स्तर की अंग्रेज़ी भाषा दक्षता साबित करनी होगी, निरंतर रोजगार का रिकॉर्ड दिखाना होगा, और उनके पास साफ़ आपराधिक रिकॉर्ड होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी जो सामुदायिक जीवन में सक्रिय हैं — चाहे वह स्वयंसेवा हो, चैरिटी वर्क हो या अन्य सामाजिक योगदान। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वर्तमान पाँच साल की अवधि, जिसके बाद Settled Status दिया जाता है, को बढ़ाकर दस साल करने पर विचार हो सकता है। यह सख्त कदम सरकार के इस संदेश का हिस्सा है कि ब्रिटेन “नियम-आधारित, योगदान-आधारित प्रवासन प्रणाली” चाहता है।
इस बयान ने ब्रिटेन में नई बहस छेड़ दी है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शरणार्थी संगठनों ने इस प्रस्ताव को “अत्यधिक कठोर” करार दिया है। उनका कहना है कि कई प्रवासी, विशेषकर शरणार्थी और कम आय वर्ग के लोग, शुरुआत में सरकारी सहायता पर निर्भर होते हैं और उन्हें तुरंत पूर्णकालिक रोजगार पाना आसान नहीं होता। अगर इस प्रस्ताव को कानून बना दिया गया तो हजारों लोग स्थायी निवास से वंचित हो सकते हैं, भले ही वे लंबे समय से ब्रिटेन में रह रहे हों। दूसरी ओर, महमूद का कहना है कि यह नीति “न्यायोचित और तार्किक” है क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि केवल वे लोग स्थायी निवासी बनें जो देश में सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं।
राजनीतिक दृष्टिकोण से यह कदम प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के लिए भी अहम है। ब्रिटेन में प्रवासन मुद्दा लंबे समय से चुनावी राजनीति का केंद्र रहा है। रिफॉर्म यूके जैसी पार्टियाँ ILR को पूरी तरह खत्म करने की मांग कर रही हैं, जबकि कंजरवेटिव पार्टी ने भी प्रवासन नियंत्रण को लेकर सख्त रुख अपनाया है। महमूद का यह बयान लेबर पार्टी को एक संतुलित स्थिति में दिखाने की कोशिश है — न तो पूरी तरह नरम, न ही अति-कठोर। यह संदेश उन ब्रिटिश मतदाताओं को दिया जा रहा है जो प्रवासन को लेकर चिंतित हैं लेकिन पूरी तरह बंदिशों के पक्ष में नहीं हैं।
यह प्रस्ताव अगर लागू हो जाता है तो लाखों प्रवासियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाएगा। खासतौर पर दक्षिण एशियाई समुदाय, अफ्रीकी देशों से आए लोग और यूरोप से आने वाले श्रमिक प्रभावित होंगे। विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति ब्रिटेन को “हाई-स्किल्ड और हाई-कॉन्ट्रिब्यूशन” प्रवासियों के लिए और आकर्षक बना सकती है, लेकिन साथ ही यह निम्न आय वर्ग के लिए मुश्किलें बढ़ाएगी और सामाजिक विभाजन को और गहरा कर सकती है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद और मीडिया में इस प्रस्ताव पर किस तरह की बहस होती है और क्या इसमें कोई संशोधन किया जाता है।
भारतियों पर इसका असर सबसे ज़्यादा पड़ने की संभावना है क्योंकि ब्रिटेन के वर्क वीज़ा, हेल्थ वीज़ा और स्टूडेंट वीज़ा धारकों में भारतीयों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। 2024 में जारी ब्रिटिश होम ऑफिस के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय नागरिकों को ब्रिटेन में जारी सभी वर्क वीज़ा का 38% से अधिक मिला था, और वे हेल्थ एवं केयर वर्कर वीज़ा में भी सबसे आगे रहे। इसके अलावा, भारतीय छात्र ब्रिटेन में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रेजुएशन के बाद काम करते हैं और पाँच साल बाद ILR (Indefinite Leave to Remain) के लिए आवेदन करते हैं।
अगर शबाना महमूद का प्रस्ताव लागू होता है और पाँच साल की अवधि को बढ़ाकर दस साल कर दिया जाता है, तो इन भारतीयों के स्थायी निवास के सपने को पूरा होने में दोगुना समय लगेगा। साथ ही, अंग्रेजी भाषा की दक्षता और लगातार रोजगार की सख्त शर्तें उन लोगों के लिए चुनौती बन सकती हैं जो छोटे शहरों में रहते हैं, अस्थायी नौकरियों में हैं या कोविड के बाद के आर्थिक संकट में नौकरी गंवा चुके हैं। यह बदलाव भारतीय आईटी सेक्टर, डॉक्टरों, नर्सों और हॉस्पिटैलिटी वर्करों पर सीधा असर डालेगा, क्योंकि वे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे रहे हैं लेकिन अब उन्हें यह साबित करना होगा कि वे समाज में “असाधारण योगदान” दे रहे हैं। प्रवासी संगठनों का कहना है कि अगर यह नीति सख्ती से लागू हुई तो यह भारतीय समुदाय में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकती है और स्थायी निवास पाने के लिए आर्थिक व सामाजिक दबाव और बढ़ जाएगा।