भारत और चीन के रिश्तों में लंबे समय से चली आ रही तल्ख़ी के बीच नई उम्मीद की किरण दिखाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच जारी संवाद को “Steady Progress” बताया। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब लद्दाख सीमा पर गतिरोध को कम करने के प्रयास तेज़ हुए हैं और दोनों देशों ने कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के नए दौर की शुरुआत की है।
बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और चीन के रिश्तों का आधार आपसी सम्मान और विश्वास होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सीमा पर शांति और स्थिरता दोनों देशों के बीच सहयोग को नई दिशा देने के लिए सबसे अहम है। वहीं, वांग यी ने भी रिश्तों को सामान्य करने की प्रतिबद्धता जताई और व्यापार तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने पर जोर दिया।
राजनयिक सूत्रों के मुताबिक, बैठक में सीमा विवाद, द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन और वैश्विक मंचों पर सहयोग जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। खासतौर पर लद्दाख और अरुणाचल क्षेत्र से जुड़े मसलों पर भारत ने अपने सख्त रुख को दोहराया और कहा कि किसी भी स्थायी समाधान के लिए चीन को जमीनी स्तर पर भरोसेमंद कदम उठाने होंगे।
पिछले कुछ वर्षों में गलवान घाटी की घटना के बाद भारत-चीन संबंधों में काफी तनाव देखने को मिला था। व्यापार और निवेश में कमी आई, सुरक्षा सहयोग पर रोक लगी और दोनों देशों के बीच आपसी अविश्वास गहराया। लेकिन हाल के महीनों में सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के बाद स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होता दिख रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुलाकात आने वाले महीनों में भारत-चीन संबंधों के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। क्योंकि दोनों देश न सिर्फ एशिया बल्कि पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालते हैं। यदि रिश्ते सामान्य होते हैं तो इससे व्यापार, निवेश और क्षेत्रीय शांति को बड़ा लाभ मिल सकता है।
फिलहाल, प्रधानमंत्री मोदी और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की इस मुलाकात ने यह संकेत ज़रूर दिया है कि “बातचीत का दरवाज़ा खुला है और आगे बढ़ने की गुंजाइश बनी हुई है।”