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ममता बनर्जी को सिर्फ बंगाली भाषी मुस्लिमों की चिंता : हिमंता बिस्वा

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गुवाहाटी/कोलकाता
18 जुलाई 2025

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा हमला बोला है। सरमा ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी की पूरी राजनीति केवल बंगाली भाषी मुस्लिम समुदाय को खुश करने पर केंद्रित है, और वह राष्ट्रीय सुरक्षा तथा घुसपैठ जैसे गंभीर मुद्दों की अनदेखी कर रही हैं।

क्या बोले हिमंता?

एक मीडिया बातचीत में असम के मुख्यमंत्री ने कहा, “ममता दीदी को अगर कोई चिंता है, तो वह केवल बंगाली बोलने वाले मुसलमानों की है — चाहे वे भारत के नागरिक हों या बांग्लादेश से अवैध रूप से आए हों। पश्चिम बंगाल घुसपैठियों का गढ़ बनता जा रहा है और तृणमूल कांग्रेस इसे वोट बैंक की तरह पाल रही है।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि तृणमूल सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और सीएए (CAA) जैसे मुद्दों पर जानबूझकर गलत सूचना फैला रही है ताकि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को मजबूती मिले।

TMC का पलटवार

इस बयान पर तृणमूल कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा, “हिमंता बिस्वा सरमा हर बार चुनावी राजनीति के लिए नफरत फैलाते हैं। बंगाल और ममता बनर्जी की छवि को बदनाम करना ही उनका मकसद है। लेकिन देश जानता है कि ममता दीदी सभी समुदायों की नेता हैं, न कि किसी खास मजहब की।”

राजनीतिक पृष्ठभूमि: पूर्वोत्तर और बंगाल की तल्खी

पूर्वोत्तर भारत में बढ़ती अवैध घुसपैठ, NRC, CAA और असम-बंगाल सीमा विवाद जैसे मुद्दे भाजपा और TMC के बीच राजनीतिक खाई को और चौड़ा कर चुके हैं। खासकर बांग्लादेश से सटे जिलों में जनसंख्या संतुलन बदलने को लेकर सरमा सरकार पहले भी चिंता जता चुकी है।

चुनावी समीकरण और ‘वोट बैंक’ की राजनीति

विशेषज्ञ मानते हैं कि हिमंता बिस्वा सरमा का यह बयान केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव 2026 की रणनीति का हिस्सा है। असम और बंगाल की सीमावर्ती सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं और बीजेपी यहां ‘संस्कृति बनाम घुसपैठ’ का नैरेटिव स्थापित करना चाहती है।

भाषा, धर्म और पहचान की राजनीति तेज

हिमंता का ममता पर यह सीधा हमला सिर्फ बंगाल की राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर वोट बैंक और पहचान की राजनीति को और धार देने वाला संकेत है। ऐसे बयानों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आने वाले महीनों में धार्मिक ध्रुवीकरण और घुसपैठ का मुद्दा चुनावी विमर्श का केंद्र बनने वाला है।

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