कोलकाता / नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर हमला बोला है, लेकिन इस बार उनके निशाने पर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रहे। उन्होंने चौंकाने वाला आरोप लगाते हुए कहा कि अमित शाह अब खुद को देश का “कार्यवाहक प्रधानमंत्री” समझने लगे हैं और वही फैसले कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री के दायरे में आते हैं। ममता ने प्रधानमंत्री मोदी को सीधे संबोधित करते हुए चेतावनी दी कि उन्हें अपने गृह मंत्री से सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि “मीर जाफर” जैसी प्रवृत्तियाँ राजनीति में किसी के लिए भी शुभ संकेत नहीं होतीं।
ममता बनर्जी ने कोलकाता में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा — “अमित शाह अब अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़ रहे हैं। वे हर राज्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं, अधिकारियों को निर्देश दे रहे हैं और अपने तरीके से शासन चलाने की कोशिश कर रहे हैं। यह साफ तौर पर ‘कार्यवाहक प्रधानमंत्री’ का व्यवहार है। मैं प्रधानमंत्री से आग्रह करती हूँ कि वे सावधान रहें। अमित शाह एक दिन उनके खिलाफ भी खड़े हो सकते हैं।” ममता के इस बयान ने न सिर्फ बंगाल बल्कि पूरे राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी है।
ममता बनर्जी ने अपने भाषण में ऐतिहासिक संदर्भ भी जोड़ते हुए कहा कि “इतिहास में मीर जाफर जैसे पात्र रहे हैं जिन्होंने अपने ही राजा के खिलाफ साजिश रची थी। मुझे डर है कि अमित शाह भी उसी राह पर हैं। उन्होंने बीजेपी को संगठन के भीतर से नियंत्रित करना शुरू कर दिया है और ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री अब केवल नाम के हैं जबकि असली सत्ता शाह के हाथों में केंद्रित होती जा रही है।” ममता ने यह भी कहा कि बीजेपी अब लोकतांत्रिक पार्टी नहीं रही, बल्कि “एकाधिकारवादी मानसिकता” से चल रही है, जहां हर निर्णय एक व्यक्ति द्वारा तय किया जाता है और शेष लोग केवल मुहर लगाते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी का यह बयान एक रणनीतिक हमला है, जो दोहरे स्तर पर केंद्र को चुनौती देता है। एक ओर यह बीजेपी के भीतर संभावित शक्ति-संघर्ष की चर्चा को हवा देता है, और दूसरी ओर विपक्षी दलों को एकजुट होने का मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करता है। बंगाल में पहले से ही बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच राजनीतिक टकराव चरम पर है। राज्य में कानून व्यवस्था, केंद्र से मिलने वाली योजनाओं के धन, और प्रशासनिक अधिकारों को लेकर दोनों दलों में लंबे समय से खींचतान चल रही है। ममता के इस नए बयान ने उस टकराव को एक व्यक्तिगत और वैचारिक लड़ाई में बदल दिया है।
ममता बनर्जी ने अपने भाषण में यह भी आरोप लगाया कि अमित शाह केंद्र की सभी संवैधानिक संस्थाओं को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “सीबीआई, ईडी, एनआईए जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल अब राजनीतिक हथियार की तरह किया जा रहा है। यह सब मोदी जी के नाम पर हो रहा है, लेकिन असली खेल अमित शाह खेल रहे हैं। प्रधानमंत्री को यह समझना होगा कि अगर वे चुप रहे तो एक दिन यह सत्ता उन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल की जाएगी।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि बीजेपी ने अब संघीय ढांचे की मर्यादा तोड़ दी है, और “राज्यों की स्वायत्तता खत्म करने का अभियान” चल रहा है।
बीजेपी ने ममता बनर्जी के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी नेताओं ने इसे “निराधार, राजनीतिक रूप से प्रेरित और व्यक्तिगत टिप्पणी” बताया। बीजेपी के प्रवक्ता ने कहा कि “ममता बनर्जी की राजनीति पूरी तरह दिशाहीन हो चुकी है। जब विकास के मुद्दों पर उनके पास जनता को बताने के लिए कुछ नहीं होता, तो वे ऐसे विवादित बयान देकर सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश करती हैं।” बीजेपी का कहना है कि अमित शाह देश के गृह मंत्री हैं और संविधान के दायरे में रहकर काम कर रहे हैं, जबकि ममता बनर्जी केंद्र की संस्थाओं से असहज महसूस करती हैं क्योंकि वे उनके भ्रष्टाचार पर कार्रवाई कर रही हैं।
राजनीतिक गलियारों में इस बयान को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी विपक्षी एकता का केंद्र बनने की कोशिश कर रही हैं, और इसलिए वह बीजेपी नेतृत्व के भीतर की संभावित दरारों को उभारने की कोशिश कर रही हैं। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान ममता बनर्जी की “राष्ट्रीय राजनीति” में वापसी का संकेत है। 2026 के लोकसभा चुनाव से पहले वह खुद को मोदी के सीधे मुकाबले में प्रस्तुत करना चाहती हैं।
कुल मिलाकर, ममता बनर्जी के इस बयान ने भारतीय राजनीति में एक नया विमर्श छेड़ दिया है। अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में वाकई शक्ति का असंतुलन है? क्या अमित शाह प्रधानमंत्री की छाया से आगे बढ़ रहे हैं? और क्या ममता बनर्जी का यह बयान सिर्फ राजनीतिक शोर है या किसी गहरी सच्चाई की ओर इशारा करता है? इन सवालों के जवाब आने वाले समय में भारतीय राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं।