भोपाल 3 अक्टूबर 2025
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। एक सरकारी स्कूल के शिक्षक बाबलू दंडोळिया और उनकी पत्नी राजकुमारी ने डर की ऐसी सीमा पार कर दी कि उन्होंने अपने नौ माह का चौथा बच्चा जंगल में छोड़ दिया — आरोप है कि वे यह कदम इस डर से उठाए कि यदि चौथा बच्चा सामने आ गया तो बाबलू की सरकारी नौकरी चली जाएगी।
घटना 23 सितंबर को हुई जब राजकुमारी ने घर में ही बच्चे को जन्म दिया। तीन दिन बाद, 26 सितंबर की रात को, दंपत्ति बच्चे को मोटरसाइकिल पर जंगल ले गए, उसे एक बड़े पत्थर के नीचे दबा दिया और वहां छोड़ दिए। अगली सुबह कुछ ग्रामीणों ने बच्चे की रोने की आवाज सुनी और पत्थर हटाकर देखा तो मासूम जिंदा मिला—बुझी उम्मीदों की लौ जिंदी थी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने बताया कि वह ठंड, कीड़ों के काटने और पानी-बिन हालत से जूझ रहा था।
जब पुलिस ने इस मामले की तहकीकात शुरू की, तो दंपत्ति को हिरासत में लिया गया। शुरुआत में उन्हें केवल बच्चे को छोड़ने (अवन्तन) का आरोप लगाया गया, लेकिन जब एक वीडियो सामने आया जिसमें बच्चे को पत्थरों के नीचे दबाया गया दिखता है, तो उन पर हत्या का प्रयास (attempt to murder) का आरोप भी लगाया गया।
पुलिस पूछताछ में दंपत्ति ने स्वीकार किया कि वे इस कदर नौकरी खोने का डर रखते थे कि उन्होंने तीसरे बच्चे को सरकारी रिकॉर्ड से छुपाने की कोशिश की थी, और चौथे की स्थिति को छुपाने में ऐसे अंधे कदम उठाए।
इस पूरे मामले ने मध्य प्रदेश में सरकारी कर कर्मचारियों के “दो बच्चों की नीति” के विवाद को भी फिर से उभारा है। इस नीति के तहत, 26 जनवरी 2001 के बाद जन्मे दो से अधिक बच्चों वाले सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से अयोग्य ठहराया जा सकता है। पर यह स्पष्ट नहीं है कि यह नियम वर्तमान कर्मचारियों पर कैसे लागू होगा।
मासूम की जिंदगी बमुश्किल बची है, लेकिन उसकी यातना और इस घटना की भयावहता इस बात का गवाह है कि जब इंसान अपने डर और सामाजिक दबाव को ज्यादा ऊँचा रख ले, तो कैसे निर्दोषों की जान की कीमत चुकानी पड़ सकती है। आज वह बच्चा अस्पताल की बेड पर संघर्ष कर रहा है — और हमारे समाज पर एक कटाक्ष है।