नई दिल्ली, 21 सितंबर 2025
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने हाल ही में न्यायिक सुधारों और अदालतों में फैसलों की गुणवत्ता पर बड़ा बयान दिया। उनका कहना था कि जजों को अपने फैसलों में केवल न्याय से मोहब्बत होनी चाहिए, पैसों या किसी बाहरी दबाव से नहीं। न्यायपालिका में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि जज सिर्फ कानून और न्याय के प्रति ईमानदार रहें, ताकि आम जनता का विश्वास अदालतों में बना रहे।
CJI गवई ने सुधारों की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप न्यायपालिका को तेजी से अपडेट करना होगा। डिजिटलाइजेशन और तकनीकी सुधार के माध्यम से मामलों का निपटारा तेज़ किया जा सकता है और लंबित मामलों की संख्या घटाई जा सकती है। न्यायपालिका का उद्देश्य केवल नियमों का पालन नहीं बल्कि समाज में विश्वास और न्याय का संतुलन बनाए रखना भी है। गवई ने चेतावनी दी कि अगर जजों के फैसलों पर पैसों या बाहरी दबावों का प्रभाव पड़े तो यह न केवल न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाएगा।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह नैतिक अपील मोदी काल में न्यायपालिका के कई विवादास्पद फैसलों की आलोचना को झुठला पाएगी। पीएम मोदी के करीबी सहयोगियों से जुड़े राजनीतिक और आर्थिक मामलों में अदालतों द्वारा दिए गए कुछ निर्णय, और उद्योगपतियों या प्रभावशाली तीसरी पार्टियों के पक्ष में आए विवादित फैसले, कई लोगों के लिए संदेह और आलोचना का कारण बने। ऐसे मामलों ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और आम जनता में विश्वास को चुनौती दी। ऐसे में गवई का संदेश—हालांकि तार्किक और नैतिक रूप से सही—कुछ हद तक नाकाम रहने की संभावना रखता है, क्योंकि न्याय के प्रति जनता का भरोसा केवल अपील और सुधारात्मक बयान से बहाल नहीं हो सकता।
यानी, गवई का बयान एक महत्वपूर्ण संकेत है कि न्यायपालिका अपनी छवि और निष्पक्षता पर काम कर रही है, लेकिन वास्तविक न्याय और जनता का भरोसा सुनिश्चित करना, विशेषकर राजनीतिक दबाव और विवादास्पद फैसलों के दौर में, एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।