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प्रेम पाने का नहीं, उसमें डूब जाने का नाम है—”कृष्ण का अमर संदेश”

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गिरिजेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार (संपादक KnockingNews)


आज से हजारों वर्ष पूर्व जब श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ, तब दुनिया को पहली बार ऐसा देवता मिला जिसने जीवन का अर्थ केवल एक शब्द में समेट दिया—प्रेम। उनका बचपन, उनकी शरारतें, उनका संगीत, उनकी वाणी—सबकुछ प्रेम से ओतप्रोत रहा। यही कारण है कि उनके जीवन की हर झलक इंसान को मोहब्बत की राह पर चलने की प्रेरणा देती है।

बचपन का निश्छल प्रेम

कन्हैया के बचपन की लीलाएँ बताती हैं कि वे केवल मां यशोदा के नहीं, पूरे गांव के लाड़ले थे। गोकुल की स्त्रियाँ उन्हें दूध पिलाती थीं और उनके माखन चुराने पर भी हंसकर झिड़कती थीं। यहाँ तक कि जब वह कपड़े छिपाते या शरारत करते तो भी लोगों के मन में शिकायत नहीं, बल्कि और गहरा लगाव ही पैदा होता। यही निश्छलता प्रेम का असली रूप है, जिसमें कोई शिकायत नहीं होती—सिर्फ अपनापन होता है।

राधा और गोपियों का अमर प्रेम

श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम आज भी दुनिया के हर कोने में अमर कथा की तरह गाया जाता है। यह प्रेम किसी स्वार्थ या अपेक्षा पर आधारित नहीं था, बल्कि उसमें केवल समर्पण और आत्मविस्मृति थी। गोकुल की गोपियाँ जब उनकी मुरली सुनतीं तो सबकुछ भूलकर उनके सम्मुख खड़ी हो जातीं। यही प्रेम का सर्वोच्च रूप है—जहाँ इंसान अपना अहं, तर्क और सीमा सब त्याग देता है।

सुभद्रा और अर्जुन का प्रसंग

कृष्ण का प्रेम केवल रोमांटिक या दार्शनिक नहीं था, उसमें व्यावहारिकता भी थी। जब उनकी बहन सुभद्रा अर्जुन के प्रेम में पड़ीं तो कृष्ण ने बलराम की नाराज़गी की परवाह न करते हुए सुभद्रा को भाग जाने की सलाह दी। यह दिखाता है कि सच्चा प्रेम बंधन या रोकटोक का विषय नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और सम्मान का प्रतीक है।

पशु-पक्षियों और प्रकृति से लगाव

श्रीकृष्ण का हृदय इतना विशाल था कि उसमें केवल इंसानों के लिए ही नहीं, पशु-पक्षियों और प्रकृति के लिए भी गहरा प्रेम था। गायें उनकी सबसे प्रिय थीं। मोर के पंख उन्होंने अपने मुकुट में सजाए। यहाँ तक कि उनके पास दो कुत्ते—व्याघ्र और भ्रमरक—भी थे। बहुत से लोग यह नहीं जानते, परंतु यह सच है कि कृष्ण हर जीव को प्रेम से गले लगाते थे। यही असली हिंदू धर्म का सार है—जहाँ किसी का निषेध नहीं, सब अंगीकार है।

कदंब के पेड़ों पर चढ़कर बांसुरी बजाना और गोकुलवासियों को प्रेममय वातावरण में डुबो देना, कृष्ण की प्रकृति-प्रेम की झलक है। वह वृक्ष, नदियाँ, पर्वत—सबको अपने हृदय में जगह देते थे।

संगीत और प्रेम का गहरा रिश्ता

श्रीकृष्ण की मुरली केवल संगीत नहीं थी, वह प्रेम का माध्यम थी। जब उनकी बांसुरी की धुन गूंजती तो मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी तक सम्मोहित हो जाते। सूरदास ने उद्धव और गोपियों का संवाद लिखकर यही दर्शाया कि प्रेम का तर्क किसी शास्त्र या तत्त्वज्ञान से नहीं, बल्कि हृदय से समझा जा सकता है। गोपियाँ उद्धव को समझाती हैं कि कृष्ण में खो जाना ही उनका जीवन है। यह संवाद प्रेम का पूरा “विश्वविद्यालय” है।

शास्त्रों में कृष्ण-प्रेम

कृष्ण-प्रेम पर संतों और कवियों ने अनगिनत पंक्तियाँ लिखीं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं—

“कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः। जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम।।”

“मो उर में निज प्रेम अस, परिदृढ़ अचलित देहू। जैसे लोटन-दीप सों, सरक न ढुरक सनेहु॥”

“कृष्ण प्राणमयी राधा, राधा प्राणमयो हरिः। कृष्ण द्रवमयी राधा, राधा द्रवमयो हरिः॥”

गीता का संदेश: प्रेम में समर्पण

श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण स्वयं कहते हैं कि प्रेम किसी को पाने का साधन नहीं, बल्कि उसमें खो जाने का मार्ग है। प्रेम का अर्थ है त्याग—स्वार्थ छोड़कर समर्पण करना।

आज की ज़रूरत: कृष्ण का प्रेम

आज जब दुनिया नफरत, संकीर्णता और हिंसा से भरी हुई है, तब कृष्ण का प्रेम सबसे बड़ा संदेश बनकर सामने आता है। उन्होंने सिखाया कि प्रेम में कोई हिसाब-किताब नहीं होता, न ही अधिकार की जिद होती है। प्रेम केवल समर्पण है।

इस जन्माष्टमी पर कृष्ण का यही अमर संदेश हर व्यक्ति को याद रखना चाहिए—प्रेम मांगने या पाने का नहीं, बल्कि उसमें डूब जाने और उसे बांटने का नाम है।

 

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