नई दिल्ली / लखीमपुर खीरी, 8 अक्टूबर 2025
लखीमपुर खीरी कांड से जुड़ा बड़ा अपडेट सामने आया है। किसानों को थार गाड़ी से कुचलकर मारने के आरोप में जेल जा चुके केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के मामले में अब खुद मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर गवाहों को धमकाने का मुकदमा दर्ज किया गया है।
यह वही मामला है जिसने 2021 में पूरे देश को हिला दिया था — जब किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे की थार जीप ने किसानों को रौंद डाला था। अब, इस नृशंस घटना के गवाहों पर लगातार बढ़ते दबाव और धमकियों के आरोप सामने आने के बाद, मामला फिर से सुर्खियों में है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद FIR दर्ज
गवाह बलजिंदर सिंह ने अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि उन्हें लगातार धमकाया जा रहा है, उनका पीछा किया जा रहा है, और उनकी जान को खतरा है। इसके बावजूद पुलिस कार्रवाई से बचती रही।
4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई, यह कहते हुए कि “आप गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे हैं।” इसी के बाद देर रात FIR दर्ज की गई।
यह FIR न सिर्फ गवाह की सुरक्षा का सवाल है, बल्कि यह पूरे किसान आंदोलन की न्यायिक विश्वसनीयता से जुड़ा मुद्दा है। क्योंकि अगर गवाहों को ही डराकर चुप कराया जाएगा, तो न्याय का क्या अर्थ रह जाएगा?
गवाह को छोड़नी पड़ी ज़मीन और घर
गवाह बलजिंदर सिंह की स्थिति बेहद चिंताजनक बताई जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें लगातार धमकियां मिलती रहीं — जिसके चलते उन्होंने अपनी जमीन और घर छोड़कर कहीं और शरण ले ली। यह घटना साबित करती है कि सत्ता के दबाव और ताकतवरों के संरक्षण में न्याय की नींव हिलाने की कोशिशें जारी हैं।
बलजिंदर सिंह ने कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता, तो शायद उनकी जान नहीं बचती। उनके इस बयान ने फिर से उस काले अध्याय की याद दिला दी है, जब लखीमपुर की सड़कों पर किसानों का खून बहा था और सत्ता मौन थी।
किसानों के अधिकारों की लड़ाई — अधूरी नहीं छोड़ी जाएगी
देशभर के किसान संगठनों से अब आवाज़ उठने लगी है कि इस मामले में अजय मिश्रा टेनी की भूमिका की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। किसान नेताओं का कहना है कि जब गवाहों पर हमला होता है, तो यह केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पूरा किसान आंदोलन डराने की कोशिश होती है। अब वक्त आ गया है कि किसान संगठन इस मुद्दे को एकजुट होकर उठाएं — ताकि न्याय की इस लड़ाई को सत्ता के दबाव में अधूरा न छोड़ा जाए।
“यह सिर्फ लखीमपुर का मामला नहीं, यह किसानों की अस्मिता का प्रश्न है”
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक अपराध या एक गवाही का नहीं है — यह उस संघर्ष का प्रतीक है जो किसान आज भी अपनी गरिमा और हक के लिए लड़ रहे हैं। लखीमपुर की मिट्टी आज भी उन चार किसानों के खून से लाल है, जिनके लिए न्याय अभी अधूरा है। और जब न्याय में देरी होती है, तो यह अन्याय की सबसे बड़ी जीत होती है।
सत्ता बनाम किसान — फिर से शुरू हुआ संघर्ष
FIR दर्ज होना एक शुरुआत है, लेकिन अंत नहीं। अब सवाल है — क्या गवाहों को सुरक्षा मिलेगी? क्या मंत्री के खिलाफ सच्ची जांच होगी? या फिर यह मामला भी अन्य राजनीतिक मामलों की तरह धीरे-धीरे फाइलों में दफन हो जाएगा? देश का हर किसान, हर नागरिक और हर संवेदनशील इंसान अब सिर्फ एक ही बात कह रहा है — “न्याय को सत्ता से बड़ा होना होगा, तभी लोकतंत्र ज़िंदा रहेगा।”