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खेड़ा का तमाचा गोदी मीडिया को: सत्ता की दलाली बंद कर सच दिखाओ तो हम फिर आएंगे डिबेट में…

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नई दिल्ली | राजनीतिक ब्यूरो रिपोर्ट 17 अक्टूबर 2025

 कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आज मीडिया जगत में एक ऐसा भूचाल ला दिया है, जिसकी गूँज लंबे समय तक सत्ता के गलियारों और न्यूज़ रूम्स में सुनाई देगी। खेड़ा ने अपने सटीक और तीखे तंज़ से, सीधे देश की “गोदी मीडिया क्वीन” (सत्ता-समर्थक मीडिया) के गाल पर एक ज़ोरदार राजनीतिक तमाचा जड़ा है, जिसने भारत में पत्रकारिता के गिरते स्तर पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। उन्होंने मौजूदा राष्ट्रीय संकट पर कटाक्ष करते हुए एक अत्यंत मार्मिक और व्यंग्यात्मक टिप्पणी की, जिसने मीडिया के पाखंड को बेनक़ाब कर दिया: “The crisis is so serious that even Times Now is reporting it.” (मतलब: देश के हालात और आर्थिक संकट इतने गंभीर हो चुके हैं कि अब तो टाइम्स नाउ जैसे चैनल भी अपनी सत्ता-समर्थक लाइन छोड़कर बेरोज़गारी और वास्तविक मुद्दों पर बोलने लगे हैं!) 

खेड़ा का यह बयान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस अब न केवल सरकार से, बल्कि सरकार की कठपुतली बने मीडिया हाउसों से भी सीधे और आक्रामक टकराव के मूड में है, और वह सत्ता के प्रचारतंत्र को ध्वस्त करने की खुली चुनौती दे रही है।

5.2% बेरोज़गारी दर और सरकारी तंत्र की आपराधिक चुप्पी — अर्थव्यवस्था के पतन का स्पष्ट प्रमाण

पवन खेड़ा का यह तीखा हमला एक गंभीर राष्ट्रीय संकट की पृष्ठभूमि में आया है, जिसे सरकार और मीडिया दोनों लगातार नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। देश में बेरोज़गारी दर सितंबर के महीने में बढ़कर 5.2% के चिंताजनक स्तर पर पहुँच गई है, जिसका सबसे बड़ा और विनाशकारी कारण ग्रामीण भारत में रोजगार के अवसरों की भयावह तबाही है। 

खेड़ा ने ज़ोर देकर कहा कि यह आँकड़ा केवल एक संख्या नहीं है; यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘रोज़गार सृजन’ के खोखले दावों और उनकी सरकार की आर्थिक असफलता की एक सजीव गवाही है। उन्होंने सत्ता पर सीधा वार करते हुए कहा — “देश का रोज़गार पूरी तरह से डूब गया है, किसान भीषण क़र्ज़ और सूखे से कराह रहे हैं, नौजवानों के सपनों पर पेपर लीक और परीक्षा घोटालों की लगातार मार पड़ रही है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री इन गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों को छोड़कर केवल विदेशी दौरों और ‘फोटो ऑप्स’ में मशगूल हैं, जहाँ से देश को कोई ठोस कूटनीतिक या आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है।” यह टिप्पणी सरकार की प्राथमिकता और संवेदनहीनता पर एक सीधा सवाल है।

‘गोदी मीडिया क्वीन’ पर खुला वार: “जब तक सत्ता की कठपुतली रहेंगे, हम आपके मंच पर नहीं आएंगे!”

पवन खेड़ा पर ‘गोदी मीडिया’ ने तंज किया था कि बहिष्कार के बावजूद उन्हें फॉलो करते हैं। नाविका कुमार ने लिखा था — “Despite banning spokespersons from our debates, thanks for watching & following us every minute. Loyal viewership appreciated.” (हमारे प्रवक्ताओं को अपने डिबेट से बैन करने के बावजूद, हमें हर मिनट देखने और फॉलो करने के लिए आपका धन्यवाद। आपकी वफ़ादार दर्शक संख्या की सराहना की जाती है।) 

इस पर पवन खेड़ा ने कहा: “The day your channel rediscovers the courage to speak truth to power, our party will gladly join your shows for constructive discussions.” यानी, कांग्रेस का संदेश एकदम साफ़ है — जब तक तथाकथित “गोदी मीडिया” सच बोलने और सत्ता से सवाल पूछने का नैतिक साहस नहीं जुटाएगी, तब तक कांग्रेस का बहिष्कार जारी रहेगा। 

यह बहिष्कार इसलिए है क्योंकि जब तक “प्रो-मोदी” एजेंडा, देश के हितों की अनदेखी करते हुए, “एंटी-इंडिया” के नाम पर थोपने की कोशिश की जाएगी, कांग्रेस अपने प्रवक्ताओं को ऐसे पाखंडी मंचों पर भेजकर इस प्रोपेगेंडा का हिस्सा नहीं बनेगी।

पाँच मोर्चों पर मोदी सरकार से जवाबदेही का आह्वान — मीडिया अब जनता का साथ दे!

पवन खेड़ा ने सरकार को घेरने के लिए पाँच सबसे महत्त्वपूर्ण मोर्चों पर लगातार और तीखे सवाल उठाए, और साथ ही मीडिया से भी यह आह्वान किया कि वे अब जनता के साथ मिलकर इन सवालों को सरकार से दोहराएँ।

  1. भ्रष्टाचार (Corruption) — निशिकांत दुबे की संपत्ति वृद्धि से लेकर अडानी समूह तक, हर जगह रिश्वत और बड़े घोटालों पर एक्शन कब होगा? 
  1. परीक्षा घोटाले (Paper Leaks) — नौजवानों का भविष्य सरकार की संगठनात्मक नालायकी के कारण जल गया, इसका ज़िम्मेदार कौन है? 
  1. बेरोज़गारी (Unemployment) — देश के हर सेक्टर में नौकरियाँ क्यों गायब हैं, और सरकार केवल जीडीपी के झूठे भ्रम क्यों फैला रही है? 
  1. विदेश नीति (Foreign Policy) — मोदी के दौर में भारत की कूटनीति गंभीर मुद्दों के बजाय सिर्फ़ “photo ops” (फोटो खिंचवाने) में क्यों सिमट गई है? 
  1. आत्मसमर्पण (Surrenders) — चीन से लेकर कश्मीर के संवेदनशील आंतरिक मुद्दों तक, नरेंद्र मोदी का “मौन समर्पण” कब खत्म होगा? 

खेड़ा ने मीडिया को उसके कर्तव्य की याद दिलाते हुए कहा — “Question the government for five consecutive days. Hold it accountable. That’s your job, not our invitation!” (पाँच लगातार दिनों तक सरकार से सवाल पूछो। उसे जवाबदेह बनाओ। यही आपका काम है, इसके लिए हमारे निमंत्रण की ज़रूरत नहीं है!)

गोदी मीडिया की रीढ़ टूट चुकी है — लेकिन जनता का भरोसा अब सवालों में बदल रहा है

पवन खेड़ा ने अपने वक्तव्य में ‘गोदी मीडिया’ की चुप्पी और पक्षपात पर देश की जनता के बढ़ते ग़ुस्से को आवाज़ दी। उन्होंने तंज़ कसते हुए कहा कि जनता अब पूरी तरह से यह बात समझ चुकी है कि कैसे “न्यूज़” के नाम पर चौबीसों घंटे केवल सत्ता का प्रचार, और “डिबेट” के नाम पर शोर-शराबा बेचा जा रहा है। खेड़ा ने तीखा निष्कर्ष निकालते हुए कहा — “पत्रकारिता तब तक पत्रकारिता नहीं कहलाएगी, जब तक वो सत्ता से सीधे, निर्भीक और असहज सवाल पूछने का नैतिक हौसला नहीं दिखाएगी। 

आज की मीडिया सरकार की माइक बन चुकी है — लेकिन याद रखना चाहिए, हर माइक की बैटरी एक दिन ख़त्म होती है, और जब ये बैटरी ख़त्म होगी, तो जनता का ग़ुस्सा उस आवाज़ से कहीं ज़्यादा बुलंद होगा।” कांग्रेस प्रवक्ता का यह बयान केवल एक राजनीतिक स्टैंड नहीं है; यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी और विश्वसनीयता की याद दिलाने वाला एक ऐतिहासिक “तमाचा” है, जो स्पष्ट करता है कि ‘गोदी मीडिया क्वीन’ का युग अब ढलान पर है और जनता का भरोसा अब सवालों में बदल रहा है।

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