केरल के शांत माने जाने वाले कोलवल्लूर (Kolvallur) इलाके से आई एक सनसनीखेज़ ख़बर ने पूरे देश के राजनीतिक और सुरक्षा ढाँचे को हिला कर रख दिया है। स्थानीय पुलिस द्वारा एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक के घर से 770 किलोग्राम विस्फोटक (Explosives) की भारी मात्रा में बरामदगी की पुष्टि की गई है, जो अपने आप में एक भयानक और सीधा सवाल खड़ा करती है। स्थानीय पुलिस सूत्रों के अनुसार, बरामद किए गए बारूद की मात्रा इतनी विशाल है कि इसका उपयोग करके किसी छोटे शहर या आबादी वाले क्षेत्र को पूरी तरह से दहलाया जा सकता था, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता। ‘मीडिया वन’ और ‘देशाभिमानी’ जैसे क्षेत्रीय मीडिया घरानों ने इस विस्फोटक ख़बर को ज़ोरदार ढंग से प्रकाशित किया है, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया का एक बड़ा और प्रभावशाली तबका इस ख़बर पर अपमानजनक चुप्पी साधे हुए है — यह चुप्पी अपने आप में एक बड़ा बयान है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस ‘तंत्र’ को किसी ने “ऊपर से आदेश” दे रखा है कि ‘संघ’ जैसे संवेदनशील संगठन का नाम ज़ोर से न लिया जाए और इस घटना को दबा दिया जाए। यह चुप्पी न केवल पत्रकारिता के मूल्यों का पतन है, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा के साथ घोर खिलवाड़ भी है।
आरएसएस के घर में बारूद की फैक्ट्री — और केंद्र सरकार की रहस्यमय चुप्पी
यह विडंबना और पाखंड की पराकाष्ठा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसकी पितृ संस्था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), दिन-रात सार्वजनिक मंचों से “राष्ट्रवाद,” “संस्कार,” “देशभक्ति” और “भारत माता की जय” की दुहाई देते नहीं थकते। लेकिन जब ख़ुद उन्हीं के एक ज़िम्मेदार प्रचारक के घर से सैकड़ों किलोग्राम की भारी मात्रा में बारूद, बम और विस्फोटक सामग्री बरामद होती है, तो यह मामला महज़ एक ‘कानूनी जांच’ का विषय नहीं रह जाता — यह सीधे-सीधे भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक विशाल और आसन्न ख़तरे की घंटी बन जाता है। सवाल सीधा और तीखा है: आख़िर क्यों किसी “संघी” प्रचारक के निजी घर में इतनी भारी मात्रा में युद्ध जैसा विस्फोटक रखा जा रहा था? क्या देश के गृहमंत्री, जो ख़ुद संघ से जुड़े रहे हैं, को इसकी कोई ख़ुफ़िया जानकारी नहीं थी — या फिर इस पूरे आपराधिक कृत्य पर “वरद हस्त” (आशीर्वाद रूपी संरक्षण) उन्हीं का था? यह कल्पना करना भी भयावह है कि अगर किसी अन्य अल्पसंख्यक संगठन, या किसी विपक्षी दल के कार्यकर्ता के घर से इतनी मात्रा में बारूद निकलता, तो अब तक पूरे देश में “देशद्रोह” और “आतंकवाद” के नारे गूँज रहे होते और दिल्ली से लेकर मुंबई तक राष्ट्रीय जाँच एजेंसियों (NIA) की टीमें कार्रवाई कर रही होतीं, लेकिन चूंकि आरोपी संघ परिवार से जुड़ा हुआ है, इसलिए भारत की राजधानी दिल्ली के गलियारों में एक भयावह और अर्थपूर्ण खामोशी पसरी हुई है।
बीजेपी और आरएसएस का असली चेहरा: बाहर राष्ट्रवाद का मुखौटा, भीतर आतंक की तैयारी
यह घटना इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि जो लोग दिन-रात ‘जय श्रीराम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हैं, और खुद को ‘राष्ट्रवादी’ होने का इकलौता ठेकेदार बताते हैं, दरअसल वही लोग देश के भीतर दहशत और विध्वंस की फैक्ट्री चला रहे हैं। 770 किलो विस्फोटक किसी पटाखे या फुलझड़ी की दुकान का माल नहीं होता — यह एक संगठित आपराधिक साज़िश और आतंकी मंशा का स्पष्ट और निर्विवाद सबूत है। विपक्ष पर हर बात पर झूठे आरोप लगाने वाली और उन्हें ‘देशद्रोही’ कहने वाली बीजेपी को अब सामने आकर देश को जवाब देना चाहिए: आख़िर उसकी वैचारिक पितृ संस्था (आरएसएस) के प्रचारक के पास इतनी ख़तरनाक और विध्वंसक सामग्री किस उद्देश्य से जमा थी? क्या यही वो “संस्कार” हैं जिनकी दुहाई प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सरकार हर चुनावी रैली में देती है? क्या यही वो “राष्ट्रवाद” है — जिसमें देश की एकता और शांति को तार-तार करने के लिए बारूद से देशभक्ति नापी जाती है? यह साफ़ है कि इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश आंतरिक मिलीभगत और राजनीतिक संरक्षण के बिना संभव नहीं है।
बारूद की राजनीति: सत्ता का सबसे वीभत्स और डरावना खेल
सच्चाई यह है कि आरएसएस और बीजेपी अब ‘राष्ट्र निर्माण’ नहीं, बल्कि “बारूद की राजनीति” खेल रहे हैं। हर चुनाव से पहले समाज में नफ़रत का ज़हर घोलना, झूठे मुद्दे उछालना, और डर का माहौल बनाकर दंगे तथा अशांति फैलाना — यही इनकी पुरानी, घिनौनी और सफल रणनीति रही है। केरल का यह मामला उसी ख़तरनाक और देशद्रोही सोच का सबसे ताज़ा और सबसे भयानक उदाहरण है, जहाँ राष्ट्रवाद की आड़ में देश को अंदर से कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है। अगर मोदी-शाह की यह सरकार वास्तव में ईमानदार है, और वह ‘सबका साथ, सबका विकास’ के अपने नारे में ज़रा भी विश्वास रखती है, तो उसे तुरंत तीन कड़े कदम उठाने चाहिए: पहला, इस पूरे विस्फोटक कांड की जांच एनआईए (NIA) जैसी केंद्रीय एजेंसी से कराई जाए, जिसमें जांच की प्रगति सार्वजनिक हो; दूसरा, देश भर में आरएसएस के सभी दफ्तरों और शाखाओं पर आकस्मिक छापे मारकर हर तरह के विस्फोटक और हथियार की तलाशी ली जाए; और तीसरा, देश के गृहमंत्री को स्वयं आगे आकर पूरे राष्ट्र को जवाब देना चाहिए कि आख़िर क्यों “राष्ट्रवाद” की आड़ में देश की शांति को भंग करने के लिए इतना बड़ा बारूद का जखीरा जमा किया जा रहा था।
जनता को अब तय करना होगा — देश की सुरक्षा या बारूद की राजनीति का समर्थन?
भारत की आम जनता को अब अपनी आँखें खोलने और इस भयावह पाखंड को पहचानने की ज़रूरत है। ये वही लोग हैं जो बाहर से ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हैं, लेकिन भीतर से उसी भारत को बारूद के ढेर पर बैठाकर अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति करना चाहते हैं। बीजेपी और आरएसएस का असली, खूनी और भयानक चेहरा अब सामने आ गया है: “बाहर राष्ट्रवाद का मुखौटा, और भीतर आतंक की घिनौनी तैयारी!” देश की जनता को यह बात गहराई से समझनी होगी कि अब यह सिर्फ़ किसी चुनाव या किसी राजनीतिक विचारधारा को चुनने का सवाल नहीं रहा — यह सीधे-सीधे भारत की सुरक्षा, देश की शांति और हमारी राष्ट्रीय आत्मा का सवाल है। और इस बार, अगर हमने बारूद की राजनीति को उसकी सही जगह दिखाकर, ज़ोरदार और निर्णायक जवाब नहीं दिया, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमसे पूछेंगी — “जब देश में इतना बड़ा विस्फोटक जमा हो रहा था, और देश खतरे में था, तब तुम खामोश, डरपोक और नपुंसक बनकर क्यों बैठे थे?” इस चुप्पी को तोड़ना ही अब सबसे बड़ी देशभक्ति है।