तिरुवनंतपुरम, केरल
31 जुलाई 2025
जब कोई भारत के भीतर प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक गहराई, स्वास्थ्य परंपराएं और आध्यात्मिक संतुलन की तलाश करता है, तो उसका मार्ग अनायास ही केरल की ओर मुड़ता है। 2025 में जब पर्यटन की परिभाषा पूरी तरह बदल रही है — अनुभवात्मक, सतत, और आत्मिक — उस समय केरल भारत का सबसे प्रासंगिक और परिपक्व पर्यटन केंद्र बनकर उभरा है। केरल अब केवल एक “गॉड्स ओन कंट्री” कहकर प्रचारित नहीं किया जा रहा, बल्कि इसे “India’s Conscious Retreat” कहा जाने लगा है — जहाँ शरीर, मन और आत्मा तीनों को सुकून मिलता है।
केरल का सबसे बड़ा आकर्षण आज भी उसकी प्राकृतिक विविधता है — पश्चिम में विस्तृत अरब सागर और पूर्व में सह्याद्रि पर्वत की शृंखलाएं, बीच में फैले धान के खेत, बैकवाटर्स की शांत जलधाराएं, कॉफी और चाय के बागान, और मानसून से लिपटा वर्षा-वृक्षों से भरा हरित साम्राज्य। अल्लेप्पी और कुमारकोम की बैकवाटर यात्राएं पर्यटकों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं जहाँ गति धीमी होती है, शांति अधिक होती है, और जीवन एक नौका की लहरों पर बहता है।
2025 में सबसे अधिक मांग वेलनेस टूरिज़्म की रही — और इसमें केरल निस्संदेह अग्रणी रहा। आयुर्वेद चिकित्सा और पंचकर्म थेरेपी के लिए लोग अब सिर्फ भारत से ही नहीं, अमेरिका, जर्मनी, जापान और खाड़ी देशों से भी यहाँ आ रहे हैं। कोवलम और वर्कला के तटीय योग-आश्रम अब वेलनेस इंटरनेशनल सर्टिफाइड सेंटर बन चुके हैं। थ्रिसूर, कोट्टायम और कोल्लम जैसे जिलों में अब स्वास्थ्य पर्यटन को लेकर विशेष इको-सर्टिफाइड रिज़ॉर्ट्स खुले हैं, जहाँ उपचार के साथ ध्यान, ध्यान-भोजन (mindful eating) और ध्यान-संगीत का सम्मिलन होता है।
सांस्कृतिक पर्यटन के क्षेत्र में केरल का कोई सानी नहीं। कथकली, मोहिनीअट्टम और कुम्माटी कला केवल रंगमंच नहीं, जीते-जागते भावों का प्रदर्शन है। कोच्चि-मुज़िरिस बिएनाले अब एशिया का सबसे बड़ा आर्ट इवेंट बन चुका है, जहाँ दुनिया भर से कलाकार आते हैं। साथ ही, ओणम, विशु और थिरुवथिरा जैसे पारंपरिक पर्व अब ‘कल्चरल एक्सपीरियंस टूर पैकेज’ का हिस्सा बन गए हैं। यात्री अब सिर्फ देखने नहीं, भाग लेने आते हैं — फूलों की पुकलम बनाने, सद्य खाने, और नाव की रेस में तालियां बजाने।
2025 केरल के लिए सतत पर्यटन के नए युग की शुरुआत है। Thekkady, Wayanad, और Munnar जैसे पहाड़ी क्षेत्र अब प्लास्टिक-फ्री घोषित किए जा चुके हैं। इको-होमस्टे, ई-बाइक टूर्स, और कार्बन-न्यूट्रल ट्रैकिंग कैंप्स ने पर्यटन को पर्यावरण के अनुकूल बना दिया है। मुन्नार के चाय बागानों में अब लोग सिर्फ पिक्चर क्लिक करने नहीं, बल्कि चाय की पत्तियों की कटाई, सुखाई और बनावट की प्रक्रिया का हिस्सा बनने आते हैं।
केरल टूरिज़्म विभाग ने डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भी बड़ा निवेश किया है। स्मार्ट ट्रैवल गाइड ऐप्स, AR‑बेस्ड मंदिर टूर, QR‑स्कैनिंग द्वारा स्थान विशेष की कहानियां, और ग्रीन ट्रैवल सर्टिफिकेट जैसी सुविधाएं अब हर पर्यटक की जेब में होती हैं। साथ ही, गांवों में संचालित होने वाले ‘कम्युनिटी टूरिज़्म प्रोजेक्ट्स’ जैसे Responsible Tourism Mission ने सैकड़ों स्थानीय लोगों को रोजगार, आत्मसम्मान और वैश्विक जुड़ाव दिलाया है।
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि केरल ने अपने धार्मिक सह-अस्तित्व और सांप्रदायिक सौहार्द को भी पर्यटन के साथ जोड़ा है। कोच्चि का यहूदी सिनेगॉग, त्रिशूर के चर्च, वायनाड की मस्जिदें और सबरीमाला मंदिर — सब एक साथ मिलकर ‘इंटरफेथ ट्रैवल कॉरिडोर’ का हिस्सा बन चुके हैं, जहाँ आस्था टकराती नहीं, समन्वय करती है।
केरल में 2025 के पहले छह महीनों में 1.2 करोड़ से अधिक घरेलू और 18 लाख विदेशी पर्यटक आए हैं, जो राज्य के इतिहास का सबसे उच्चतम आंकड़ा है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विकास प्रकृति और संस्कृति की रक्षा के साथ हुआ, न कि उनके दोहन के साथ।
अंततः, केरल न तो केवल समुद्र तट है, न पहाड़, न जंगल और न ही केवल आयुर्वेद। यह सब कुछ होते हुए भी उससे परे है। केरल एक जीवनदर्शन है — जहाँ यात्रा बाहरी नहीं, आंतरिक होती है। जहाँ सैर करने नहीं, खुद को समझने जाया जाता है। यही कारण है कि 2025 का भारत जब संवेदनशील, समावेशी और सतत विकास की बात करता है, तो उसका प्रतिनिधित्व केरल करता है — सादगी से, गरिमा से, और गहराई से।