नई दिल्ली
23 जुलाई 2025
बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को लेकर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के भीतर असंतोष के सुर तेज़ हो गए हैं। खासकर जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ सांसद गिरिधारी यादव ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि “चुनाव आयोग को खुद नहीं पता कि वह क्या कर रहा है। यह पूरी प्रक्रिया बिना किसी समन्वय के हमारे ऊपर थोप दी गई है।” गिरिधारी यादव का यह बयान बिहार की राजनीति में कई सवाल खड़े कर रहा है, क्योंकि यह उस गठबंधन के भीतर से आ रहा है जो फिलहाल राज्य और केंद्र, दोनों जगह सत्ता में है।
सांसद गिरिधारी यादव ने मतदाता सूची के विशेष संशोधन अभियान (SIR) पर सीधा आरोप लगाया कि इसे लेकर न तो जनप्रतिनिधियों को कोई पूर्व जानकारी दी गई, न कोई ठोस गाइडलाइन साझा की गई और न ही क्षेत्रीय स्तर पर प्रशिक्षण या संवाद हुआ। उन्होंने कहा कि “हमें ही नहीं पता कि किसका नाम जोड़ा जा रहा है, किसका हटाया जा रहा है। हमें तो सिर्फ जनता के सवालों का सामना करना पड़ रहा है, और हम खुद अनजान हैं।” उनके इस बयान से स्पष्ट है कि इस बार मतदाता सूची को लेकर जितनी पारदर्शिता होनी चाहिए थी, उतनी नहीं दिखाई दे रही है।
गिरिधारी यादव के इस रुख से एनडीए की सहयोगी पार्टियों के बीच तालमेल पर भी सवाल उठने लगे हैं। वोटर लिस्ट जैसे संवेदनशील विषय पर यदि गठबंधन के सांसदों को भी जानकारी नहीं दी जा रही है, तो यह प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक बड़ी चूक मानी जा सकती है। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि इस प्रक्रिया के पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य हो सकता है, जिसमें जनप्रतिनिधियों को दरकिनार करके सीधा प्रशासन के स्तर पर बदलाव किए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि मतदाता सूची की समीक्षा चुनावी प्रक्रिया की रीढ़ होती है। अगर उसमें ही पारदर्शिता और राजनीतिक समन्वय नहीं होगा, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ सकता है। गिरिधारी यादव का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि वे न सिर्फ एक वरिष्ठ सांसद हैं, बल्कि जमीनी राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले नेता माने जाते हैं।
चुनाव आयोग की ओर से अभी तक इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन सवाल यह है कि जब गठबंधन के भीतर ही इतनी असहजता और भ्रम है, तो जनता तक इस प्रक्रिया की सही जानकारी कैसे पहुंचेगी? यह मामला आने वाले समय में बिहार की राजनीतिक गरमी और चुनावी समीकरणों को और भी जटिल बना सकता है।