नई दिल्ली-27 जुलाई 2025 , जापान और अमेरिका के बीच हुए एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते ने वैश्विक ऑटोमोबाइल सेक्टर में हलचल मचा दी है और भारत समेत अन्य देशों के लिए अहम रणनीतिक संकेत छोड़े हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इसे “अब तक का सबसे बड़ा समझौता” बताया गया है, जिसमें अमेरिका ने जापानी ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए 25% की बजाय 15% रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने पर सहमति जताई है।
इस डील को अमेरिका में कृषि उत्पादों, विशेषकर चावल जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील सामानों के बाजार तक पहुंच दिलाने की बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन जापान ने जिस चतुराई से अपने ऑटो सेक्टर को लाभ दिलाया है, वह वैश्विक बातचीत में रणनीतिक कौशल का उदाहरण बन गया है। समझौते के तहत जापानी कार कंपनियों को अमेरिका में प्रवेश के लिए अब पहले से कम शुल्क देना होगा, जिससे अमेरिकी कंपनियां—जैसे GM, Ford और Stellantis—इस फैसले को “अनुचित प्रतिस्पर्धा” मान रही हैं।
भारत के लिए यह समझौता एक चेतावनी और सबक दोनों है। एक ओर जहां भारत अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते की दिशा में आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर यह ज़रूरी है कि भारत अपने कृषि उत्पादों के बाज़ार खोलने से पहले अपनी स्वदेशी औद्योगिक हितों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करे। जापान ने समझौते की बातचीत के दौरान निवेश प्रतिबद्धताओं और कृषि रियायतों का इस्तेमाल केवल रणनीतिक रूप से किया और अंततः अपने ऑटोमोबाइल सेक्टर को स्पष्ट लाभ दिलाने में सफल रहा।
यह सौदा भारत जैसे देशों के लिए एक नीति-निर्धारण मॉडल बन सकता है, जो वैश्विक स्तर पर व्यापार वार्ताओं में अक्सर कृषि को सौदेबाज़ी का आधार बनाते हैं। भारत को चाहिए कि वह अमेरिका जैसे बड़े साझेदारों से बातचीत करते समय संतुलन और दीर्घकालिक लाभ को ध्यान में रखते हुए, घरेलू औद्योगिक हितों को प्राथमिकता दे।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया है कि व्यापार वार्ता केवल टैक्स रेट्स या बाजार पहुंच का मामला नहीं, बल्कि रणनीतिक धैर्य, तैयारी और चतुर कूटनीति का खेल है—जिसमें जापान ने बाज़ी मार ली। भारत अब अमेरिका के साथ होने वाली आगामी वार्ताओं में इन संकेतों को कितना समझता है, यह आने वाला समय बताएगा।