महेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली, 16 अगस्त 2025
समानता का शाश्वत संदेश
जन्माष्टमी केवल भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण का उत्सव नहीं है, बल्कि उनके जीवन-दर्शन को आत्मसात करने का अवसर भी है। गीता में उन्होंने स्पष्ट कहा— “समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।” अर्थात् वे सभी प्राणियों में समान भाव रखते हैं। न उनका कोई शत्रु है और न कोई विशेष प्रिय। यह शिक्षा हमें समभाव और भाईचारे की राह दिखाती है। आज जब समाज में विभाजन और भेदभाव के स्वर सुनाई देते हैं, तब कृष्ण का यह संदेश सामाजिक एकता का सबसे बड़ा सूत्र बनकर उभरता है।
भक्ति और शरणागति का मार्ग
गीता के अठारहवें अध्याय का श्लोक— “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥” जीवन का गूढ़ सार प्रस्तुत करता है। कृष्ण हमें बताते हैं कि जब मनुष्य सभी जटिलताओं, संकीर्णताओं और अहंकार को त्यागकर केवल ईश्वर की शरण लेता है, तभी सच्चा समाधान मिलता है। यह केवल धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और विश्वास का ऐसा मार्ग है जो हमें जीवन की हर समस्या से पार कराने की शक्ति देता है।
वंशी की मधुर ध्वनि और प्रेम का भाव
भगवान श्रीकृष्ण की वंशी की तान केवल एक मधुर संगीत नहीं, बल्कि जीवन का दार्शनिक प्रतीक है। यह वंशी प्रेम, करुणा और आत्मीयता का संदेश देती है। जैसे उसकी ध्वनि संपूर्ण सृष्टि को मोहित कर लेती है, वैसे ही यदि हम अपने व्यवहार और रिश्तों में मधुरता और सरलता को धारण कर लें, तो जीवन में शांति और सामंजस्य स्वतः स्थापित हो सकता है। वंशी हमें यह भी याद दिलाती है कि भक्ति केवल उपासना का माध्यम नहीं, बल्कि हृदय में बसे प्रेम और करुणा का विस्तार है।
धर्म, करुणा और सत्य की राह
श्रीकृष्ण का जीवन केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आचरण का आदर्श है। उनके बाल्यकाल की नटखट लीलाएँ, वृंदावन का आनंद, मथुरा का संघर्ष और कुरुक्षेत्र का गीता उपदेश—हर प्रसंग मानव जीवन का मार्गदर्शन करता है। वे हमें सिखाते हैं कि धर्म का पालन करते समय करुणा और सत्य को कभी न छोड़ें। धर्म का अर्थ केवल अनुष्ठान या परंपरा नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है। यही कारण है कि श्रीकृष्ण को “योगेश्वर” और “संपूर्ण पुरुषोत्तम” कहा गया है।
जीवन जीने की कला के गुरु
जन्माष्टमी का पावन अवसर हमें यह स्मरण कराता है कि भगवान श्रीकृष्ण केवल पूजा और आराधना के देवता नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाले गुरु भी हैं। उनकी लीला हमें आनंद का अनुभव कराती है, उनके उपदेश हमें कर्तव्य का बोध कराते हैं और उनका दर्शन हमें सत्य, धर्म और प्रेम की राह पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। इस दिन हम सबको संकल्प लेना चाहिए कि हम श्रीकृष्ण की शिक्षाओं को अपनाकर समाज में शांति, समानता और करुणा का वातावरण बनाएँगे। जय श्रीकृष्ण! राधे-राधे!