तेलंगाना आरक्षण याचिका ख़ारिज: हाई कोर्ट के आदेश पर SC ने नहीं लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना सरकार को उस समय झटका लगा, जब शीर्ष अदालत ने स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 42% आरक्षण देने संबंधी सरकारी आदेश (GO) पर रोक लगाने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार की याचिका ख़ारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि, “आप पहले से मौजूद आरक्षण के साथ ही अपने चुनाव जारी रखें।” तेलंगाना की कांग्रेस नीत रेवंत रेड्डी सरकार ने 26 सितंबर को एक सरकारी आदेश जारी किया था, जिसमें स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को 42% तक बढ़ा दिया गया था। तेलंगाना हाई कोर्ट ने 9 अक्टूबर को इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिसे राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पीठ ने याचिका ख़ारिज करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि उसके इस आदेश का असर हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं पर नहीं पड़ेगा और इन मामलों पर हाई कोर्ट अपने गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।
एक्ट और बिल पर उलझे भावी CJI जस्टिस विक्रम नाथ और वरिष्ठ वकील सिंघवी
मामले में तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी पैरवी कर रहे थे। उन्होंने पीठ को बताया कि हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश से राज्य सरकार की नीति प्रभावित हुई है। सिंघवी ने तर्क दिया कि यह एक ऐसे राज्य का नीतिगत फैसला है, जो पिछड़े वर्गों की एक बड़ी आबादी को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाना चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने बिना किसी ठोस दलील के सरकारी आदेश पर रोक लगा दी, और अंतिम दो पृष्ठों को छोड़कर रोक लगाने का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया। इस पर पीठ ने टिप्पणी की, “आपका मामला यह नहीं है कि आरक्षण नहीं है। आरक्षण है। आप आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा रहे हैं।” इसी बीच, एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब सिंघवी ने कहा कि इस मामले में चुनौती ऐक्ट को नहीं, बल्कि उसके परिणामों को दी गई है। इस पर भावी मुख्य न्यायाधीश (जस्टिस सूर्यकांत के बाद 2027 में बनने वाले) जस्टिस विक्रम नाथ ने सिंघवी को टोकते हुए कहा, “ऐक्ट नहीं, यह एक बिल (विधेयक) है।” जिस पर सिंघवी तुरंत बोल पड़े, “नहीं, यह एक ऐक्ट है।” इस गरमागरम संवैधानिक तकरार ने कोर्टरूम का माहौल तनावपूर्ण बना दिया।
50% आरक्षण सीमा पर बहस और गोपाल शंकरनारायणन का दखल
जस्टिस विक्रम नाथ और डॉ. सिंघवी के बीच ‘ऐक्ट बनाम बिल’ पर चल रही खींचतान के बीच, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने कहा कि “एक मिनट के लिए प्रक्रिया को भूल जाइए… मान लीजिए कि डॉ. सिंघवी ने जो कुछ कहा, वह सब मान लिया जाए, तब भी जिस सरकारी आदेश को हमने चुनौती दी है, वह ओबीसी के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 42% कर देता है, जिससे कुल आरक्षण 60% से कहीं ज़्यादा हो जाता है।” शंकरनारायणन ने इंद्रा साहनी (मंडल) फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पहले ही व्याख्या कर चुकी है कि 50% से आगे आरक्षण की कोई गुंजाइश नहीं है, खासकर सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों में। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि हाई कोर्ट ने भी अपने आदेश का आधार यही फैसला (50% की सीमा) माना था। इसके बाद, डॉ. सिंघवी फिर से बहस में कूद पड़े और तर्क दिया कि कानूनी तौर पर कानून को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि सरकारी कार्रवाई को चुनौती दी गई है, और क्या वास्तव में 50% की कोई पूर्ण और कठोर सीमा है।
70% OBC आबादी वाले राज्यों का सवाल और SC से बड़ा मुद्दा विचारने का अनुरोध
डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ के सामने एक बड़ा संवैधानिक सवाल उठाते हुए कहा, “कल्पना कीजिए, माई लॉर्ड्स, अगर आप मानते हैं कि आरक्षण पर 50% की पूर्ण सीमा है। तो ऐसे राज्य में क्या किया जाना चाहिए, जहाँ ओबीसी आबादी 70% से ज़्यादा है?” सिंघवी ने पीठ से आग्रह किया कि यह केवल तेलंगाना का मामला नहीं है, बल्कि एक बड़ा मुद्दा है जिस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या 50% की सीमा को पार किया जा सकता है, अन्यथा, “पूरे देश के लिए 50% का एक कठोर नियम बन जाएगा।” इस बहस के बावजूद, पीठ ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए याचिका ख़ारिज कर दी। जस्टिस विक्रम नाथ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “आप अपने चुनाव जारी रख सकते हैं… खारिज।” इस दौरान यह जानकारी भी सामने आई कि जस्टिस विक्रम नाथ, वर्तमान सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत के बाद 2027 में देश के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।