भविष्य की तकनीक के लिए आज की तैयारी: ISRO-DRDO की महत्त्वाकांक्षी पहल
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) मिलकर देश को भविष्य के साइबर खतरों से सुरक्षित रखने के लिए एक ‘क्वांटम-सुरक्षित कम्युनिकेशन नेटवर्क’ विकसित कर रहे हैं। यह नेटवर्क न केवल हैकिंग से बचाएगा, बल्कि क्वांटम कंप्यूटर जैसी उन्नत मशीनों से होने वाले संभावित डाटा उल्लंघन के खतरों से भी रक्षा करेगा। यह पूरा प्रोजेक्ट भारत की “डिजिटल संप्रभुता” की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। DRDO और ISRO की यह साझेदारी बताती है कि अब देश साइबर युद्ध की चुनौतियों को पारंपरिक साधनों से नहीं, बल्कि भविष्य की विज्ञान-आधारित सोच से लड़ेगा।
क्वांटम संचार तकनीक, सामान्य डिजिटल एन्क्रिप्शन से कहीं अधिक सुरक्षित होती है क्योंकि इसमें “क्वांटम की” (Quantum Key Distribution – QKD) का इस्तेमाल होता है, जो किसी भी डेटा-लीक या ‘मैन इन द मिडिल’ हमले को तुरंत पहचान लेती है। इस तकनीक में यदि कोई बाहरी व्यक्ति किसी संचार को छेड़ता है, तो उसकी जानकारी संप्रेषक और प्राप्तकर्ता दोनों को तुरंत हो जाती है। इस प्रणाली का लाभ यह है कि यह डेटा को लगभग ‘अनहैकेबल’ बना देता है। इससे रक्षा क्षेत्र, परमाणु संयंत्र, अंतरिक्ष कम्युनिकेशन, बैंकिंग सेक्टर, और यहां तक कि नागरिक सेवाओं की सुरक्षा भी अभूतपूर्व होगी।
तीन-स्तरीय सुरक्षा ढांचा: नागरिकों से लेकर सेना तक की रक्षा
DRDO-ISRO की इस परियोजना में तीन-स्तरीय सुरक्षा रणनीति तैयार की गई है:
- डिफेंस नेटवर्क के लिए क्वांटम लिंक,
- सरकारी मंत्रालयों और संवेदनशील एजेंसियों के लिए एन्क्रिप्टेड क्वांटम राउटर, और
- नागरिक उपयोग के लिए क्वांटम सर्टिफिकेट आधारित डिजिटल इंटरफेस।
इससे स्पष्ट है कि यह तकनीक सिर्फ सैन्य प्रयोग तक सीमित नहीं रहेगी। यह टेलीमेडिसिन, ऑनलाइन बैंकिंग, e-Governance, डिजिटल पहचान (Aadhaar), और डेटा-संप्रभुता जैसे क्षेत्रों में आम नागरिक को सीधा लाभ पहुंचाएगी। DRDO और ISRO के साथ IIT दिल्ली, IISc बेंगलुरु, और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) जैसी संस्थाएँ भी इस मिशन से जुड़ी हैं।
आईआईटी दिल्ली के सहयोग से DRDO ने हाल ही में 150 किमी तक फाइबर आधारित क्वांटम नेटवर्क का सफल परीक्षण किया है, जबकि ISRO ‘स्पेस-बेस्ड क्वांटम लिंक’ के लिए विशेष उपग्रह लॉन्च की तैयारी कर रहा है। इसका मतलब है कि आने वाले वर्षों में भारत का अपना क्वांटम इंटरनेट नेटवर्क तैयार हो जाएगा, जो दुनिया के चुनिंदा देशों की कतार में खड़ा करेगा—जैसे अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी।
भारत की डिजिटल संप्रभुता का नया अध्याय: वैश्विक नेतृत्व की ओर कदम
भारत का यह प्रयास न केवल घरेलू साइबर सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि उसे वैश्विक टेक्नोलॉजी लीडरशिप की दिशा में भी ले जाता है। अमेरिका की DARPA और चीन की QUESS मिशन जैसी परियोजनाओं की तरह, भारत अब क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार हो रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत घरेलू तकनीकी उपकरणों का उपयोग और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन को इस परियोजना से अभूतपूर्व बल मिलेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि 2030 तक वैश्विक साइबर युद्ध का चेहरा पूरी तरह बदल जाएगा, और जो देश क्वांटम नेटवर्क से लैस होंगे, वे ही सुरक्षित रहेंगे। भारत यदि समय रहते यह नेटवर्क पूरी तरह क्रियान्वित कर लेता है, तो यह न केवल सरकारी संस्थाओं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के डिजिटल जीवन को सुरक्षित करने का सबसे भरोसेमंद कवच साबित होगा।
इस पहल से भारत यह संदेश देता है कि अब वह केवल तकनीक का उपयोगकर्ता नहीं, बल्कि नवाचार का निर्माता भी बन चुका है—जो न सिर्फ अपनी जनता की रक्षा कर सकता है, बल्कि विश्व पटल पर साइबर-प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर होकर खड़ा हो सकता है।।