यरुशलम, 24 सितंबर 2025
यहूदी नए साल (रोश हशनाह) के मौके पर सोमवार को सैकड़ों इज़राइली उपनिवेशवादी (settlers) ने भारी पुलिस सुरक्षा के बीच पूर्वी यरुशलम स्थित अल-अक्सा मस्जिद परिसर में जबरन प्रवेश किया। प्रत्यक्षदर्शियों और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, करीब 300 से अधिक लोग अल-मगरिबा गेट से दाखिल हुए और परिसर में घूमते हुए प्रार्थनाएँ, गीत-गायन और यहूदी धार्मिक प्रतीक शोफर (सींगनुमा वाद्य) बजाने लगे।
अल-अक्सा मस्जिद परिसर, जो इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, लंबे समय से इज़राइली-फिलिस्तीनी टकराव का केंद्र रहा है। हर साल यहूदी धार्मिक पर्वों के दौरान इस तरह के प्रवेश और प्रदर्शन बढ़ जाते हैं, जिन्हें फिलिस्तीनी समुदाय अपनी धार्मिक स्वतंत्रता और पवित्र स्थल की गरिमा पर हमला मानता है। इस बार भी स्थानीय लोगों ने इन गतिविधियों को “यहूदीकरण की साज़िश” और पवित्र स्थल की पहचान बदलने की कोशिश करार दिया।
रिपोर्टों के मुताबिक़ उपनिवेशवादियों के इस जत्थे में कुछ कट्टरपंथी यहूदी नेता भी शामिल थे, जिनमें पूर्व केनेस्सेट सदस्य यहूदा ग्लिक का नाम विशेष रूप से सामने आया। ये नेता पहले भी अल-अक्सा में प्रवेश कर इसी तरह के प्रदर्शन आयोजित करते रहे हैं। पुलिस ने इस दौरान पूरे परिसर को घेर लिया था, ताकि किसी भी फिलिस्तीनी विरोध को दबाया जा सके। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इज़राइली सुरक्षाबल हमेशा उपनिवेशवादियों की सुरक्षा करते हैं, जबकि फिलिस्तीनियों की धार्मिक स्वतंत्रता को कुचला जाता है।
फिलिस्तीनी धार्मिक संगठनों और अधिकारियों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि बार-बार होने वाले ऐसे घटनाक्रम न सिर्फ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करते हैं बल्कि यरुशलम के ऐतिहासिक और धार्मिक दर्जे को भी खतरे में डालते हैं। फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वे इज़राइल पर दबाव डालें और अल-अक्सा मस्जिद की पवित्रता की रक्षा सुनिश्चित करें।
विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ पहले से ही तनावग्रस्त माहौल को और भड़काने का काम करती हैं। गाजा युद्ध की पृष्ठभूमि में फिलिस्तीनी इलाकों में पहले से ही गुस्सा और असुरक्षा की भावना गहरी है। ऐसे में अल-अक्सा मस्जिद में उपनिवेशवादियों की ये घुसपैठ फिलिस्तीनी प्रतिरोध और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया दोनों को तेज़ कर सकती है।
यह घटना एक बार फिर दिखाती है कि अल-अक्सा मस्जिद न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि वह संघर्ष का प्रतीकात्मक केंद्र भी बन चुकी है। सवाल यही है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन पवित्र स्थलों की रक्षा के लिए निर्णायक कदम उठाएगा या फिर ऐसे विवादास्पद घटनाक्रम लगातार तनाव को और बढ़ाते रहेंगे।
अल-अक्सा मस्जिद, जिसे इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है, 1967 के युद्ध के बाद से इज़राइल के कब्ज़े में है लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह क्षेत्र अभी भी अधिकृत पूर्वी यरुशलम का हिस्सा माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कई प्रस्तावनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि यरुशलम की स्थिति को किसी भी एकतरफ़ा कार्रवाई से नहीं बदला जा सकता। इसके बावजूद उपनिवेशवादियों का मस्जिद परिसर में प्रवेश और धार्मिक अनुष्ठान अंतरराष्ट्रीय समझौतों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है, जो न केवल पवित्र स्थलों की तटस्थता को खतरे में डालता है बल्कि इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को और गहराता है।