गाज़ा/ यरूशलम 11 अक्टूबर 2025
ऐतिहासिक मोड़ — गाज़ा से पीछे हटना शुरू, इज़रायल ने दी बड़ी पुष्टि
मध्य पूर्व के धधकते हालातों के बीच आखिरकार इज़रायल ने गाज़ा पट्टी के कई इलाकों से अपनी सेनाएं वापस बुलाना शुरू कर दी हैं। यह कदम उस युद्धविराम और बंधक रिहाई समझौते का पहला ठोस संकेत है, जिसे दो दिन पहले इज़रायली कैबिनेट ने स्वीकृति दी थी। इज़रायली सेना ने उत्तरी गाज़ा और गाज़ा सिटी के हिस्सों से अपने ग्राउंड ऑपरेशन यूनिट्स को हटाना शुरू कर दिया है। इस कदम को अंतरराष्ट्रीय समुदाय “संघर्ष में इंसानियत की झलक” के रूप में देख रहा है, जबकि कुछ राजनीतिक धड़े इसे एक रणनीतिक छल बता रहे हैं — ताकि इज़रायल युद्धविराम का दिखावा करके खुद को वैश्विक आलोचना से बचा सके।
युद्धविराम का असर — 72 घंटे में थमी गोलाबारी, बंधक रिहाई प्रक्रिया शुरू
शुक्रवार रात 12 बजे के बाद से गाज़ा में पहली बार बमबारी और मिसाइल फायरिंग पूरी तरह बंद हुई।
हमास और इज़रायल दोनों पक्षों ने युद्धविराम का पालन करने की औपचारिक घोषणा की। समझौते के तहत हमास को 70 से अधिक बंधकों की रिहाई करनी है, जिनमें महिलाएँ, बच्चे और वृद्ध नागरिक शामिल हैं। वहीं इज़रायल ने 2,000 से अधिक फिलिस्तीनी कैदियों — जिनमें अधिकांश युवा और नाबालिग हैं — को चरणबद्ध तरीके से छोड़ने का वादा किया है। अमेरिका, क़तर और मिस्र इस पूरी प्रक्रिया के गारंटर हैं। वॉशिंगटन ने बयान जारी करते हुए कहा — “यह इतिहास का वह पल है जब हथियारों की जगह उम्मीदों की आवाज़ सुनाई दी।”
गाज़ा में राहत की सांस, मगर डर बरकरार
गाज़ा की गलियों में खामोशी लौटी है, पर भरोसा नहीं।
सैकड़ों लोग मलबे से अपने घर तलाश रहे हैं — किसी का परिवार अब भी लापता है, कोई अपनों के शव ढूंढ रहा है।
गाज़ा हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, अब तक 42,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें 17,000 बच्चे और 9,000 महिलाएँ शामिल हैं। पानी, बिजली और भोजन की भारी कमी है, जबकि अस्पतालों में हज़ारों घायल बगैर दवा पड़े हैं। लोगों का कहना है, “हमें राहत नहीं, स्थायी शांति चाहिए। अगर यह विराम फिर युद्ध में बदला, तो हमारे पास बचाने को कुछ नहीं रहेगा।”
इज़रायल की मंशा पर सवाल — शांति या पुनर्संगठन?
हालाँकि इज़रायल ने “शांतिपूर्ण वापसी” का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञ इसे सैन्य पुनर्संगठन (military regrouping) के तौर पर देख रहे हैं। कई रक्षा विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि इज़रायल पूरी तरह से गाज़ा से नहीं हट रहा, बल्कि दक्षिणी हिस्सों में अपनी नई पोजिशनिंग कर रहा है। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान दिया, “हम पीछे हट रहे हैं, लेकिन अपनी सुरक्षा को कभी नहीं छोड़ेंगे। अगर हम पर हमला हुआ, तो प्रतिक्रिया पहले से भी अधिक कठोर होगी।” हमास ने नेतन्याहू के इस बयान को “धमकी और दोहरा खेल” बताया है। उनका कहना है कि अगर इज़रायल ने एक भी उल्लंघन किया, तो युद्धविराम बेअसर हो जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय दबाव — आखिर झुका इज़रायल
यह निर्णय किसी मानवीय परिवर्तन का नहीं, बल्कि भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव का परिणाम है। अमेरिका और यूरोपीय देशों पर आलोचना बढ़ गई थी कि वे इज़रायल के अत्याचारों को खुली छूट दे रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि “गाज़ा में मानवीय आपदा इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी बन चुकी है।” दबाव में अमेरिका ने एक प्रस्ताव रखा था, जिसे अब इज़रायल ने मंज़ूरी दी है।
अमेरिका ने फिलिस्तीन के लिए 500 मिलियन डॉलर की मानवीय सहायता की घोषणा भी की है।
क्या यह अंत की शुरुआत है या शुरुआत का अंत?
इज़रायल की वापसी और बंधक रिहाई ने मध्य पूर्व में राहत की लहर पैदा की है, लेकिन सवाल अब भी वहीं है — क्या यह शांति टिकेगी? गाज़ा की बर्बादी अब केवल एक शहर की नहीं, बल्कि इंसानियत की कहानी है। वह धरती जो कभी सभ्यता की जननी थी, आज मलबे और राख की नगरी बन चुकी है। अगर यह शांति सच्ची है तो यह इतिहास बदल देगी, लेकिन अगर यह चाल है — तो आने वाला युद्ध पूरी मानवता को निगल जाएगा।“गाज़ा की जली हुई ईंटों में अब भी उम्मीद की राख बची है — बस किसी को उसे हवा देनी है।”