यरुशलम/अंकारा, 23 सितंबर 2025
यह कोई अफवाह नहीं, पश्चिम एशिया की राजनीति में तेजी से तैरती आक्रामक धारणा है। इज़रायल ने क़तर के बाद अब तुर्की को अपना अगला संभावित टारगेट बनाने के संकेत दिए हैं। यहूदी देश के रणनीतिक हलकों से आ रही आवाज़ें कहती हैं—“NATO मेंबरशिप के भरोसे मत रहना, अगर तुर्की इज़रायल के खिलाफ खड़ा होगा तो उसके लिए भी हालात क़तर जैसे बन सकते हैं।” यही वजह है कि यह खबर सुर्ख़ियों में है और अंतरराष्ट्रीय हलकों में भूचाल मचा रही है।
क्यों तुर्की पर उठी तलवार?
तुर्की लंबे समय से फिलिस्तीन का समर्थन करता रहा है और गाज़ा युद्ध में उसने इज़रायल की कड़ी आलोचना की। राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन बार-बार खुले मंचों पर इज़रायल को आतंकी राज्य तक कह चुके हैं। अब इज़रायली थिंक टैंक और यहूदी लॉबी साफ कह रही है कि तुर्की अगर “इस्लामी गठजोड़” के साथ खड़ा रहा, तो उसे भी इज़रायल का गुस्सा झेलना होगा।
NATO की ढाल कितनी कारगर?
तुर्की NATO का अहम सदस्य है। लेकिन इज़रायल समर्थक हलकों का कहना है कि “NATO मेंबरशिप सुरक्षा गारंटी नहीं है।” पश्चिम एशिया की बदलती जमीनी हकीकत यह है कि इज़रायल अमेरिकी समर्थन और अपनी उन्नत सैन्य क्षमता पर भरोसा करके किसी भी विरोधी देश को जवाब देने का दम रखता है। ऐसे में तुर्की का NATO पर अत्यधिक भरोसा उसके लिए खतरनाक भूल साबित हो सकता है।
यहूदियों का तर्क और वैश्विक संकेत
यहूदी लॉबी का कहना है कि तुर्की की “दोहरे चेहरे” वाली राजनीति—एक तरफ अमेरिका और यूरोप से नजदीकी, दूसरी तरफ हमास और फिलिस्तीन समर्थक रुख—अब बर्दाश्त से बाहर हो रही है। उनके मुताबिक, “अगर तुर्की ने कतर की राह पकड़ी, तो इज़रायल उसे भी झुकाने में देर नहीं करेगा।” यही वजह है कि तुर्की का नाम अब इज़रायल के संभावित निशानों की लिस्ट में शामिल हो गया है।
अंतरराष्ट्रीय चिंता और अशांति
इस चर्चा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को हिला दिया है। अगर इज़रायल और तुर्की के बीच सीधा टकराव होता है तो इसका असर केवल पश्चिम एशिया ही नहीं बल्कि यूरोप और NATO गठबंधन तक महसूस होगा। अमेरिका और यूरोप को तय करना होगा कि वे तुर्की के साथ खड़े होंगे या इज़रायल को खुली छूट देंगे। यह स्थिति पूरे वैश्विक सुरक्षा ढांचे के लिए चुनौती बन सकती है।
कतर के बाद अब तुर्की का नाम इज़रायल के संभावित टारगेट के रूप में उभरना कोई छोटी बात नहीं। यह खबर साफ संकेत देती है कि इज़रायल अपनी सुरक्षा और प्रभुत्व को लेकर किसी भी देश से टकराने में पीछे नहीं हटेगा। सवाल यह है कि तुर्की—जो NATO पर अपनी ढाल मानकर चलता है—क्या इस आक्रामक चेतावनी को गंभीरता से लेगा? या फिर पश्चिम एशिया की राजनीति एक और खतरनाक मोड़ लेने वाली है?