हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी श्री वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। चंडीगढ़ में 15 अक्टूबर 2025 को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस दुखद घटना को एक व्यक्ति की आत्महत्या नहीं, बल्कि “व्यवस्था की हत्या” बताया। जातिगत उत्पीड़न और मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या करने वाले इस ईमानदार अधिकारी की मौत ने एक बार फिर उस सच्चाई को उजागर कर दिया है कि बीजेपी राज में दलित समाज आज भी असुरक्षित और अपमानित है, भले ही वह सत्ता के गलियारों के कितने ही करीब हो। आज चंडीगढ़ पहुंचे राहुल गांधी ने आईपीएस पूरन कुमार के शोकाकुल परिवार से मुलाकात की और उनके प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे दलित समाज की न्याय की लड़ाई है। उन्होंने बताया कि पूरन कुमार की पत्नी एक सप्ताह से अपने पति का सम्मानजनक अंतिम संस्कार करने की प्रतीक्षा कर रही हैं, लेकिन सरकार की बेरुखी चरम पर है। राहुल ने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि “पूरा दलित समाज इस परिवार के दर्द को महसूस कर रहा है, और यह पीड़ा सिर्फ एक घर की नहीं — यह उस तंत्र की है जिसने न्याय को जाति के तराजू पर तौलना शुरू कर दिया है,” जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
राहुल गांधी का मोदी-खट्टर सरकार पर सीधा और तीखा हमला
राहुल गांधी ने आईपीएस अधिकारी की मौत पर केंद्रीय और हरियाणा सरकार दोनों पर तीखा प्रहार करते हुए आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की चुप्पी “शर्मनाक” है। उन्होंने पूछा कि “कितने पत्थरदिल हैं दिल्ली से हरियाणा सरकार चलाने वाले नरेंद्र मोदी और मनोहर लाल खट्टर!” उन्होंने इस घटना को “नृशंस अत्याचार” बताया जो उनके शासन में हो रहा है, और सवाल किया कि इस पर भी उनका दिल क्यों नहीं पसीज रहा है। राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि दिन बीतते जा रहे हैं, मगर अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है — यह साफ अन्याय है और यह संकेत देता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। उन्होंने मांग की कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री खट्टर तुरंत हस्तक्षेप करें, दोषियों को गिरफ्तार करें, और इस दलित परिवार को न्याय व सम्मान दिलाएं, क्योंकि इस मामले में हो रही देरी सीधे तौर पर सत्ता संरक्षण की ओर इशारा करती है।
उत्पीड़न की अनसुनी शिकायतें और सिस्टम की विफलता
आईपीएस पूरन कुमार के परिवार ने राहुल गांधी को अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि उनके पति लंबे समय से जातिगत भेदभाव और मानसिक उत्पीड़न का सामना कर रहे थे। परिवार ने बताया कि पूरन कुमार ने कई बार वरिष्ठ अफसरों को इन गंभीर उत्पीड़न की शिकायतें भेजीं, लेकिन उनकी शिकायतों को लगातार अनसुना कर दिया गया और किसी ने ध्यान नहीं दिया, जिससे उनकी हताशा बढ़ती गई। परिवार का कहना है कि “हमारे पिता न्याय के लिए लड़े, लेकिन तंत्र ने उन्हें तोड़ दिया।” राहुल गांधी ने परिवार को भरोसा दिलाया कि कांग्रेस इस मामले को संसद से सड़क तक उठाएगी और उनके लिए संघर्ष करेगी। उन्होंने इस घटना को और भी गंभीर बताते हुए कहा, “अगर एक आईपीएस अधिकारी न्याय के लिए तड़पकर मर सकता है, तो सोचिए आम नागरिक की क्या हालत होगी? बीजेपी सरकार में न्याय नहीं, अन्याय का तंत्र पल रहा है,” जो केवल ताकतवर लोगों के हितों को साधता है।
कांग्रेस की उच्चस्तरीय जांच और SC/ST अधिनियम के तहत कार्रवाई की मांग
कांग्रेस ने इस हृदय विदारक घटना को बीजेपी शासन में संस्थागत भेदभाव का जीता-जागता उदाहरण बताया है और इसे लोकतंत्र तथा संविधान के मूल सिद्धांतों पर गहरा प्रहार कहा है। पार्टी ने इस प्रकरण को दलित समाज की आवाज़ को दबाने का प्रतीक बताते हुए मांग की है कि हरियाणा सरकार तत्काल और पारदर्शी तरीके से कार्रवाई करे। कांग्रेस ने मांग की है कि एक स्वतंत्र एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित की जाए जो पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करे, परिवार को सम्मानजनक आर्थिक सहायता और पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए, और सबसे महत्वपूर्ण, इस केस को SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह मामला केवल आत्महत्या का नहीं, बल्कि गंभीर जातिगत उत्पीड़न का माना जाए। कांग्रेस नेताओं ने साफ किया कि दोषियों की गिरफ्तारी और सजा सुनिश्चित होने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा।
निष्कर्ष: जनता का सवाल — दलितों के लिए न्याय कहाँ है?
पूरा देश आज वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के बाद यह गंभीर सवाल पूछ रहा है — “जब एक आईपीएस अधिकारी भी जातिगत उत्पीड़न से नहीं बच सका, तो आम दलित नागरिक की सुरक्षा की क्या गारंटी है?” यह घटना उन सभी दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती है जो सरकार “सबका साथ, सबका विकास” के नाम पर करती है। जनता पूछ रही है कि क्या बीजेपी सरकार में दलितों के लिए न्याय सिर्फ भाषणों में है, या संविधान में भी बचेगा? राहुल गांधी ने इस सवाल को जनता की आवाज़ बनाने का संकल्प लिया है, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “जब तक वाई पूरन कुमार और उनके परिवार को न्याय नहीं मिलेगा, तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी,” क्योंकि यह केवल एक अधिकारी के लिए नहीं, बल्कि देश के पूरे दलित और हाशिये के समाज के आत्म-सम्मान और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की
लड़ाई है।