शिवाजी सरकार, वरिष्ठ पत्रकार
भारत में समोसा, जलेबी और पकौड़े सिर्फ नाश्ता नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं। लेकिन अब ये स्वादिष्ट व्यंजन सरकारी निशाने पर हैं! केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि सरकारी दफ्तरों में “तेल और चीनी बोर्ड” लगाए जाएंगे, जो इन तले हुए और मीठे नाश्तों के ट्रांस-फैट “अपराधों” के बारे में चेतावनी देंगे। तो क्या समोसा अब भारत का नया “राष्ट्रीय खतरा” बन गया है?
समोसे का इतिहास और विवाद
समोसा, जिसे कुछ लोग हिंदू व्यंजन कहते हैं, शायद मध्य एशिया के “सम्सा” से आया हो। जलेबी भी फारस से आई बताई जाती है, लेकिन ये दोनों भारत में हर धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का हिस्सा बन चुके हैं। बंगाली फूलगोभी समोसा, इलाहाबादी समोसा, या पंजाबी छोले वाला समोसा – हर जगह का अपना स्वाद है। फिर भी, इन पर “अस्वास्थ्यकर” होने का ठप्पा लग रहा है।
स्वास्थ्य या साजिश?
प्रस्ताव सीधे तौर पर समोसा, जलेबी या पकौड़े पर निशाना नहीं साधता, लेकिन ऐसा लगता है कि छोटे रेहड़ी-पटरी वालों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है। कुछ लोग इसे बड़े कॉरपोरेट्स की साजिश मानते हैं, जो प्रोसेस्ड स्नैक्स को बढ़ावा देना चाहते हैं। ये स्नैक्स, जिन पर “नो एडेड शुगर” लिखा होता है, असल में चीनी के विकल्पों से भरे होते हैं, जो सेहत के लिए उतने ही हानिकारक हैं।
दोहरा मापदंड
मजे की बात ये है कि वही जलेबी, जिसे सरकारी कैंटीन से हटाने की बात हो रही है, गणतंत्र दिवस के हाई-टी और दूतावासों के बुफे में “भारत की पाककला विरासत” के रूप में परोसी जाती है। ये वैसा ही है जैसे शादी में बॉलीवुड गाने बजाना मना कर दें, लेकिन परेड में जोर-शोर से बजाएं।
हमारी खाने की जंग
भारत में खाने को लेकर बहस कोई नई बात नहीं है:
टमाटर का दंगा: जब टमाटर 200 रुपये किलो पहुंचा, तो समोसे की चटनी गायब हो गई, शादियां टल गईं।
रसगुल्ला युद्ध: बंगाल और ओडिशा इस मिठाई की उत्पत्ति को लेकर भिड़े हुए हैं।
अंडे का विवाद: स्कूलों में बच्चों को प्रोटीन देने पर भी हंगामा हो जाता है।
बिरयानी की महक: कुछ दफ्तरों में “तेज गंध” वाले खाने पर पाबंदी की कोशिश हुई।
हमारा पेट, हमारा गर्व
हम भारतीय उमस भरी गर्मी में पसीना बहाते हैं, बस की फुटबोर्ड पर लटकते हैं, और फिर भी सड़क किनारे इंडो-चाइनीज खा लेते हैं। हमारा पेट सिर्फ अंग नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्मारक है! हमने पानी पूरी शेयर की, प्लास्टिक पाउच का पानी पिया, और कोविड-19 को भी हल्दी दूध और काढ़े से मात दी। समोसा तो फिर भी छोटी बात है।
रेलवे का स्नैक मेन्यू
रेलवे के स्नैक लिस्ट में समोसा, इडली, डोसा, पकौड़ा, और जलेबी शामिल हैं। सबसे सस्ता हेल्दी ऑप्शन? उबला अंडा, 9 रुपये में। सबसे लुभावना? 6 रुपये की जलेबी। अब बताइए, जब आप देर से दौड़ रहे हों, पसीने से तर हों, और जेब खाली हो, तो आप अंडा लेंगे या चीनी से भरी जलेबी?
समाधान क्या है?
समोसे को विलेन बनाने के बजाय, खाने की साक्षरता पर ध्यान देना चाहिए। हिस्से में नियंत्रण (पोर्शन कंट्रोल) सिखाएं, न कि पकौड़ों से डर। सस्ते और स्वादिष्ट विकल्प जैसे उबला चना, फल, या बाजरे के लड्डू उपलब्ध कराएं। तेल और चीनी को राष्ट्रीय खतरा बताना बंद करें – तेल में विटामिन A और D होते हैं, और चीनी ऊर्जा देती है।
अंत में
भारत वो देश है जहां हम मिठाई पर घी डालकर कोलेस्ट्रॉल की शिकायत करते हैं। समोसा, जलेबी, और पकौड़े हमारे रोजगार देने वाले, स्वाद से भरे नाश्ते हैं। इन्हें बैन करने के बजाय, हमें स्वाद और सेहत का संतुलन ढूंढना होगा। तब तक, समोसे को चैन से रहने दें, जलेबी को घूमने दें, और चटनी को बहने दें।
लेखक :
शिवाजी सरकार फाइनेंशियल एक्सप्रेस के वरिष्ठ संपादक रहे हैं, दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) में प्रोफेसर और भारत तथा विश्व के सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक मुद्दों पर लिखते हैं।