सिंगापुर 4 अक्टूबर 2025
दुनिया में जब भारत का नाम लिया जाता है, तो लोग उसे एक महान संस्कृति, सभ्यता और सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में जानते हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्ञान दिया, हमारे युवाओं ने विज्ञान, तकनीक, व्यापार और सेवा में अपनी मेहनत से पहचान बनाई। लेकिन दुख की बात यह है कि उसी भारत के कुछ नागरिक आज विदेशों में जाकर ऐसे काम कर रहे हैं, जो पूरे देश के माथे पर शर्म का दाग लगा रहे हैं। हाल ही में सिंगापुर में दो भारतीय पर्यटकों को सेक्स वर्कर्स को लूटने और उन पर हमला करने के आरोप में पांच साल की जेल और छह बेंत की सजा (कैनिंग) सुनाई गई है। यह घटना सिर्फ दो अपराधियों की कहानी नहीं है — यह पूरे भारत की छवि को धूमिल करने वाली घटना है।
सिंगापुर की अदालत में जब इस मामले की सुनवाई हुई, तो न्यायाधीश ने कहा कि “विदेशी नागरिकों को यहाँ कानून का पालन करना चाहिए, न कि इसका दुरुपयोग।” दोनों भारतीयों पर आरोप था कि वे होटल में सेक्स वर्कर्स से पैसे ऐंठने गए थे, और जब उन्होंने विरोध किया, तो उन्होंने उन पर शारीरिक हमला किया और सोने-चांदी के गहने लूट लिए। यह कोई छोटी घटना नहीं थी — यह सिंगापुर जैसे कानून-प्रिय देश में भारतीयों की साख पर करारी चोट थी। वहाँ की पुलिस ने इसे “योजना बनाकर की गई लूट और हिंसा” बताया। यह सुनकर कोई भी भारतीय, जो अपने देश की इज्जत को महत्व देता है, शर्मिंदा महसूस करेगा।
लेकिन यह पहली बार नहीं है। पिछले कुछ महीनों में ही कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें भारतीय नागरिक विदेशों में कानून तोड़ते या आपराधिक गतिविधियों में पकड़े गए हैं। सिंगापुर में एक और भारतीय को 12 साल की बच्ची से छेड़छाड़ के मामले में जेल हुई। (Times of India) एक अन्य मामले में 46 वर्षीय भारतीय को एक महिला पर हमला करने के अपराध में चार साल की सजा और छह बेंत की मार मिली। (TOI Link) ये घटनाएँ केवल अपराध नहीं हैं — ये हमारे समाज के उस हिस्से की गवाही हैं जो धीरे-धीरे नैतिकता और संयम से भटक रहा है।
ऐसे अपराधों से नुकसान सिर्फ उन लोगों का नहीं होता जो जेल जाते हैं। असली नुकसान उन करोड़ों ईमानदार भारतीयों का होता है जो विदेशों में काम कर रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं, और भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। जब कुछ लोग शराब और लालच में अपनी इंसानियत खो देते हैं, तो उनकी वजह से उन मेहनती भारतीयों पर भी शक की निगाह डाली जाती है। एयरपोर्ट्स पर भारतीय यात्रियों से ज़्यादा पूछताछ होती है, कुछ देशों में वीज़ा प्रक्रिया सख्त कर दी जाती है, और हमारे नागरिकों को “संदेह की नज़र” से देखा जाने लगता है। यह किसी एक व्यक्ति की गलती नहीं — यह एक पूरी पीढ़ी की साख पर धब्बा है।
दुख की बात यह है कि इन अपराधों की जड़ में “तेज़ कमाई” की भूख, “शॉर्टकट” की मानसिकता और “विदेश में कुछ भी चल जाता है” वाली सोच होती है। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि विदेशों में कानून भारत से कहीं ज़्यादा कठोर होते हैं। सिंगापुर जैसे देशों में मामूली झगड़ा भी जेल और कोड़े की सज़ा में बदल सकता है। लेकिन लालच की अंधी दौड़ में कुछ लोग यह सब सोचने की फुर्सत नहीं रखते। वे यह नहीं समझते कि वे केवल अपनी नहीं, बल्कि पूरे देश की बदनामी का कारण बन रहे हैं।
विदेशों में भारतीयों की छवि एक समय बेहद सम्मानजनक हुआ करती थी। “इंडियन वर्कर” का मतलब मेहनती, ईमानदार और ज़िम्मेदार व्यक्ति माना जाता था। आज भी लाखों भारतीय डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, आईटी विशेषज्ञ और श्रमिक बनकर दुनिया में अपनी जगह बना रहे हैं। लेकिन ऐसे अपराध उनकी मेहनत पर परछाई डाल देते हैं। एक सच्चा प्रवासी जब यह खबर पढ़ता है, तो उसके दिल में दर्द होता है — क्योंकि वह जानता है कि किसी और की गलती का बोझ अब उसके सिर पर भी आ गया है।
अब सवाल यह है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या किया जाए? जवाब मुश्किल नहीं है — हमें अपने युवाओं को सिर्फ शिक्षा नहीं, संस्कार देने की ज़रूरत है। विदेश यात्रा से पहले हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह सिर्फ “खुद” नहीं, बल्कि “भारत” का प्रतिनिधित्व कर रहा है। सरकारें चाहें तो विदेश जाने वालों के लिए “नैतिक आचरण और कानूनी प्रशिक्षण” का एक छोटा कोर्स अनिवार्य कर सकती हैं। मीडिया और सामाजिक संगठनों को भी यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों को यह याद दिलाते रहें — “आपका व्यवहार ही आपका देश है।”
अंत में यही कहना उचित होगा कि जब कोई भारतीय विदेश में अपराध करता है, तो वह सिर्फ कानून नहीं तोड़ता — वह 125 करोड़ भारतीयों की प्रतिष्ठा तोड़ता है। सिंगापुर की जेल में बैठे वो दो युवक शायद यह नहीं समझ पाए कि उनकी हरकत से आज कितने भारतीयों के सिर शर्म से झुके हैं। एक देश अपनी साख से पहचाना जाता है, और कुछ गिने-चुने अपराधी अगर उस साख को धूमिल कर रहे हैं, तो हमें सामूहिक रूप से आवाज़ उठानी होगी, “हम भारत के वो नागरिक हैं, जो मेहनत से पहचान बनाते हैं, बदनामी से नहीं।”