काबुल/ नई दिल्ली 11 अक्टूबर
भारत काबुल में पूर्ण राजनयिक मिशन लौटाने की तैयारी
भारत ने काबुल में अपनी तकनीकी मिशन को पूर्ण दूतावास (Embassy) में अपग्रेड करने का निर्णय लिया है। यह कदम न केवल भारत-افغانिस्तान संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने का संकेत है, बल्कि क्षेत्रीय बदलावों के बीच भारत की सक्रिय नीति को भी रेखांकित करता है।
विदेश मामलों के मंत्री एस. जयशंकर और अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की नई दिल्ली में हुई द्विपक्षीय वार्ता के बाद यह घोषणाएँ सामने आई हैं।
अफगानिस्तान का भरोसा — भारत को ‘नज़दीकी मित्र’ कहा गया
अफगानिस्तान ने भी भारत को “नज़दीकी मित्र” कहते हुए भरोसा जताया है कि दोनों देशों की साझेदारी सम्मान, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर आधारित होगी।
मुत्तकी ने भारत की मानवीय मदद और तेजी से सहायता पहुँचाने की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा कि दोनों देशों को समर्पित संबंधों को नई ऊँचाई पर ले जाना चाहिए।
इतिहास और रणनीतिक मायने — काबुल में दूतावास क्यों अहम है?
भारत ने 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद काबुल में अपनी बड़ी राजनयिक उपस्थिति वापस ले ली थी। शुरुआत में, काबुल मिशन को बंद कर दिया गया था।
लेकिन 2022 में, भारत ने एक तकनीकी मिशन फिर से स्थापित किया, विशेष रूप से मानवीय सहायता और परियोजनाओं के समर्थन के लिए। अब इस मिशन को दूतावास में बदलने से भारत यह संदेश देना चाहता है कि वह अफगानिस्तान के प्रति दीर्घकालिक और संतुलित प्रतिबद्धता बनाए रखना चाहता है। राजनीतिक और सुरक्षा दृष्टिकोण से यह कदम महत्वपूर्ण है। भारत पड़ोसी देशों— विशेषकर पाकिस्तान और चीन — की गतिविधियों पर नजर रखना चाहता है और क्षेत्रीय स्थिरता में भूमिका निभाना चाहता है।
चुनौतियाँ और अपेक्षाएँ — राह आसान नहीं
काबुल में दूतावास खोलना आसान नहीं होगा। सुरक्षा, स्वीकार्यता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता जैसे पहलू सामने होंगे। भारत अभी भी औपचारिक रूप से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता। दूतावास संचालन में स्थानीय नियम, सुरक्षा व्यवस्था और कूटनीतिक दबाव महत्वपूर्ण चुनौतियाँ होंगी। इसका असर न सिर्फ विदेश नीति पर होगा, बल्कि भारत की सुरक्षा, आर्थिक और मानवीय जुड़ाव पर भी पड़ेगा।
संकेतों की अर्थशाली तस्वीर
काबुल में दूतावास खोलने की पहल भारत की अफगान नीति में नए युग का प्रतीक है। यह कदम न केवल भारत की रणनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, बल्कि यह अफगानिस्तान को यह भरोसा देता है कि भारत ठहरा है — सिर्फ़ सहायता देने वाला देश नहीं, बल्कि साझेदार भी।
इस फैसले की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि भारत कैसे सुरक्षा, राजनयिक चुनौतियों और सहयोग में संतुलन बना पाता है। लेकिन एक बात करार है — यह भारत की सोच को दर्शाता है: जब दुनिया उलझी हो, भारत कूटनीति को फिर से खींचेगा।