भारत और अमेरिका के बीच बहुप्रतीक्षित द्विपक्षीय व्यापार समझौते की दिशा में बातचीत एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय का उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल चार दिवसीय वार्ता के लिए वाशिंगटन पहुँच चुका है, जहाँ व्यापार से जुड़े विभिन्न अहम बिंदुओं पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है। यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका द्वारा एक अगस्त से कुछ उत्पादों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की तैयारी की जा रही है, और भारत इस चुनौती को अवसर में बदलने की दिशा में सक्रिय हो चुका है।
इस महत्वपूर्ण दौरे के पहले ही दिन नीति आयोग ने एक विशेष रिपोर्ट जारी कर सरकार को सुझाव दिए हैं कि यह व्यापार समझौता केवल वस्तुओं तक सीमित न रहकर सेवाओं पर केंद्रित होना चाहिए। आयोग का मानना है कि भारत को सूचना प्रौद्योगिकी, वित्तीय सेवाएँ, शिक्षा, पेशेवर सेवाएँ, डिज़ाइन, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी करनी चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत को H-1B और L-1 वीज़ा नीतियों में लचीलापन लाने की दिशा में भी जोर देना चाहिए ताकि भारतीय पेशेवरों को वैश्विक अवसर प्राप्त हो सकें।
इस बातचीत में भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल नेतृत्व कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने आशा जताई है कि “यह वार्ता न केवल द्विपक्षीय व्यापार में संतुलन स्थापित करेगी, बल्कि दोनों देशों को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाएगी।” रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और डेयरी बाजार को कुछ हद तक खोले, जबकि भारत ने साफ किया है कि उसके कृषि क्षेत्र की सुरक्षा सर्वोपरि है और इस पर कोई समझौता नहीं होगा। इसी के साथ भारत ने अमेरिका से स्टील, टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और फार्मास्युटिकल उत्पादों पर टैरिफ राहत की मांग की है।
नीति आयोग द्वारा जारी ‘ट्रेड वॉच क्वार्टरली’ नामक रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अमेरिका द्वारा चीन, मैक्सिको और कनाडा पर बढ़ाए गए टैरिफ के कारण भारत को करीब 100 प्रमुख उत्पाद श्रेणियों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा का लाभ मिल सकता है। आयोग ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि भारत-यूएस व्यापार समझौते की संरचना “यूके मॉडल” की तरह हो सकती है, जहाँ शुरुआत में सेवाओं और डिजिटल अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखते हुए समझौता किया गया था, और बाद में वस्तुओं पर विस्तार किया गया।
यह बातचीत इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि भारत अब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का अहम हिस्सा बनने की ओर अग्रसर है और अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ गहरे व्यापारिक रिश्ते स्थापित करना, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे अभियानों को वैश्विक पटल पर मजबूती देगा। इसके अलावा, इस समझौते से लाखों युवाओं को रोज़गार और उद्यमिता के नए अवसर मिल सकते हैं।
निष्कर्षतः, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर वाशिंगटन में चल रही वार्ता केवल व्यापारिक लेन-देन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत है। नीति आयोग की सुझाई रणनीति, सेवाओं पर केंद्रित संरचना और डिजिटल युग की दृष्टि से तैयार प्रस्ताव एक ऐसा नया द्वार खोल सकते हैं, जहाँ दोनों देश समान रूप से लाभान्वित हों—एक सच्चा “विन-विन” मॉडल।
इस बात पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं कि क्या यह वार्ता केवल संभावनाओं तक सीमित रहेगी या वास्तव में एक ठोस, ऐतिहासिक समझौते में तब्दील होगी जो भारत को वैश्विक व्यापार मंच पर और अधिक प्रभावशाली बनाएगी।