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विश्वगुरु नहीं, गिरता भारत: मोदी राज में हर सूचकांक नीचे

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 11 वर्षों के शासनकाल में, जिस ‘विश्वगुरु भारत’ के उदय का नारा दिया गया था, उसके विपरीत, देश के वैश्विक सूचकांक रिकॉर्ड तोड़ गिरावट पर हैं। “द फॉल ऑफ इंडिया ट्रैकर” नामक इस विशेष रिपोर्ट के तथ्य और आंकड़े यह दर्शाते हैं कि मानव विकास, लोकतांत्रिक मूल्य, और मानव कल्याण के हर प्रमुख वैश्विक मानक पर भारत की स्थिति चिंताजनक रूप से नीचे आई है। जहाँ 2014 में सत्ता में आने के समय एक नई वैश्विक साख बनाने की उम्मीद थी, वहीं 2025 आते-आते भारत कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में लगातार पिछड़ चुका है। उदाहरण के लिए, देश के मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) में कोई वास्तविक प्रगति दर्ज नहीं हुई है; 2014 में भारत की रैंक 130 थी, और 11 साल बाद भी वह 130 पर ही स्थिर है, जबकि बीच में यह 134 तक गिरी थी। 

यह स्थिर स्थिति जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और राष्ट्रीय आय जैसे बुनियादी मानकों पर किसी भी ठोस विकास की कमी को स्पष्ट रूप से उजागर करती है। इसी तरह, प्रतिष्ठित लोवी इंस्टीट्यूट (Lowy Institute) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2020 में “मेजर पावर” (Major Power) का दर्जा भी खो दिया, और 2024 तक वह 40-पॉइंट सीमा से नीचे बना हुआ है, जो वैश्विक मंच पर भारत की कथित बढ़ती ताकत के दावों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता पर गहरा आघात: ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ की श्रेणी में भारत

मोदी शासन के दौरान, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक स्वतंत्रता की स्थिति में सबसे तीव्र गिरावट दर्ज की गई है, जिसने वैश्विक बिरादरी में देश की छवि को गंभीर क्षति पहुंचाई है। लोकतंत्र सूचकांक (Democracy Index) में भारत 2014 में 27वें स्थान पर था, लेकिन अब वह 41वें स्थान पर लुढ़क चुका है। इस गिरावट के कारण, भारत को अब “Flawed Democracy” (त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र) की श्रेणी में रखा गया है—एक ऐसी स्थिति जहाँ नागरिक स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं मानी जाती और राजनीतिक सहभागिता सिमट रही है। इस लोकतांत्रिक पतन की पुष्टि फ्रीडम इंडेक्स (Freedom Index) की रिपोर्ट से भी होती है: 2014 में भारत 77/100 अंकों के साथ “Free” (स्वतंत्र) की श्रेणी में था, जो 2025 तक घटकर केवल 63/100 रह गया है, और अब इसे “Partly Free” (आंशिक रूप से स्वतंत्र) कहा गया है। 

यह तीव्र गिरावट नागरिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति के प्रति बढ़ती पाबंदियों की सीधी गवाही देती है। इसके अतिरिक्त, प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (Press Freedom Index) में भी स्थिति और खराब हुई है: 2014 में रैंक 140 थी, जो 2025 में 151 पर आ चुकी है, जिसका अर्थ है कि देश का मीडिया अब पहले से भी कहीं ज्यादा “नियंत्रित” और “डर में” काम कर रहा है। यहाँ तक कि कानून के शासन सूचकांक (Rule of Law Index) में भी भारत 2014 के 66वें स्थान से गिरकर 2024 में 79वें स्थान पर पहुँच गया है, जहाँ फंडामेंटल राइट्स और क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम दोनों पर भारत की स्थिति को “कमज़ोर” बताया गया है।

खुशहाली, भ्रष्टाचार और भूख सूचकांकों में निराशाजनक प्रदर्शन: खाली होती थाली

लोकतांत्रिक और कानूनी मानकों के साथ-साथ, मानव कल्याण और आर्थिक स्वतंत्रता के मोर्चों पर भी भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, जिसने ‘अमृतकाल’ के दावों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स (World Happiness Index) में भारत 2014 की 111वीं रैंक से गिरकर 2025 में 118वीं रैंक पर आ गया है, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP), सामाजिक सपोर्ट और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मानकों पर खुशहाली की गिरावट को दर्शाता है। 

भ्रष्टाचार के मोर्चे पर भी सरकार के “ईमानदार सरकार” के दावों के बीच भ्रष्टाचार सूचकांक (Corruption Index) में भारत 2014 के 85वें स्थान से गिरकर 2024 में 96वें स्थान पर पहुँच गया है। वहीं, आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक (Economic Freedom Index) में भी गिरावट आई है (2014 में 120 से 2025 में 128), जो दर्शाता है कि भारत में कारोबारी माहौल और आर्थिक आज़ादी सिकुड़ रही है, और उद्योगपतियों को मिल रही छूट से इतर सामान्य कारोबारी माहौल प्रतिकूल हुआ है। लेकिन सबसे भयावह गिरावट ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में दर्ज की गई है: 2014 में भारत 76 देशों में 55वें स्थान पर था, जबकि अब वह 123 देशों में 102वें स्थान पर है।

 यह डेटा न केवल भारत में खाद्य सुरक्षा की भयानक स्थिति को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि 13% भारतीय अब भी कुपोषित हैं, 37% बच्चे स्टंटेड (कम लंबाई वाले) हैं, और 18% वेस्टेड (कम वज़न वाले) हैं। यह समग्र गिरावट यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि 11 साल के मोदी शासन ने भारत को “उभरते भारत” से “गिरते भारत” की दिशा में धकेल दिया है, और यह सवाल आज सबसे महत्वपूर्ण है: क्या ‘विश्वगुरु भारत’ सिर्फ एक नारा बनकर रह गया है, जबकि वास्तविक मानव विकास और लोकतंत्र पीछे छूट गए हैं?

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