नई दिल्ली
16 जुलाई 2025
भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए 2030 के लक्ष्य से पहले ही कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता में 50% से अधिक योगदान नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त कर लिया है। इस बड़ी उपलब्धि की जानकारी केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोमवार को दी। यह उपलब्धि न केवल भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताओं को सशक्त करती है, बल्कि देश को पर्यावरण-संवेदनशील और ऊर्जा-सुरक्षित राष्ट्र के रूप में भी स्थापित करती है।
2030 की राह को 2025 में ही किया पार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा COP-26 शिखर सम्मेलन में रखे गए “पंचामृत” संकल्पों में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था— 2030 तक भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में कम से कम 50% हिस्सेदारी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से हो। लेकिन इस लक्ष्य को पांच साल पहले ही पार कर लेना भारत की नीयत, नीति और निष्पादन क्षमता का स्पष्ट संकेत है। वर्तमान में भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में सौर, पवन, जलविद्युत और बायोमास जैसे स्वच्छ स्रोतों का योगदान 50.3% तक पहुंच गया है।
विश्व मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को मिली मजबूती
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि यह उपलब्धि सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि भारत के स्थायी विकास के विज़न की जीत है। उन्होंने कहा कि “भारत अब केवल विकासशील देश नहीं रहा, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरा है जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।” वैश्विक मंचों पर भारत की साख और विश्वास को इससे बड़ी मजबूती मिली है। कई देश अब भारत के नवीकरणीय ऊर्जा मॉडल को अपनाने की दिशा में विचार कर रहे हैं।
नीतियों और निवेशों ने बनाए सफलता के रास्ते
इस उपलब्धि के पीछे सरकार की दीर्घकालिक रणनीति, सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में बढ़ते निवेश, तकनीकी नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अहम भूमिका रही है। PM-कुसुम योजना, राष्ट्रीय सौर मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसे कार्यक्रमों ने देश के हर कोने में स्वच्छ ऊर्जा की पहुंच सुनिश्चित की। इसके अलावा राज्यों ने भी अपने स्तर पर सौर पार्क, पवन ऊर्जा कॉरिडोर और नेट मीटरिंग नीतियों के ज़रिए स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार को गति दी।
आर्थिक और पर्यावरणीय फायदे साथ-साथ
50% नवीकरणीय क्षमता तक पहुंचना केवल एक पर्यावरणीय उपलब्धि नहीं है, यह भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और कार्बन उत्सर्जन में कमी की दिशा में भी बड़ा कदम है। इससे न केवल आयातित ईंधन पर निर्भरता कम होगी, बल्कि लाखों नए रोजगार भी सृजित हुए हैं— विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में। इसके साथ ही भारत की ग्रीन इकोनॉमी का आकार तेज़ी से बढ़ रहा है, जो आने वाले समय में वैश्विक निवेशकों को भी आकर्षित करेगा।
नवाचार और युवाओं की भूमिका अहम
भारत की इस ऊर्जा क्रांति में युवाओं, स्टार्टअप्स और वैज्ञानिकों की भूमिका भी उल्लेखनीय रही है। ग्रीन टेक्नोलॉजी, स्मार्ट ग्रिड, ऊर्जा भंडारण, और AI आधारित ऊर्जा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में हो रहे नवाचारों ने भारत को दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते स्वच्छ ऊर्जा बाजारों में बदल दिया है। आने वाले वर्षों में यह रफ्तार और तेज़ होने की उम्मीद है।
2030 की लक्ष्मण रेखा को 2025 में पार कर भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह जलवायु संकट से निपटने के लिए केवल संकल्प नहीं, क्रियान्वयन में भी अग्रणी है। यह सफलता भारत की विकास यात्रा में एक प्रेरणास्पद मील का पत्थर है, जिससे पूरी दुनिया को यह सीख मिलती है कि पर्यावरण और प्रगति एक साथ चल सकते हैं — अगर इच्छाशक्ति हो, नीति स्पष्ट हो और जनभागीदारी जुड़ी हो।