
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुलाकात सिर्फ भारत-किंड्रिल साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस बड़े बदलाव का संकेत है, जिसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अब चीन से हटकर भारत पर दांव लगा रही हैं। अमेरिका और यूरोप की कई कंपनियाँ पहले ही “चाइना-प्लस-वन” रणनीति अपनाकर भारत में निवेश बढ़ा रही हैं। भारत की राजनीतिक स्थिरता, लोकतांत्रिक व्यवस्था और लगातार सुधरते कारोबारी माहौल ने इसे चीन के मुकाबले कहीं अधिक भरोसेमंद विकल्प बना दिया है।
भारत का बढ़ता मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम और मजबूत सप्लाई चेन अब दुनिया भर के निवेशकों को यह भरोसा दिला रहा है कि भारत उनके लिए एक स्थायी और सुरक्षित ठिकाना है। कोविड-19 महामारी और चीन पर बढ़ते भू-राजनीतिक अविश्वास ने वैश्विक कंपनियों को भारत की ओर आकर्षित किया है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘पीएलआई स्कीम’ जैसी नीतियों ने भारत को एक ऐसा प्लेटफॉर्म प्रदान किया है, जहां उच्च गुणवत्ता वाली मैन्युफैक्चरिंग और विश्वसनीय सप्लाई चेन का निर्माण तेजी से हो रहा है। यही कारण है कि भारत अब वैश्विक निवेशकों के लिए “ग्लोबल रिस्क-फ्री पार्टनर” के रूप में उभर रहा है।
स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत ने पिछले एक दशक में जिस तेज़ी से छलांग लगाई है, वह इसे ग्लोबल टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक डेस्टिनेशन बना रही है। यह साफ है—अब दुनिया भारत को सिर्फ “आउटसोर्सिंग हब” नहीं बल्कि “इनोवेशन हब” के रूप में देख रही है।