उत्तराखंड में इस मानसून में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। केवल जुलाई के पहले सप्ताह में ही उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिलों में 7 से अधिक बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गईं, जिससे गांवों का संपर्क कट गया और सड़कों पर यातायात ठप हो गया। भारी बारिश से नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ा और कई घर व दुकानें बह गईं।
विज्ञानियों और मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की तीव्र घटनाएं अब सामान्य बनती जा रही हैं, और इसके पीछे वैश्विक जलवायु परिवर्तन की भूमिका स्पष्ट है। पहाड़ों में तापमान बढ़ने से जलवाष्प की मात्रा बढ़ रही है और वही बादलों के अचानक फटने की प्रमुख वजह बनती है। यह पर्यावरणीय असंतुलन आने वाले वर्षों में पहाड़ी जीवनशैली को बदल कर रख देगा।
स्थानीय प्रशासन ने आपदा राहत टीमें तैनात की हैं, लेकिन दुर्गम भूगोल और खराब मौसम के चलते राहत कार्य बाधित हो रहे हैं। विशेषज्ञों ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि वह निर्माण कार्यों को सीमित करे, जल संग्रह प्रणाली सुधारे और पारंपरिक पर्वतीय संरक्षण प्रणालियों को पुनर्जीवित करे।