जनवरी 2025 में जब दिल्ली की सर्द हवाओं के साथ आम नागरिकों ने नए साल की शुरुआत की, तब एक सकारात्मक खबर ने राजधानीवासियों को थोड़ी राहत दी। दिल्ली पुलिस ने इस महीने हत्या के प्रयास, डकैती, बलात्कार और POCSO जैसे संगीन अपराधों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की। यह गिरावट केवल संख्यात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी एक बड़ी राहत है — जहाँ दिल्ली जैसे विशाल और विविधतापूर्ण शहर में अपराध नियंत्रण एक बड़ी चुनौती मानी जाती है। खास बात यह रही कि इन आंकड़ों की तुलना जनवरी 2023 और जनवरी 2024 से की गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि तीन सालों में पहली बार राजधानी में संगठित अपराधों पर वास्तविक अंकुश देखने को मिला।
दिल्ली पुलिस ने इस उपलब्धि का श्रेय अपनी बढ़ी हुई सक्रियता, तकनीकी निगरानी, और आगामी लोकसभा चुनावों से पहले की गई व्यापक सुरक्षा रणनीतियों को दिया है। जनवरी के पहले सप्ताह से ही शहर भर में गश्त बढ़ा दी गई थी, संवेदनशील इलाकों में नाके लगाकर संदिग्धों की तलाशी शुरू हुई और POCSO मामलों को तत्काल सुनवाई के दायरे में लाकर फास्ट ट्रैक व्यवस्था को बल मिला। महिला सुरक्षा के दृष्टिकोण से “शक्ति स्क्वॉड” और “पिंक पेट्रोल” टीमों की संख्या बढ़ाई गई। इस बार न केवल फील्ड में पुलिस की उपस्थिति बढ़ी, बल्कि साइबर सेल और कॉल ट्रैकिंग यूनिट्स को भी नए सॉफ्टवेयर और टास्क फोर्स से लैस किया गया, जिससे अपराध के पहले स्तर पर ही हस्तक्षेप संभव हो सका।
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय मलिक ने इस उपलब्धि को साझा करते हुए कहा कि, “पुलिस बल की रणनीति केवल अपराध के बाद कार्रवाई नहीं, बल्कि अपराध से पहले रोकथाम है। हम हर गली, हर मोहल्ले, हर बस स्टॉप तक मुस्तैद हैं।”
उनके अनुसार, पुलिस ने जनवरी में लगभग 800 अतिरिक्त गश्त यूनिट्स और 200 नई महिला अफसरों की तैनाती की, जिससे रात के समय होने वाले अपराधों में 35% की गिरावट आई। साथ ही, दिल्ली मेट्रो, रेलवे स्टेशन और भीड़भाड़ वाले इलाकों में CCTV निगरानी और पुलिसकर्मी तैनाती की दोहरी रणनीति ने अप्रत्याशित सफलता दिलाई।
एक और उल्लेखनीय बात यह रही कि दिल्ली पुलिस ने इस बार जनता के साथ संवाद और सहभागिता को प्राथमिकता दी। मोहल्ला मीटिंग्स, स्कूल-कॉलेज जागरूकता अभियान, RWAs के साथ सुरक्षात्मक योजनाएं और महिला सहायता समूहों को सुरक्षा नेटवर्क से जोड़ा गया। इससे केवल अपराध की रिपोर्टिंग बढ़ी नहीं, बल्कि लोगों में विश्वास की भावना भी प्रबल हुई। खासकर नाबालिगों और किशोरियों से जुड़े मामलों में “POCSO हेल्प डेस्क” ने असाधारण कार्य किया, जहाँ हर शिकायत को 24 घंटे के भीतर जांच के दायरे में लाया गया।
दिल्ली में अपराध दर में आई यह गिरावट केवल पुलिस का आंकड़ा नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि योजनाबद्ध, संवेदनशील और सामूहिक प्रयासों से बड़े शहरों में भी कानून व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। चुनावी वर्ष होने के कारण राजनीतिक हलकों में जहाँ एक ओर इस डेटा को सतर्कता का प्रतीक माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह भी देखा जा रहा है कि जनता की सुरक्षा अब केवल वादों में नहीं, जमीन पर कार्यों में परिलक्षित हो रही है।
दिल्ली जैसे शहर में जहाँ एक ओर देश की नब्ज धड़कती है, वहीं अपराध और सुरक्षा के बीच की खाई हमेशा बड़ी रही है। लेकिन जनवरी 2025 का यह अध्याय बताता है कि अगर इच्छाशक्ति, तकनीक और जनता का सहयोग मिल जाए, तो सुरक्षा केवल एक सपना नहीं, एक यथार्थ बन सकती है। अब अगला प्रश्न यही है — क्या यह सुधार एक अस्थायी लहर है या आने वाले महीनों में एक स्थायी प्रवृत्ति बन सकेगा? जनता को उम्मीद है कि दिल्ली पुलिस इसी प्रतिबद्धता और ईमानदारी से आगे भी कार्य करती रहेगी।