झारखंड के धनबाद, लोहरदगा, और गढ़वा क्षेत्रों में अवैध खनन एक विकराल समस्या बन चुका है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इन क्षेत्रों में कोयला, बॉक्साइट और लौह अयस्क की खुदाई बिना पर्यावरणीय अनुमति के की जा रही है। इससे जंगलों का क्षरण हो रहा है और जल स्रोत सूखते जा रहे हैं।
इस अवैध खनन का सबसे अधिक असर वहां की जनजातीय आबादी पर पड़ा है। संथाल, मुंडा और हो जनजातियों की परंपरागत ज़मीन और जल-स्रोत खनन माफिया की चपेट में आ गए हैं। इससे उनका पारंपरिक जीवन संकट में आ गया है। आदिवासी नेता बता रहे हैं कि उनके गाँवों में खनन कंपनियाँ ज़ोर-जबरदस्ती से जमीन ले रही हैं और प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने झारखंड सरकार से जवाब तलब किया है और कई कंपनियों पर जुर्माना भी लगाया है, परंतु ज़मीनी स्तर पर खनन गतिविधियाँ बंद नहीं हुई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि खनन को नियंत्रित नहीं किया गया तो झारखंड का हरित क्षेत्र पूरी तरह खत्म हो सकता है और यह जनजातीय अस्मिता पर एक गहरा आघात होगा।