भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science – IISc), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने कैंसर की जांच प्रणाली में एक नई क्रांति ला दी है। उनकी शोध टीम ने एक ल्यूमिनसेंट पेपर-आधारित सेंसर तैयार किया है जो लिवर (यकृत) कैंसर की शुरुआती अवस्था में पहचान करने में सक्षम है।
इस सेंसर की सबसे खास बात यह है कि यह टेर्बियम (Terbium) नामक दुर्लभ पृथ्वी धातु का उपयोग करता है, जो कैंसर बायोमार्कर के संपर्क में आते ही हरी चमक उत्पन्न करता है। जैसे ही यह सेंसर कैंसर से जुड़े संकेतक के संपर्क में आता है, वह चमक उठता है—और यह चमक लिवर कैंसर की पहचान का पहला संकेत देती है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि यह सेंसर कागज़ के एक छोटे टुकड़े पर आधारित है, जिसे लैब या मशीनों की आवश्यकता के बिना भी प्रयोग में लाया जा सकता है। यह खोज उन क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो सकती है जहाँ परंपरागत परीक्षण तकनीकें न उपलब्ध हैं, न सुलभ।
सस्ती, सरल और ग्रामीण भारत के अनुकूल तकनीक
यह सेंसर केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है। पारंपरिक लैब टेस्ट में जहां कैंसर का पता लगाने में कई दिन और हजारों रुपये खर्च होते हैं, वहीं यह पेपर सेंसर कुछ मिनटों में और बहुत कम लागत पर परिणाम देता है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बैटरी से चलने वाले मोबाइल पैकेज के साथ ग्रामीण इलाकों में भी स्थापित किया जा सकता है। मोबाइल क्लीनिक या स्वास्थ्य शिविरों में यदि इसे शामिल किया जाए, तो भारत के हजारों दूर-दराज़ गाँवों में कैंसर की जांच को सुलभ और नियमित बनाया जा सकता है।
IISc की शोध टीम ने यह भी बताया कि इस तकनीक को बहुस्तरीय बायोमार्कर जांच में भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे सिर्फ लिवर कैंसर ही नहीं, बल्कि अन्य प्रकार के कैंसर की भी समय रहते पहचान संभव हो सकती है।
यह न केवल मरीजों को समय पर इलाज दिलाने में मदद करेगा, बल्कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली पर इलाज में देरी से पड़ने वाले आर्थिक और भावनात्मक बोझ को भी कम करेगा।
“Make in India” और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में क्रांतिकारी कदम
IISc की यह खोज “Affordable Healthcare” और “Make in India” जैसे राष्ट्रीय अभियानों को सीधा बल देती है। यह सेंसर स्वदेशी रूप से डिजाइन और निर्मित किया गया है, जिससे यह आयातित मेडिकल डिवाइसेज़ पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा।
यह पहल “विज्ञान को समाज के लिए उपयोगी बनाने” की उस दिशा में जाती है, जहाँ अनुसंधान प्रयोगशाला से निकल कर सीधे जनता के जीवन में बदलाव लाता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस तकनीक को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), आयुष्मान भारत, और जन औषधि परियोजनाओं से जोड़ती हैं, तो यह लाखों लोगों की जीवनरक्षा कर सकती है। इस तकनीक को जल्द ही ICMR (Indian Council of Medical Research) के पायलट प्रोग्राम में शामिल किए जाने की संभावना जताई गई है।
IISc का यह ल्यूमिनसेंट पेपर सेंसर विज्ञान, सेवा और नवाचार का बेहतरीन उदाहरण है—जहाँ चमक केवल रसायनों की नहीं, बल्कि जीवन की उम्मीद की होती है। इस खोज ने यह साबित कर दिया कि जब विज्ञान जमीन से जुड़ता है, तो वह समाज को उजाले की ओर ले जाता है