नई दिल्ली / रायपुर
देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थानों में एक बार फिर से गंभीर संकट गहराया है। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) रायपुर के डायरेक्टर प्रोफेसर राम कुमार काकनी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा सिर्फ़ एक प्रशासनिक घटना नहीं, बल्कि उस गहरी बीमारी का लक्षण है जो भारत के उच्च शिक्षा तंत्र को भीतर से खा रही है — संस्थागत स्वायत्तता का क्षरण, सरकारी दखल और बौद्धिक स्वतंत्रता पर लगातार बढ़ता नियंत्रण। यह इस्तीफा विशेष रूप से इसलिए बड़ा है क्योंकि काकनी पिछले पाँच वर्षों में तीसरे IIM डायरेक्टर हैं जिन्होंने “बोर्ड हस्तक्षेप” और “संस्थान की स्वायत्तता पर संकट” का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया है। इससे पहले IIM कोलकाता के दो डायरेक्टर भी इसी वजह से अपने कार्यकाल के बीच में ही पद छोड़ चुके थे।
काकनी ने केंद्र सरकार को भेजे अपने पत्र में स्पष्ट कहा कि “संस्थान की स्वायत्तता दबाव में है और प्रशासनिक स्वतंत्रता खत्म होती जा रही है।” उनके मुताबिक़, बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियाँ इतनी बढ़ गई हैं कि शैक्षणिक फैसलों में भी हस्तक्षेप किया जा रहा है। फैकल्टी नियुक्तियों, अनुशासनात्मक कार्रवाई, और शोध नीतियों तक में बोर्ड का अनावश्यक दखल अब संस्थान के संचालन को असंभव बना रहा है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति न सिर्फ IIM रायपुर के लिए बल्कि पूरे भारतीय शिक्षा मॉडल के लिए चिंताजनक है — क्योंकि IIMs को 2017 में पारित IIM Act के तहत पूर्ण स्वायत्तता दी गई थी ताकि वे “राजनीतिक प्रभाव से मुक्त होकर” वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकें। लेकिन अब वही कानून व्यवहार में एक कागज़ी दस्तावेज़ बनकर रह गया है।
मोदी ने कोई संस्था नहीं बनाई, सिर्फ़ प्रचार का साम्राज्य
IIM रायपुर के इस इस्तीफ़े ने राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा, “नरेंद्र मोदी शायद भारत के इतिहास में पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने एक भी सशक्त संस्था नहीं बनाई। उन्होंने सिर्फ़ एक प्रचार का साम्राज्य खड़ा किया है, जो झूठ और डर पर टिका है।”
खेड़ा ने कहा कि मोदी शासन की सबसे बड़ी विफलता यही है कि उसने ‘संस्थागत मजबूती’ की जगह ‘नियंत्रण’ को प्राथमिकता दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने पहले देश की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ — यानी PSUs — को अपने “मित्र पूँजीपतियों”, खासकर अदाणी समूह, के हाथों बेच दिया। अब वही विनाशकारी नीतियाँ भारत की शिक्षा और बौद्धिक संस्थाओं की ओर बढ़ रही हैं।
खेड़ा बोले, “IIM, IIT, JNU, DU — कोई भी संस्था अब स्वतंत्र नहीं रह गई है। हर जगह राजनीतिक नियुक्तियाँ, हर जगह सरकारी एजेंडा और हर जगह डर का माहौल है। यह सरकार स्वतंत्र सोच से डरती है क्योंकि जहाँ विचार होगा, वहाँ सवाल उठेंगे — और यह सरकार सवाल झेल नहीं सकती।”
जब ‘अकादमिक’ फैसले भी ‘राजनीतिक’ हो जाएँ
IIM रायपुर के डायरेक्टर प्रो. काकनी का इस्तीफ़ा अचानक नहीं आया। पिछले कई महीनों से उनके और बोर्ड के बीच टकराव चल रहा था। बताया जाता है कि एक फैकल्टी सदस्य के खिलाफ उन्होंने अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी, जिसे बोर्ड ने राजनीतिक दबाव में रोक दिया। जब काकनी ने इस मामले में संस्थागत प्रक्रिया पर जोर दिया, तो उनके निर्णय को अदालत में चुनौती दी गई — और अप्रैल 2024 में अदालत ने वह कार्रवाई रद्द कर दी। इसके बाद से लगातार उनके खिलाफ माहौल बनाया गया, जिससे वे थककर अंततः इस्तीफ़ा देने को मजबूर हो गए।
यह मामला सिर्फ़ एक व्यक्ति या संस्थान तक सीमित नहीं है। यह उस व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है जहाँ सरकार की कोशिश रहती है कि शिक्षा संस्थानों को स्वतंत्र विचार का नहीं बल्कि सरकारी नीति प्रचार का उपकरण बना दिया जाए। 2014 के बाद से दर्जनों विश्वविद्यालयों और प्रबंधन संस्थानों के प्रमुखों ने ऐसे ही कारणों से इस्तीफ़ा दिया है या कार्यकाल अधूरा छोड़ा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सब “संस्थागत गिरावट” की तरफ़ इशारा करता है, जहाँ शिक्षा, शोध और नवाचार का स्थान धीरे-धीरे राजनीतिक नियंत्रण और भय ने ले लिया है।
संस्थाएँ टूट रही हैं क्योंकि यह सरकार सोचने वालों से डरती है”लिए
पवन खेड़ा ने कहा कि मोदी सरकार का चरित्र “विचार-विरोधी” और “संवाद-विरोधी” है। उन्होंने कहा “जब IIM जैसे शीर्ष संस्थान भी स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं, तो समझिए इस शासन की सोच कितनी संकीर्ण है। मोदी सरकार का डर यही है कि स्वतंत्र संस्थान स्वतंत्र विचार को जन्म देंगे, और स्वतंत्र विचार से सवाल पैदा होंगे। इसलिए इस सरकार का मिशन है,ff ‘हर स्वतंत्र संस्था को नियंत्रित करो या खत्म करो।’”
खेड़ा ने आगे कहा कि यह सरकार देश की प्रतिभाओं से नहीं, उनकी चुप्पी से प्यार करती है। IIMs, IITs, मीडिया, यहां तक कि न्यायपालिका तक में नियंत्रण की कोशिश यही दिखाती है कि सरकार अब जनता की बुद्धिमत्ता से नहीं, उसकी आज्ञाकारिता से चलना चाहती है। उन्होंने कहा, “मोदी जी ने देश को ‘न्यू इंडिया’ नहीं, बल्कि ‘कंट्रोल इंडिया’ बना दिया है — जहाँ हर आवाज़ को या तो प्रचार में मिला दिया जाता है, या दबा दिया जाता है।”
‘ब्रेनवॉश इंडिया’ का नया मॉडल
IIM रायपुर का यह इस्तीफ़ा उस बड़ी समस्या की झलक है जो धीरे-धीरे देश के शिक्षा ढाँचे में फैल रही है। जब शीर्ष प्रबंधन संस्थान ही स्वतंत्रता और स्वायत्तता खो देंगे, तो उनके छात्र — जो आगे चलकर देश के नीति निर्माता और कॉर्पोरेट लीडर बनते हैं — वे भी स्वतंत्र सोच से दूर रहेंगे। इसका असर केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहेगा, भारत की नवाचार क्षमता, शोध वातावरण और ग्लोबल प्रतिष्ठा पर भी गहराई से पड़ेगा।
एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने कहा, “भारत का ‘मेक इन इंडिया’ या ‘स्टार्टअप इंडिया’ अभियान तब तक खोखला रहेगा, जब तक उसकी जड़ में मौजूद शिक्षण संस्थानों को स्वतंत्र निर्णय लेने की आज़ादी नहीं होगी। स्वायत्तता के बिना नवाचार सिर्फ़ नारा है, नीति नहीं।”
यह सिर्फ़ इस्तीफ़ा नहीं, संस्थागत चेतावनी है”
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “IIM रायपुर का यह इस्तीफ़ा सिर्फ़ एक व्यक्ति का त्याग नहीं, बल्कि एक संस्था की आत्मा की चीख है। मोदी सरकार ने हर वह जगह तोड़ दी है जहाँ स्वतंत्र सोच बची थी — चाहे मीडिया हो, न्यायपालिका हो या विश्वविद्यालय। भारत को महान बनाने के लिए हमें फिर से संस्थाओं को स्वतंत्र बनाना होगा, क्योंकि बिना स्वतंत्र संस्था के कोई भी राष्ट्र स्वतंत्र नहीं रह सकता।”